पैसा हमारे जीवन में महत्त्व ज़रूर रखता है, लेकिन इतना नहीं कि वह हमारी राह रोक ले। बस ज़रूरत होती है कि हम पैसों के अभाव में थक-हार कर ना बैठ जाएँ। यदि हम लगातार रास्ते तलाश्ते रहते हैं तो ज़रूर कोई ना कोई रास्ता निकल ही जाता है। इसी का उदाहरण हैं यूपी के बलिया के रहने वाले DSP अमित सिंह।
DSP अमित सिंह (DSP Amit Singh) के जीवन में सब सामान्य-सा रहता है। पिता यूपी पुलिस में दरोगा के पद पर तैनात थे। परिवार में आर्थिक तंगी भी नहीं थी। लेकिन अचानक अमित की ज़िन्दगी मोड़ खाती है और सबकुछ एक झटके में बदल जाता है। आर्थिक तंगी के साथ सुमित की ज़िन्दगी बिल्कुल नए रास्ते पर बढ़ चलती है। लेकिन अमित हालातों के आगे लगातार डटे रहते हैं। रास्ते बंद होते जा रहे थे पर अमित नए रास्ते की तलाश में लगातार लगे रहे। आखिरकार वह समय आ गया और अमित ने दोबारा से मैदान में वापसी की और वह कर दिखाया जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। आइए जानते हैं अमित के जीवन की कहानी…
कौन हैं अमित? (DSP Amit Singh)
अमित (DSP Amit Singh) का जन्म यूपी के बलिया के पास चांदपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता अनिल कुमार यूपी पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात हैं। वर्तमान में वह प्रतापगढ़ के एसपी के दफ्तर में तैनात हैं। अमित दो भाई और दो बहनों में दूसरे नम्बर पर है। अमित बताते हैं कि पिता की शुरू में पोस्टिंग प्रयागराज में थी। वहाँ हम लोग किराए के घर पर रहते थे। अमित की शुरूआती शिक्षा वहीं के स्कूल से हुई। बारहवीं के बाद उन्होंने बीटेक (B. TECH) की पढ़ाई की और गुडगांव की एक कंपनी में नौकरी कर ली। सुमित के लक्ष्य यही पूरा हो गया था। क्योंकि उन्होंने कभी कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया था।
पढ़ाई के लिए किराए के घर पर रहना पड़ा
अमित के पिता भले ही सरकारी नौकरी पर थे, पर बच्चों की पढ़ाई पर इतना ख़र्च हो जाया करता था कि उनके पिता चाहते हुए भी अपना घर नहीं ले पा रहे थे। हांलाकि, उनके पिता का सपना था कि उनका एक अपना घर होना चाहिए। अमित बताते हैं कि उनके पिता पुलिस में होने के चलते घर कम ही आ पाते थे। लेकिन जब भी आते थे उनका हौंसला बढ़ाते थे। अमित बताते हैं कि मेरे पिता ने हमारी पढ़ाई के लिए इतना संघर्ष किया है। इसका कर्ज़ मुझे ज़रूर उतारना है। खास-तौर पर एक घर ज़रूर लेना है। ताकि उनके पिता का सपना पूरा हो सके।
जब हो गया अमित को जॉन्डिस
अमित बताते हैं कि उनके जीवन का सबसे कठिन दौर तब आ गया जब उन्हें नौकरी के दौरान ‘जॉन्डिस’ हो गया। इस गंभीर बीमारी के इलाज़ के लिए उन्हें घर वापिस आना पड़ा। दो महीने के बाद जब उनकी तबीयत में सुधार हुआ तो फिर से नौकरी ज्वाइन करने की सोची। लेकिन शारीरिक दृष्टि से वह इतने कमजोर हो चुके थे कि अब वह दोबारा नौकरी पर बिल्कुल नहीं जाना चाहते हैं। लेकिन गाँव में कोई नौकरी भी नहीं थी जो कर सकें। ऐसे में अमित ने घर पर ही रहकर परीक्षाओं की तैयारी करने की सोची।
जब शुरू की UPSC की तैयारी
बीमारी के बाद अमित ने फ़ैसला किया कि अब वह घर पर रहकर ही UPSC (सिविल सर्विसेज) की तैयारी शुरू करेंगे। परिवार ने भी उनके इस फैसले पर पूरा साथ दिया। UPSC की तैयारी के लिए प्रयागराज में उन्होंने एक कोचिंग सेंटर में पता किया तो पता चला कि इसकी फीस 1 लाख 40 हज़ार है। उनके पिता ने पहले ही उनकी बीटेक (B. TECH) पर इतने ख़र्च कर दिए थे कि उनकी हिम्मत नहीं हुई कि अब और पैसे मांगे जाएँ।
इसके बाद अमित ने पड़ोस में एक UPSC की तैयारी करने वाले मित्र से संपर्क किया। सभी चीजों को देखने के बाद अमित ने फ़ैसला किया कि वह अब अपने मित्र संतोष यादव की निगरानी में ही तैयारी करेगा। जो कि ख़ुद भी तीन साल से UPSC की तैयारी कर रहा था। इन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की ही थी कि उसी दौरान UPPCS के फार्म निकल गए। अमित ने वह भी भर दिए। इसके बाद अमित ने UPSC के प्री एग्जाम की चार महीने के हिसाब से तैयारी शुरू कर दी। अपने दोस्त से किताबें और नोट्स लिए और लगातार पढ़ने लगे।
जब सपनों को लग गए पंख
अमित बताते हैं कि मात्र चार महीने की तैयारी से दिया गया UPSC प्री का पेपर पास हो गया था। इसके बाद तो मानो उनके सपनों को पंख ही लग गए हों। जो उन्होंने कभी सोचा था ना वह हो गया। आगे की परीक्षा के लिए अमित ने संतोष यादव के साथ अपनी मित्र अंकिता की भी मदद ली। इन दोनों ने लगातार उनके लिए स्टडी मैटेरियल लाकर दिया। जिससे अमित का समय बचा। अमित सिर्फ़ किताबें और नोट्स को बताए गए तरीके पढ़ते जाते थे। अंत में 2019 के जारी हुए नतीजों में अमित को 19 वीं रैंक प्राप्त हुई। अमित के लिए मानो आज उनकी मेहनत सफल हो गई। गाँव की अंधेरी नगरी से सीधा चकाचौंध में पहुँच गए थे।
संघर्षों की यादें हो गई ताजा
कभी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने वाले अमित आज DSP के पर तैनात हैं। उनके पिता ने पढ़ाने के लिए अपने घर के सपने तक को त्याग दिया था। तभी अमित को बीमारी ने जकड़ लिया। ऐसा लगा शायद अब पिता की मेहनत बर्बाद हो जाएगी। कोचिंग का भी पता किया, पर मंहगी फीस फिर से राह में रोड़ा बन गई। इसके बाद देश की सबसे कठिन परीक्षा के लिए पड़ोसी को ही गुरु बना लिया। अधूरे संसाधनों के साथ पढ़ाई शुरू कर दी। भविष्य का पता नहीं था, पर मेहनत का पीछा नहीं छोड़ा। अतत: वह दिन आ ही गया जब मेहनत रंग लाई। पिता के घर का त्याग रंग लाया और अमित देश के एक ज़िम्मेदार के पद पर काबिज हो गए थे।