पेड़ हमारे जीवन दाता हैं, यह बात तो हम सभी को पता है। अभी से नहीं बल्कि पुराने समय से ही पेड़ों का अत्यधिक महत्त्व रहा है। लोग भले ही पेड़ों के महत्त्व को समझें या ना समझें, लेकिन चित्रकूट के एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपना जीवन पेड़ों के नाम कर दिया और आज ‘वृक्ष पुरुष’ कहलाते हैं। वर्ष 2007 में उन्होंने पेड़ों को अपनी ज़िन्दगी का मकसद बनाने की क़सम खाई थी, जिसे वे बखूबी निभा रहे हैं और अब तक 40 हज़ार वृक्ष लगा चुके हैं।
कैसे बने भैयाराम चित्रकूट के ट्री-मैन? (Tree Man of Chitrakoot)
हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के चित्रकूट (Chitrakoot) जिले के भरतपुर गाँव के रहने वाले बाबा भैयाराम यादव (Bhaiya Ram Yadav)की। जिन्होंने पेड़ों को अपनी संतान की तरह पाला है। दरअसल उनकी ज़िन्दगी में एक ऐसी दुर्घटना घटी जिसकी वज़ह से पेड़ों को पालना ही उनका उद्देश्य बन गया।
वह कहते हैं कि “पहले मेरे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं था। फिर मेरा विवाह हुआ और एक बेटा भी हुआ। परन्तु 2001 में मेरी पत्नी बेटे को जन्म देते समय चल बसी, इसके 7 वर्ष बाद 2007 में मेरे बेटे की भी बीमारी की वज़ह से मृत्यु हो गई और मैं अकेला रह गया था। फिर मैंने फ़ैसला किया कि अब मैं दूसरों के लिए जियूँगा ना कि स्वयं के लिए।”
अपने बेटे और पत्नी की मौत से दुखी होकर भैया राम चित्रकूट में भटकते रहते थे। फिर एक बार उन्होंने वन विभाग का एक स्लोगन पढ़ा, जिसमें लिखा था-‘एक वृक्ष 100 पुत्र समान’। उसके बाद वे अपने गाँव भरतपुर में वापस आ गए और वहाँ पर उन्होंने गाँव के बाहर ही जंगल में एक झोपड़ी बनाई और वहीं रहने लगे।
उन्होंने वहाँ पर वन विभाग की खाली पड़ी हुई ज़मीन पर पौधारोपण किया। फिर अपने गाँव से 3 किलोमीटर दूर से वन में पानी ले जाते और उन पौधों को सींचते। कई लोग ऐसा भी सोचते थे कि बेटे और पत्नी के वियोग में भैयाराम का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है, इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं।
11 साल मेहनत करके 5 पौधों को बदला 40 हज़ार पेड़ों में
वे बताते हैं कि “मेरे पिता जी चाहते थे इच्छा थी कि मैं मरने से पहले अपने जीवन में 5 महुआ के पेड़ लगाऊँ। वे मुझे स्कूल तो नहीं भेज पाते थे परन्तु उन्होंने मुझे पेड़ लगाना और फिर उनकी देखभाल करना ज़रूर सिखाया। मैं ये पेड़ अपनी भूमि में नहीं लगा सकता था क्योंकि मुझे डर था कि भविष्य में अगर किसी ने इन पेड़ों को काट दिया तो,”।
फिर धीरे-धीरे जैसे समय बीतता गया, भैयाराम यादव के 5 पौधे, 40 हज़ार पेड़ों में बदल गए। परन्तु अपने इस काम में उन्हें बहुत परेशानियाँ भी आईं। पेड़ों में पानी डालने के लिए गाँव के बाहर पानी का कोई साधन नहीं था अतः उनको रोजाना एक पतली रस्सी के सहारे 20-20 किलोग्राम के दो डिब्बों को कंधे पर उठाकर गाँव से पानी भरकर लाना होता था फिर ही वे अपने पौधों में पानी दे सकते थे। यह प्रक्रिया उन्हें 1 दिन में 4 बार करनी होती थी, पर जो भी हो वे अपने इरादों से पीछे नहीं हटे।
उन्होंने इसके लिए बहुत परिश्रम किया और आखिरकार जिस बुंदेलखंड क्षेत्र को सूखाग्रस्त क्षेत्र कहा जाता था, क्योंकि यहाँ पर वर्षा कम होती है, वहीं अब भैयाराम की मेहनत से बुंदेलखंड की 50 एकड़ ज़मीन पर एक हरा भरा घना जंगल बन गया है। यह उनके 11 वर्षों की तपस्या का ही नतीजा है कि आज बुंदेलखंड सूखी भूमि से हरे-भरे जंगल में परिवर्तित हो गया है।
