Story of Sweeper Sumitra Devi : एक सरकारी कर्मचारी के जीवन में नौकरी का कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद रिटायरमेंट का दिन बहुत ही अहम होता है, जिसे खास और यादगार बनाने के लिए सम्बंधित विभाग के लोग उस व्यक्ति के लिए विदाई समारोह का आयोजन करते हैं।
लेकिन क्या हो अगर एक स्वीपर यानी झाड़ू लगाने वाले कर्मचारी की रिटायरमेंट पार्टी पर बड़े अफसर शामिल हो जाए और वह अफसर उसी कर्मचारी के बच्चे हों। इस बात पर यकीन कर पाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी ही संघर्ष और गर्व भरी कहानी बताने जा रहे हैं।
मां की रिटायरमेंट पर पहुँचे अफसर बेटे (Story of Sweeper Sumitra Devi)
झारखंड के रामगढ़ जिले में आज से चार साल पहले यानी 2019 में रजरप्पा टाउनशिप में सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) नामक महिला के लिए रिटायरमेंट कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। सुमित्रा देवी ने रजरप्पा टाउनशिप में लगभग 30 सालों तक झाड़ू लगाने और साफ सफाई सम्बंधी काम किया था, ऐसे में साल 2019 में उनके रिटायर होने का वक्त आ गया था।
ऐसे में सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) के सम्मान में टाउनशिप कर्मचारियों और अधिकारियों ने मिलकर एक विदाई समारोह का आयोजन किया था, जिसमें सुमित्रा देवी के तीनों बेटे शामिल हुए थे। लेकिन अपनी माँ के रिटायरमेंट कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले तीनों बेटे पेशे से बड़े अफसर हैं और विभिन्न सरकारी पदों पर कार्यरत हैं।
सुमित्रा का एक बेटा बिहार के सिवान जिले में कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं, जिनका नाम महेंद्र कुमार है। जबकि उनका दूसरा बेटा वीरेंद्र कुमार रेलवे में चीफ इंजीनियर है और तीसरा बेटा धीरेंद्र कुमार मेडिकल अफसर का पद संभाल रहे हैं। सुमित्रा के तीनों बेटे अपने-अपने प्रदेश में वरिष्ठ अधिकारियों की गिनती में आते हैं, जो अपनी स्वीपर माँ के विदाई समारोह में शामिल हुए थे। ये भी पढ़ें – गरीब बच्चों को दान में दे दिए रिटायरमेंट में मिले 40 लाख रुपए, मध्यप्रदेश के सरकारी शिक्षक ने पेश की मिसाल
सुमित्रा के इन तीनों अफसर बेटों के आने से विदाई समारोह में चार चांद लग गए, जबकि उनकी रिटायरमेंट का किस्सा देखते ही देखते पूरे देश में सुर्खियाँ बटौरने लगा था। हालांकि सुमित्रा देवी के लिए अपने तीन बेटों को अफसर की कुर्सी तक पहुँचाना बिल्कुल भी आसान नहीं था, क्योंकि उनका जीवन काफी मुश्किलों से भरा हुआ था।
30 साल तक किया था माँ ने संघर्ष
यह बात सुनने में बहुत अच्छी लगती है कि स्वीपर के साधारण पद पर कार्यरत माँ की रिटायरमेंट पार्टी में तीन बड़े अफसर बेटे शामिल हुए थे, जबकि इस पद पहुँचने के लिए सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) ने 30 सालों तक कड़ा संघर्ष किया था। सुमित्रा देवी की शादी बहुत ही छोटी उम्र में कर दी गई थी, जबकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी।
ऐसे में गरीबी में दिन काट रही सुमित्रा को इस बात का अंदाजा था कि शिक्षा के दम पर ही अपने जीवन को बेहतर किया जा सकता है, सुमित्रा देवी खुद भी पढ़ाई लिखाई करना चाहती थी लेकिन समाज की बेड़ियों के चलते वह ऐसा नहीं कर पाई। ऐसे में सुमित्रा ने घर खर्च में अपने पति का हाथ बंटाने के लिए छोटा मोटा काम करना शुरू कर दिया था।
