History of TATA Group : भारतीय बिजनेस मैन रतन टाटा (Ratan Tata) की पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान है, जिनका उदार व्यवहार हर किसी का दिल छू लेता है। वहीं टाटा समूह (Tata Group) सालों से देश की उन्नति और सफलता के लिए काम कर रहा है, लेकिन इस बिजनेस ग्रुप को खड़ा करने में रतन टाटा की कई पीढ़ियों ने काम किया है।
हालांकि देश के ज्यादातर लोग सिर्फ रतन टाटा (Ratan Tata) के बारे में जानते हैं, जबकि उनकी पिछली पीढ़ियों ने टाटा समूह (Tata Group) को आगे बढ़ाने में अहम योगदान निभाया है। तो आइए जानते हैं कैसे हुई थी टाटा ग्रुप की शुरुआत और इस समूह को पीढ़ी दर पीढ़ी किसने आगे बढ़ाया है- Story of TATA Company
जमशेदजी टाटा ने की थी शुरुआत (Establishment of Tata Group)
जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) को टाटा समूह का जनक माना जाता है, जिन्होंने 1870 के दशक में कपड़ा मिल की नींव रखते हुए उद्योग जगत में कदम रखा था। इसके बाद जमशेदजी टाटा ने भारत में स्टील और पावर इंडस्ट्रीज में काम करने फैसला किया, जिसके बाद उन्होंने देश में तकनीकी शिक्षा (Technical Education) की नींव रखी।
जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) ने भारत का नाम उन औद्योगिक देशों की लिस्ट में शामिल किया था, जो व्यापार के मामले में हमसे कहीं ज्यादा आगे थे। जमशेदजी टाटा ने न सिर्फ टाटा समूह की नींव रखी, बल्कि उन्हें देश भर में उद्योग जगत का वन-मैन प्लानिंग कमीशन माना जाता था।
जमशेदजी टाटा एक परोपकारी सिद्धांत के व्यक्ति थे और भारत को गरीबी से बाहर निकालने की दिशा में काम करना चाहते थे, लेकिन वह दान या चैरिटी में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए जमशेदजी टाटा ने साल 1892 में जेएन टाटा एंडोमेंट (The JN Tata Endowment) की स्थापना की थी, जिसका मकसद युवाओं को शिक्षित करना था।
जेएन टाटा एंडोमेंट (The JN Tata Endowment) की स्थापना से भारतीय युवाओं को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने और देश से बाहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला था, जिसने छात्रों के बीच जाति प्रथा और उच्च नीच के भावना को खत्म कर दिया था। इस तरह टाटा ने शिक्षा के क्षेत्र में नई पहल की, जो आगे चलकर एक बिजनेस ग्रुप का रूप लेने वाला था।
ये भी पढ़ें – Boroline Cream का इतिहास: अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए बनाई गई थी बोरोलिन, आज है हर भारतीय की पहली पसंद
सर दोराबजी टाटा ने संभाला बिजनेस
जहाँ एक तरफ जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) ने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी की शुरुआत की थी, वहीं उनके बेटे सर दोराबजी टाटा (Dorabji Tata) को देश में नए आइडिया के साथ बिजनेस शुरू करने का श्रेय दिया जाता है। सर दोराबजी टाटा को अपने पिता से विरासत में बिजनेस स्किल मिली थी, जबकि वह भी निस्वार्थ मन से सामाजिक कल्याण के लिए काम करना चाहते थे।
इस तरह सर दोराबजी टाटा ने 27 मई 1909 को बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना की थी, जबकि 1912 में अच्छी शिक्षा के लिए इंस्टीट्यूट को डोनेशन भी दिया था। इसके अलावा सर दोराबजी टाटा ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च को डोनेशन देकर वहाँ संस्कृत की पढ़ाई करवाने के लिए एक सीमित का गठन करवाया था।
सर दोराबजी टाटा (Dorabji Tata) ने शिक्षा और व्यापार क्षेत्र के अलावा खेल जगत को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई थी, क्योंकि उन्हें खेलों के प्रति अलग लगाव था। ऐसे में सर दोराबजी टाटा ने 100 साल पहले भारतीय ओलंपिक आंदोलन (Indian Olympic Movement) की नींव रखी थी, जबकि साल 1919 में उन्होंने 4 एथलीट्स और 2 पहलवानों को Antwerp Games में हिस्सा लेने के लिए सभी जरूरी सेवाएँ मुहैया करवाई थी।
