मध्यप्रदेश: बिजली हमारे जीवन का कितना आभिन्न अंग बन चुकी है आज यह बताने की ज़रूरत नहीं। हमारे घर में मौजूद टीवी, कूलर, पंखा और मोटर सबकुछ बिजली पर ही निर्भर है। बिजली के बिना ऐसा लगता है मानो हमारे जीवन में कुछ बचा ही नहीं। लेकिन यदि ऐसा हो जाए कि हमें पता चले कि हमारे गाँव में बिजली आने ही वाली नहीं है तो आप क्या करेंगे?
कुछ ऐसी ही कहानी है मध्यप्रदेश के एक गाँव बड़ामलहरा की है जहाँ बिजली ना आने से परेशान एक युवक ने कुछ ऐसा कर दिखाया है जो आज हम सभी के लिए नजीर बन गया है। ये कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो परेशानियों के आगे घुटने टेक देते हैं।
बिजली कटौती से परेशान थे बाली मोहम्मद
बाली मोहम्मद एमपी के छोटे गाँव बड़ामलहरा में रहते हैं। इनके पास मोटरसाइकिल है जो कि वह अपने निजी जीवन में बाज़ार आने-जाने और सामान लाने ले जाने के उपयोग में लाया करते थे। लेकिन बाली ने देखा कि जब भी गाँव में बिजली चली जाती थी, तो खेतों में पानी का ट्यूबवेल बंद हो जाता था। जिसके बाद बिजली ना आने से परेशानी तो होती थी, साथ ही फसलों को पानी भी नहीं दे पाते थे। जिसके चलते फ़सल सूखने लगती थी। ऐसे में बाली ने अपना दिमाग़ लगाया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए कि बाइक के जरिए ही ट्यूबवेल को चलाया जाए। ताकि बिजली आने-जाने का झंझट हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया जाए।
बाली ने बाइक के माध्यम से निकाला पानी
बाली ने इसके लिए अपने बाइक के इंजन को खोल कर दो नट इस तरह से लगाए कि जब भी इंजन घूमे वह बोल्ट भी साथ घूमने लगे। इसके बाद इन बोल्टों के माध्यम से ट्यूबवेल पंप को भी जोड़ दिया। ऐसे में जब भी ज़रूरत पड़ती ट्यूबवेल को बाइक से जोड़ दिया जाता और इंजन चलने के साथ ही ट्यूबवेल भी घूमने लगता और खेतों में पानी देने की समस्या का समाधान हो गया। ऐसे में जब भी बाली को खेतों में पानी देने की ज़रूरत पड़ती वह हर बार इस देसी जुगाड़ से खेतों में सिंचाई करते। अनोखी बात ये रही कि उसी बाइक के माध्यम से घरेलू काम भी किए जा सकते थे और ज़रूरत पड़ने पर ट्यूबवेल के साथ जोड़कर पानी भी निकाला जा सकता था।
30 रूपये घंटे का खर्च
इस देसी जुगाड़ के माध्यम से खेतों में पानी देने का ख़र्चा भी बेहद कम है। बाली की मानें तो इस तरह बाइक के माध्यम से यदि हम खेतों में पानी देते हैं तो एक घंटे का ख़र्च केवल 30 रूपये आता है। जो कि किसी भी तरह से मंहगा नहीं पड़ता। लेकिन यदि हम बिजली के भरोसे बैठे रहते हैं तो केवल इंतज़ार के नाम पर सूखती फसले देखना बचता है।