पेड़ों को पालना है भैयाराम की ज़िन्दगी का मकसद
भैयाराम ने पेड़ों को अपनी संतान की तरह पालने की जो क़सम खाई थी उसे वह बखूबी निभा रहे थे। पेड़ पौधों का पालन पोषण करना ही अब उनके जीवन का एकमात्र मकसद बन गया था। यही कारण है कि उन्होंने अपने आसपास की सारी दुनिया और गाँव वालों से संपर्क भी जैसे समाप्त ही कर लिया था, क्योंकि वह पेड़ पौधों की देखरेख करते हुए जंगल में ही रहा करते थे। जंगल में रहकर वे एक छोटे से स्थान पर अनाज और सब्ज़ियाँ भी उगाया करते हैं ताकि उनका गुज़ारा चल सके।
इसके अतिरिक्त वह कुछ और काम नहीं करते हैं और ना ही उनके पास कोई अन्य आय का स्रोत है। उन्होंने कई प्रकार के पेड़ लगाए हैं जैसे कि महुआ, औरा, इमली, बेल, अनार इत्यादि, इन पेड़ों के फल पक्षियों का बहुत पसंद है, तो इन फलों को पक्षी भी खाया करते हैं। इस प्रकार से भैयाराम के इस कार्य से न सिर्फ़ पेड़-पौधों का पालन होता है बल्कि जीव जंतुओं का भी भरण-पोषण हो जाता है।
सरकार से लगाई मदद की गुहार, पर मदद नहीं मिली
उन्होंने अपने इस कार्य के लिए सरकार से थोड़ी-सी मदद की गुहार की थी। उन्हें सरकार से केवल इतनी ही सहायता चाहिए कि सरकार उनके जंगल में बोरवेल लगवा दे, जिससे पानी का स्रोत होने से पेड़ पौधों की देखरेख करना सरल हो जाए। इस मुद्दे पर उन्होंने बहुत बार सरकारी अफसरों से सहायता के लिए याचना की परंतु अभी तक उन्हें मदद नहीं मिली।
सरकार ने जब भैयाराम की कोई मदद नहीं की तो उन्होंने इस पर कहा-“पर्यावरण दिवस पर सरकार हर एक जिले में पौधारोपण अभियान में लाखों रुपए ख़र्च करती है। परन्तु, उस दिन के बाद फिर कोई भी इन पौधों की तरफ़ पलटकर नहीं देखता और उन्हें मरने के लिए छोड़ देते हैं। जब हमारे यहाँ ऐसे लोग हैं जो अपना समय और साधन ख़र्च करके पेड़ों की देखरेख और पर्यावरण संरक्षण का कार्य करते हैं, ऐसे में सरकार की तरफ़ से कोई सहायता नहीं मिलती है तो हमारा मनोबल टूट जाता है।” उनका यह भी कहना है कि पौधे लगाने वाले तो बहुत लोग हैं पर उनको बचाने वाले नहीं हैं।
उन्होंने अब तक 40 हज़ार पेड़ लगाए हैं, पर अभी भी उनका काम रुका नहीं है वे निरंतर इस कार्य में अग्रसर हैं। अगर सरकारी अधिकारी उनका साथ दें और पानी का स्रोत उपलब्ध हो जाए तो वे पेड़ों की संख्या 40 लाख तक पहुँचाना चाहते हैं। पेड़ उगाना और उनकी देखरेख करना ही उनके जीवन का लक्ष्य है, यह काम भी अपने अंतिम समय तक करना पसंद करेंगे।
कहा-जब तक मैं ज़िंदा हूँ इन पौधों को कोई काट नहीं सकता
भैयाराम अपने इस कार्य से अन्य लोगों को भी पेड़ गाने और उनका संरक्षण करने संदेश देते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो उनके पेड़ों को काटने की और लकड़ियाँ चोरी करने का प्रयास करते हैं, इस वज़ह से भैयाराम को सदैव सावधान रहना होता है, पर प्रश्न यह उठता है कि उनके जाने के बाद इन पेड़ों की देखरेख कौन करेगा?
इस बात पर उनका कहना है कि “फ़िलहाल तो यह ज़िम्मेदारी मैं उठा रहा हूँ और मेरे मरने के बाद दूसरे लोग इस जिम्मेदारी को उठा सकते हैं। फिर बाद में लोग इन पेड़ों की देखभाल करेंगे या इन्हें काटेंगे, क्या पता? पर जब तक मैं ज़िंदा हूँ मेरे होते हुए इन्हें कोई नहीं काट सकता है।” भैयाराम (Bhaiya Ram Yadav) के जीवन से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए और वृक्षारोपण के साथ ही वृक्षों का संरक्षण करने को भी तत्पर होना चाहिए।