अगर कोई व्यक्ति ठीक ढंग से खेती करे तो उससे ज़्यादा मुनाफा शायद नौकरी में भी ना हो और खेती करने पर लोगों को बाहर के शहरों में भी नहीं जाना पड़ेगा अपने घर पर ही आप ख़ुद के रोजगार के साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार प्रदान कर सकते हैं। सभापति शुक्ला (Sabhapati Shukla) भी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने गन्ने की खेती कर आज करोड़पति बन चुके हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर बस्ती से 55 किलो मीटर दूरी पर बसा गाँव केसवापुर के रहने वाले हैं सभापति शुक्ला। इनका गाँव एक ऐसा गाँव है जहाँ के लोगों के पास कोई बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं है जिससे वह अपना जीवन कैसे व्यतीत कर सकें। रोजगार की कमी होने के कारण वहाँ के भी सारे युवा दूसरे शहरों में पलायन कर रहे थे जिसे गाँव का विकास पूरी तरह रुक चुका था। सभापति शुक्ला भी नौकरी करने और पैसे कमाने के लिए बाहर जा सकते थे लेकिन उन्होंने औरों की तरह नहीं किया। वह कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे उनके साथ-साथ पूरे गाँव का भला हो।
बैंक से लोन लेकर गन्ने का क्रशर लगवाया
सभापति शुक्ला का परिवार उनके साथ नहीं रहता था। वह 2001 में किसी पारिवारिक समस्या की वज़ह से घर से दूर एक झोपड़ी बना उन्होंने ख़ुद को अलग कर लिया था। रोजगार के नाम पर उस समय उनके पास कुछ नहीं था। तब उन्होंने बैंक से कुछ लोन लेकर गन्ने का क्रशर लगावाया। वैसे शुरुआत में तो उन्हें उतना फायदा नहीं हुआ। लेकिन धीरे-धीरे वर्ष 2003 तक उन्हें थोड़े फ़ायदे होने लगे। उनका यह मुनाफा ज़्यादा दिन तक चला नहीं और फिर से उनका कारोबार घाटे में चला गया।
इसके बाद भी उन्होंने अपने कारोबार को बंद नहीं किया। हिम्मत से काम लेते हुए उन्होंने पुनः गन्ने को अपने खेत में उपजाकर सिरका बेचने का काम शुरू किया और धीरे-धीरे लोगों को उनका सिरका पसंद आने लगा और उसकी डिमांड भी बढ़ने लगी। इसी के साथ उन्हें एक बार फिर कारोबार में मुनाफा हुआ। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उनके बनाए हुए सिरके का सप्लाई उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों तक होने लगा। कुछ ही समय में सभापति शुक्ला का ये कारोबार करोड़ों रुपए का वार्षिक टर्न ओवर करने लगा और उनका बिजनेस पूरी तरह से हिट हो गया।
2 हज़ार में 200 लीटर सिरके का होता है निर्माण
सभापति शुक्ला ने अपने सिरके के कारोबार को लेकर बताया कि 200 लीटर सिरके के निर्माण में लगभग 2 हज़ार रुपए की लागत आती है और इसकी बिक्री होने पर 2 हज़ार प्रति ड्रम की बचत होती है। शुक्ला ने सिरके के कारोबार के साथ-साथ अचार बनाने का भी काम शुरू किया जिसमें गाँव के ज्यादातर बेरोजगार लोगों को रोजगार दिया।
अब उनके गाँव के लोगों को अपने गाँव में ही रोजगार मिल चुका है जिससे उनकी रोजी-रोटी भी बहुत आसानी से चलती है और उन्हें किसी दूर शहर में भी नहीं जाना पड़ा। शुक्ला की फैक्ट्री राष्ट्रीय मार्ग 28 पर ही चलती है। फैक्ट्री चलाने के साथ वह थोड़े से ज़मीन में खेती भी करते है। उनके यहाँ पशुपालन की कार्य से एक डेयरी भी है। इस तरह अपने कई बिजनेस को एक साथ शुक्ला संभाल रहे हैं।
सभापति शुक्ला ने यह दिखा दिया कि आपके पास एक यही ऑप्शन नहीं होता है कि आप बाहर जाकर नौकरी करें। आप अपने गांव, अपने शहर में भी संसाधनों की तलाश कर सकते हैं और किसी काम को शुरू कर सकते हैं और लोगों को भी रोजगार के नए आयाम दे सकते हैं।