वर्तमान समय में महिलाएँ ना सिर्फ़ अपने घर की जिम्मेदारी भली-भांति संभाल रही हैं बल्कि ज्यादातर कामकाजी महिलाएँ तो घर व बाहर दोनों ही जिम्मेदारियाँ एक साथ निभा कर अपनी लगन और इच्छाशक्ति का परिचय दे रही हैं। जबकि शहर में रहने वाली या पढ़ने वाली महिलाओं या लड़कियों के बारे में लोग ज्यादातर ऐसा कहते हैं कि शहरों में पढ़ाई करने वाली मॉर्डन लड़कियाँ गाँव की ज़िन्दगी के बारे में नहीं समझ सकती हैं और ना ही गाँव में रह सकती हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। चाहे गाँव से हों या शहर से, आज की महिलाएँ घर से बाहर भी करीब हर क्षेत्र में पुरुषों के समान ही अपनी सहभागिता दर्ज कर रही हैं।
हमारे देश में भी इसके बहुत से उदाहरण देखे जा सकते हैं। इसी दिशा में एक 24 वर्षीय युवती शहनाज खान (Shahnaaz Khan) ने भी गाँव की ही नहीं बल्कि राजस्थान में सबसे छोटी उम्र की सरपंच बनकर एक कीर्तिमान रच दिया। शहनाज़ ने MBBS की पढ़ाई पूरी की और फिर गाँव आकर सरपंच बनीं और उस गाँव की पूरी कायापलट कर दी। चलिए जानते हैं शहनाज ने डॉक्टर से सरपंच बनने का सफ़र क्यों और कैसे तय किया…
शहनाज खान (Shahnaaz Khan) ने 195 वोटों से हासिल की जीत
शहनाज खान (Shahnaaz Khan) राजस्थान (Rajasthan) के भरतपुर जिले के छोटे से गाँव कामा से सम्बन्ध रखती हैं। 5 मार्च को सरपंच पद के लिए उन्होंने चुनाव लड़ा और अपनी जीत दर्ज करके गाँव की सरपंच बन गईं। उनके यहाँ जब सरपंच के पद हेतु उप चुनाव का परिणाम आया तो उसमें शहनाज ने अपने प्रतिद्वंद्वी पक्ष के व्यक्ति को 195 वोटों से हराकर विजय प्राप्त की थी।
शहर में हुआ है शहनाज़ का पालन-पोषण
आपको बता दें कि शहनाज़ का पालन-पोषण शहर में ही हुआ और उन्हें गाँव का अनुभव कम ही है। गाँव से उनका वास्ता बहुत कम ही पड़ा था, क्योंकि जब उनकी छुट्टियाँ लगती थीं, तभी गाँव जाना होता था। उन्होंने शहर में रहते हुए ही MBBS की पढ़ाई की और अब चूंकि वे एक सरपंच बन गई हैं, तो गाँव की दशा सुधारने का जिम्मा शहनाज का होगा, जिसके लिए वे प्रयासरत हैं।
पढ़ाई जारी रखते हुए निभा रही हैं सरपंच की जिम्मेदारी
राजस्थान का मेवात क्षेत्र के लोगों की मानसिकता आज के समय में भी काफ़ी पिछड़ी हुई है। इस इलाके में लड़कियों को घर से बाहर पढ़ाई करने के लिए भी नहीं भेजा जाता है, जिसकी बड़ी वज़ह है वहाँ होने वाले अपराधिक मामले। इसी वज़ह से लोग लड़कियों को घर की चार दिवारी तक ही सीमित रखते हैं। इन हालातों में भी शहनाज ने अपनी हिम्मत व आत्मविश्वास से सरपंच का पद प्राप्त करके लोगों को हैरान कर दिया है। शहनाज अपनी पढ़ाई को जारी रखने के साथ ही सरपंच पद की जिम्मेदारियों का भी निर्वाह करना चाहती हैं। वे पढ़ी-लिखी हैं इसलिए जितना बन पड़े गाँव के विकास हेतु ख़ूब प्रयास कर रही हैं।
सर्वप्रथम बालिका शिक्षा हेतु करेंगी काम
शहनाज़ का कहना है कि वे सर्वप्रथम गाँव की शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए काम करेंगी। वे बालिकाओं के लिए चलाए जा रहे अभियान “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” तथा “सर्व शिक्षा अभियान” के बारे में अपने गाँव के लोगों को जागरूक कर्रके हर घर तक शिक्षा पहुँचाएंगी। जिससे सभी लोग बेटियों की शिक्षा की आवश्यकता को जान पाएंगे।
बुनियादी सेवाओं को गाँव के लोगों तक पहुँचाने का करेंगी प्रयास
शहनाज़ यह भी मानती हैं कि हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लोग शिक्षा, राजनीति व आर्थिक तौर पर काफ़ी पिछड़े हुए हैं। वे इस पिछड़ेपन को समाप्त करके गाँव का हर क्षेत्र में विकास करना चाहती हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि वे कोशिश करेंगी कि सड़क, बिजली, पानी जैसी आवश्यक बुनियादी सेवाओं को लोगों को उपलब्ध करवा पाएँ। इसके साथ ही वे स्वच्छता और स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में भी काम करना चाहती हैं और लोगों को स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना चाहती हैं।
सरपंच रह चुके अपने दादाजी से मिली प्रेरणा
शहनाज ने बताया कि राजनीति क्षेत्र में आने का निर्णय उन्होंने अपने दादाजी से प्रेरणा लेकर लिया था। वे कहती हैं कि पूर्व में मेरे दादाजी इस गाँव के सरपंच रह चुके हैं। परन्तु साल 2017 में कुछ कारणों से कोर्ट ने उनके निर्वाचन को स्थान न देते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया था। फिर उनके परिवार और गाँव में चर्चा होने लगी कि अब चुनाव कौन लड़ेगा? फिर इसी बीच सभी ने कहा कि उन्हें सरपंच बनने के लिए चुनाव में खड़ा किया जाना चाहिए।
हालांकि एक रूढ़िवादी क्षेत्र में शहनाज खान (Shahnaaz Khan) द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त करके सरपंच के तौर पर चुना जाना एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि आधुनिक समय में भी समाज के कई वर्ग ऐसे हैं, जहाँ लड़कियों की शिक्षा व उनके भविष्य को नजरअंदाज किया जाता है। उनकी इस उपलब्धि से सामाजिक व्यवस्था में बदलाव आएगा। अपनी शिक्षा को जारी रखते हुए सरपंच पद के कार्यभार को संभालकर शहनाज़ गाँव के उत्थान के कार्यों को तत्तपरता से कर रही हैं तथा देश के लिए महिला शिक्षा व सशक्तिकरण का एक अनूठा उदाहरण बन गयी हैं।