इसके बाद देश में भारतीय ओलंपिक संघ (Indian Olympic Association) की स्थापना की गई, जिसके अध्यक्ष सर दोराबजी टाटा (Dorabji Tata) थे। उन्होंने अध्यक्ष के पद पर रहते हुए साल 1924 में पेरिस ओलंपियाड (Paris Olympiad) में भारतीय खिलाड़ियों को भेजने और उनके सारे खर्च संभालने की जिम्मेदारी उठाई थी, जबकि वह खिलाड़ियों को लगातार प्रोत्साहित करते रहते थे। यही वजह है कि देश भर में 23 जून को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस के मौके पर भारतीय ओलंपिक संघ के संस्थापक सर दोराबाजी टाटा (Dorabji Tata) को याद किया जाता है।
सर दोराबाजी टाटा (Dorabji Tata) के प्रयासों की वजह से भारतीय खिलाड़ी पहली बार ओलंपिक में हिस्सा ले पाए थे, जिसके बाद भारत के एथील्टस अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेने लगे थे। ऐसे में शिक्षा और खेल के क्षेत्र में काम करने के बाद सर दोराबाजी टाटा ने देश की आम जनता के लिए काम करने का फैसला किया।
टाटा स्टील और टाटा पावर की स्थापना
इस तरह सर दोराबजी टाटा ने भारत में टाटा स्टीर और टाटा पावर की स्थापना की थी, जिसके जरिए उन्होंने अपने पिता जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) के सपने को हकीकत में बदलने का काम किया था। इसके साथ ही उन्होंने सर दोराबजी ट्रस्ट (Sir Dorabji Tata and Allied Trusts) की भी स्थापना की थी, ताकि डोनेशन के जरिए देश के गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद की जा सके।
इतना ही नहीं सर दोराबजी टाटा ने अपने सारी संपत्ति भी ट्रस्ट में दान कर दी थी, जिसका इस्तेमाल स्थान, राष्ट्रीयता और बिना भेदभाव किए लोगों की मदद करने के लिए किया जाता था। इसके अलावा सर दोराबजी ट्रस्ट देश में शिक्षा और रिसर्च के क्षेत्र में प्रगति के लिए कार्य करता था, जिसने देश में नई क्रांति लाने का काम किया था।
टाटा एयरलाइंस की स्थापना और उसके संस्थापक
टाटा समूह को आगे बढ़ाने का श्रेय जेआरडी टाटा (J.R.D Tata) को दिया जाता है, जो जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई रतनजी दादाभाई टाटा (Ratanji Dadabhoy Tata) के बेटे थे। जेआरडी टाटा भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट थे, जिन्हें विमानों से अत्यधिक प्रेम था। ऐसे में जेआरडी टाटा ने भारत में विमान सेवा शुरू करने का फैसला किया, जिसकी वजह से उन्हें भारतीय नागरिक उड्डयन सर्विस का जनक माना जाता है।
जेआरडी टाटा ने 1 नवंबर 1929 में भारत की कॉमर्शियल फ्लाइट के लिए पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया था, जिसके बाद उन्होंने 15 अक्टूबर 1932 को कराची से बॉम्बे (मुंबई) आने वाली सिंगल सीटर डीएच पुस मोथ कॉमर्शियल फ्लाइट का संचालन किया था। इसी साल जेआरडी टाटा ने भारत में टाटा एयरलाइंस यानी एयर इंडिया की स्थापना की थी, जिसे बाद में सरकार द्वारा खरीद किया गया था।
रतन टाटा, देश के लोकप्रिय बिजनेसमैन
इस तरह टाटा परिवार (Tata Family) ने न सिर्फ अपने बिजनेस को आगे बढ़ाया, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी देश की प्रगति और बेहतरी के लिए भी काम करते रहे थे। रतन टाटा (Ratan Tata) ने स्टील और पावर उद्योग को एक नई ऊंचाई पर ले जाने का काम किया है, जबकि उन्होंने भारत में टाटा मोटर्स (Tata Motors) की भी शुरुआत की थी। टाटा ग्रुप ने महज 9 सालों के अंदर 36 कंपनियों का अधिग्रहण किया है, जिसमें ब्रिटिश ऑटोमोबाइल कंपनी जगुआर और लैंड रोवर का नाम भी शामिल है।
आपको बता दें कि साल 2021 में टाटा संस (Tata Sons) ने एयर इंडिया को खरीद लिया था, जिसकी बाद रतन टाटा ने ट्वीट कर एयर इंडिया को वेलकम बैक कहा था। एयर इंडिया की स्थापना टाटा ग्रुप का हिस्सा रहे जेआर डी टाटा ने की थी, ऐसे में सालों बाद टाट ग्रुप ने एयर इंडिया को दोबारा खरीद कर अपने पुखरों की अमानत को वापस प्राप्त कर लिया है।
ये भी पढ़ें – जानिए भारत में कब आया था पहला कम्प्यूटर और किसे जाता है इसका श्रेय, पढ़िए पूरी कहानी