Vedanta Limited Success Story: वेदांता की गिनती भारत की सबसे प्रसिद्ध कंपनियों में की जाती है, जो सालाना करोड़ रुपए का व्यापार करती है। इस कंपनी के मालिक अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) हैं, जो एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। ऐसे में अनिल अग्रवाल के लिए गरीबी से ऊपर उठकर अपना व्यवसाय शुरू करना और सफल कंपनी की स्थापना करना बहुत ही मुश्किल काम था, लेकिन उन्होंने संघर्ष जारी रखा और इसके दम पर सफलता की सीढ़ी चढ़ने में कामयाब रहे।
कौन हैं अनिल अग्रवाल?
अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) का जन्म 24 जनवरी 1854 को बिहार (BIhar) के पटना (Patna) शहर में स्थित एक छोटे से गाँव में हुआ था, जिनके माता-पिता बहुत ही गरीब थे। ऐसे में उनके लिए अनिल समेत 4 बच्चों का पालन पोषण करना बहुत ही मुश्किल था, ऐसे में अनिल के पिता महज 400 रुपए की कमाई में बच्चों की शिक्षा और अन्य जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते थे। इसे भी पढ़ें – 45 रुपए कमाने वाले अध्यापक ने खड़ी कर दिया करोड़ों का कारोबार, कभी लोगों को सिखाते थे साइकिल चलाना
हालांकि स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनिल अग्रवाल ने कॉलेज में एडमिशन नहीं लिया था, क्योंकि वह अपने घर की आर्थिक स्थिति से परिचित थे। ऐसे में अनिल ने अपने पिता के साथ काम करना शुरू कर दिया, ताकि कुछ पैसे कमाकर घर ला सके। हालांकि उस कमाई से लंबे समय तक घर खर्च चलाना मुश्किल था, इसलिए महज 19 साल की उम्र में अनिक मुंबई चले गए।
मुंबई में शुरू किया मेटल का बिजनेस
मुंबई शहर पहुँच कर अनिल अग्रवाल को असल दुनिया में कदम रखने का एहसास हुआ था, क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार ऊंची इमारतें, काले और पीले रंग की पट्टी वाली टैक्सी और डबल डेकर बस देखी थी। लेकिन इतने बड़े शहर में अनिल के पास न तो रहने का ठिकाना था और न ही खाने के लिए खाना था।
मुंबई जाने के बाद अनिल अग्रवाल ने नौकरी करने के बजाय खुद का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया था, जिसके लिए उन्होंने एक छोटी-सी दुकान किराए पर ली और मेटल का काम करने लगे। लेकिन उस व्यवसाय में अनिल को ज्यादा अनुभव नहीं था, लेकिन 1970 के दशक में उन्होंने मेटल की धातुओं की ट्रेडिंग का काम शुरू कर दिया था।
दिवालिया कंपनी को खरीद कर बने मालिक
इसके साथ ही अनिल विभिन्न राज्यों से सामान खरीद कर मुंबई में बेच देते थे, जिससे उन्हें अधिक कमाई करने में मदद मिलती थी। इस तरह उन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष के दम पर साल 1976 में दिवालिया हो चुकी शमशेर स्टर्लिंग केबल कंपनी को खरीद लिया था, लेकिन उनके पास डाउन पेमेंट देने के लिए पैसे नहीं थे।
ऐसे में अनिल अग्रवाल ने बैंक से 16 लाख रुपए का लोन लिया था, जिसके बाद उन्होंने दिवालिया हुई कंपनी को खरीदने में सफलता हासिल कर ली। लेकिन कंपनी को खरीद लेने के बाद उनके पास वर्कर्स को वेतन देने और कच्चा माल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में कुछ समय बाद उनका केबल प्लांट बंद हो गया था, जिसके बाद अनिल अगले तीन सालों तक बैंक के चक्कर काटते रहे।
दूसरे बिजनेस में भी मिली असफलता
इस स्थिति से बचने के लिए अनिल अग्रवाल ने एल्युमिनियम रॉड समेत डिफरेंट केबल और मैग्रेटिक वायर समेत 9 अलग-अलग बिजनेस शुरू कर दिए थे, लेकिन अनिल को उसमें भी असलफता मिली। इसके बाद अनिल डिप्रेशन में चले गए थे, लेकिन उन्होंने किसी को अपनी खराब स्थिति का पता नहीं लगने दिया।
अनिल अग्रवाल ने व्यायाम और मेडिटेशन के जरिए खुद को डिप्रेशन से बाहर निकाला, जिससे उनकी मानसिक स्थिति में काफी सुधार हुआ था। इसी दौरान साल 1986 में भारत सरकार ने टेलीफोन केबल के प्रोडक्ट्स बनाने के लिए प्राइवेट सेक्टर को मंजूरी दे दी थी, जिसके बाद अनिल अग्रवाल ने एक फिर बिजनेस सेक्टर में कदम रखने का फैसला किया।
स्टरलाइट इंडस्ट्रीज़ की स्थापना
इस तरह 1980 के दशक में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज़ की स्थापना की गई थी, जो आगे चलकर कॉपर को रिफाइन करने वाली भारत की पहली प्राइवेट कंपनी बन गई। अनिल अग्रवाल ने अपनी पहली कंपनी 16 लाख रुपए का लोन लेकर खरीदी थी, जबकि वह लंबे समय तक पैसों के लिए भी मोहताज रहे थे। लेकिन आज अनिल अग्रवाल 3.6 बिलियन डॉलर की संपत्ति के मालिक हैं, जबकि उनका उठना बैठना दुनिया के सबसे अमीर और प्रसिद्ध बिजनेस मैन के साथ होता है।
दानी व्यक्ति हैं अनिल अग्रवाल
अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) जितने अच्छे बिजनेस मैन हैं, उससे कही ज्यादा अच्छे इंसान भी हैं। वह हमेशा लोगों की मदद के लिए दान करते रहते हैं, जबकि कोरोना काल के दौरान भी उन्होंने 150 करोड़ रुपए दान किए थे। अनिल ने यह भी दावा किया है कि वह भविष्य में अपनी संपत्ति का 75 प्रतिशत हिस्सा गरीब समाज के लोगों के लिए दान कर देंगे।
अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) अपनी सफलता का श्रेय अपनी माँ और पत्नी को देते हैं, जिन्होंने हर मुश्किल घड़ी में उनका साथ दिया है। यही वजह है कि अनिल अग्रवाल महिला दिवस के मौके पर हर साल करोड़ों रुपए दान करते हैं, ताकि महिलाओं को आगे बढ़ने में मदद मिल सके। इसे भी पढ़ें – पढ़ने के लिए बेचना पड़ा घर, ठुकराई थी 4 करोड़ की नौकरी, फिर खड़ी कर दी 1.1 अरब डॉलर की कंपनी