इस दौरान सुमित्रा ने तीन बेटों को जन्म दिया, जिसके बाद उनके ऊपर परिवार की जिम्मेदारी बढ़ गई थी। ऐसे में सुमित्रा देवी ने बेटों को स्कूल भेजकर अपने उच्च शिक्षा के सपने को जिंदा रखा, जिसे वह अपने बेटों के माध्यम से पूरा करना चाहती थी। लेकिन इस बीच सुमित्रा के पति का निधन हो गया था, जिसकी वजह से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई। ये भी पढ़ें – विवाह के 6 महीने बाद ही हुआ बेटे का निधन, बहु को पढ़ा कर बनाया प्रोफेसर, फिर करवा दी दूसरी शादी
झाड़ू लगाकर बच्चों को किया शिक्षित
ऐसे में पति की मृत्यु के बाद सुमित्रा (Sumitra Devi) की मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आया, जिसके बाद उन्होंने टाउनशिप में झाड़ू लगाने का काम शुरू कर दिया था। इस दौरान सुमित्रा की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह अपने बच्चों के लिए नई यूनिफॉर्म तक नहीं खरीद पाती थी, जबकि बच्चों को रूखा सूखा खिलाकर उनका पालन पोषण करती थी।
सुमित्रा के तीनों बेटे अपनी माँ के संघर्ष और मेहनत को अच्छी तरह से समझते थे, लिहाजा उन्होंने कभी किसी चीज की मांग नहीं की और सरकारी स्कूल में पढ़ाई करके अच्छे नंबर प्राप्त किए। स्कूल की हर परीक्षा में सुमित्रा के तीनों बेटों के अंक अच्छे आते थे, जिससे सुमित्रा का आत्मविश्वास बढ़ता गया।
आसपास के लोग अक्सर सुमित्रा को ताने मारते थे कि एक झाड़ू लगाने वाली औरत अपने बच्चों को कितना पढ़ा पाएगी, क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए पैसे खर्च होते हैं। जबकि सुमित्रा को निचली जाति का होने की वजह से भी ताने सुनने पड़ते थे, लेकिन सुमित्रा सब कुछ सहन करती रही, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि एक दिन उनके बेटे कुछ बेहतर करके सबका मुंह बंद कर देंगे।
हर जन्म में माँ के रूप में चाहिए सुमित्रा
सुमित्रा (Sumitra Devi) के बेटों का कहना है कि उन्होंने बचपन से ही लोगों को अपनी माँ का मजाक उड़ाते हुए देखा है, जबकि कई लोग उन्हें ताने मारते थे। ऐसे में उन्होंने बचपन में ही तय कर लिया था कि पढ़ाई लिखाई करके अच्छा पद हासिल करेंगे, ताकि उनकी माँ का सिर किसी के आगे न झुके।
इसके लिए सुमित्रा के तीनों बेटे लाइट चले जाने की स्थिति में स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करते थे, जबकि कभी-कभी अपने दोस्तों के घर चले जाते थे। इस संघर्ष में सुमित्रा ने अपने बच्चों का खूब साथ दिया और वह देर रात तक पढ़ाई करने वाले बेटों के लिए वहीं खाना लेकर जाती थी।
सुमित्रा के बेटों का कहना है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता है, बल्कि यह सब इंसान की सोच और समझ पर निर्भर करता है। सुमित्रा के बेटे चाहते हैं कि उन्हें हर जन्म में माँ के रूप में वही मिले, जो उनकी ताकत, प्रेरणा और आत्मविश्वास हैं। सुमित्रा और उनके बेटों की कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है, जो परिस्थिति को दोष देकर जीवन में आगे बढ़ने से कतराते हैं।
सुमित्रा (Sumitra Devi) और उनके बेटों ने साबित कर दिखाया है कि अगर इंसान अपने में ठान ले, तो वह शिक्षा के दम पर किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। शिक्षा से न सिर्फ इंसान को इज्जत मिलती है, बल्कि यह इंसान की सोच, समझ, पैसे और सामाजिक हैसियत में भी बढ़ोतरी करती है।
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