विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष लगभग 35 अरब जूते फेंक दिया जाते हैं तो वहीं डेढ़ अरब लोग जूते-चप्पलों के अभाव में खाली पैर रहते हैं और इस कारण उन्हें पैर के इंफेक्शन को झेलना पड़ता है। जूतों को फेंकने का एक कारण होता है उसके ऊपर के कवर का फट जाना या फिर घिस जाना। हम या तो जूतों को फेंक देते हैं या फिर किसी को दे देते हैं।
परंतु आज हम आपका परिचय उन दो दोस्तों से करवाने जा रहे हैं जो इन्हें नया रूप देकर, उसकी डिजाइन को बदलकर फिर से किसी ज़रूरतमंद के पहनने लायक बनाने का महान काम ‘ Greensole” के तहत कर रहे हैं।
21 वर्षीय श्रीयंस भंडारी उदयपुर, राजस्थान के एक संपन्न व्यापारिक परिवार से हैं और मुम्बई के ‘जय हिंद काॅलेज’ से BBA की पढ़ाई की और फिर आगे अमेरिका से MBA, तो वहीं 23 वर्षीय रमेश धामी गढ़वाल उतराखण्ड के एक छोटे से गाँव से हैं। 10 साल की उम्र में घरेलू परेशानी की वज़ह से रमेश ने घर छोड़ दिया और उत्तर भारत के कई हिस्सों में रहे और अपनी जीविका के लिए कई छोटे-मोटे काम किए।
फ़िल्मों में काम करने का सपना लिए रमेश 2 साल बाद मुम्बई की ओर रुख किए। जहाँ पैसे के अभाव में उन्हें फुटपाथ पर सोना होता था और कई बार भूखे रहना पड़ता था। इस दौरान रमेश को नशे की भी लत लग गई जिसके लिए वे छोटे-छोटे क्राईम भी करने लगे थे। फिर वे “साथी” NGO के सम्पर्क में आए जहाँ पढ़ना-लिखना सीखा और वहीं से रमेश को स्पोर्टस में जाने की प्रेरणा मिली।
इस प्रकार ‘श्रीयंस भंडारी’ और ‘रमेश धामी’ की मुलाकात प्रियदर्शनी पार्क में हुई जहाँ वे मैराथन चैंपियन ‘सैवियो डिसूजा‘ से ट्रेनिंग लिया करते थें। उन दोनों का मैराथन धावक होना “ग्रीनसोल” की स्थापना की महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हुई। “ग्रीनसोल” पुराने जूतों की मरम्मत कर उसे फिर से पहनने लायक चप्पल बना कर उन ग्रामीणों और स्कूली बच्चों में बाँटते है जो नंगे पाँव रहने को मजबूर होते हैं।
“ग्रीनसोल” पुराने जूतों की मरम्मत कर उसे फिर से पहनने लायक चप्पल बना कर उन ग्रामीणों और स्कूली बच्चों में बाँटते है जो नंगे पाँव रहने को मजबूर होते हैं। एक जूते के 65 अलग-अलग भागों को 360 चरणों में बनाया जाता है जिससे 30 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड निकलता है जिससे एक 100 वाट का बल्ब एक हफ्ते तक जलाया जा सकता है। इस कार्बन उत्सर्जन की बचत के साथ ही यह ऐसे जूतों से भूमि पर फैलने वाले कचरों से भी बचाता है।
प्रशिक्षण के बाद रमेश सैवियो डिसूजा के असिसटेंट के रूप में काम करने लगे, जहाँ उन्हें 4, 500 रुपये महीने के मिलते थे। इस छोटी-सी आय से पैसे बचा कर रमेश ने एक महँगा स्पोर्टस शूज खरीदा। मगर कुछ महीने बाद ही जूते का उपरी हिस्सा खराब हो गया। मरम्मत करने के बाद भी वह ज़्यादा नहीं चला लेकिन उसके सोल फिर भी मज़बूत थे तो इन्होंने जूते को थोड़ा मोडिफाई कर चप्पल में बदल लिया और इस प्रकार रमेश को पुराने जूतों को चप्पल और सैंडिल के रूप में इस्तेमाल करनें का आइडिया आया।
इस आइडिया को रमेश ने श्रियंस के साथ शेयर किया जो श्रियंस को काफ़ी पसंद आया और इसे उन्होंने ‘जय हिंद कॉलेज’ में प्रेजेंट किया। इस आइडिया की काफ़ी तारीफ हुई और इसनें लाखों रूपये इनाम स्वरुप जीते। इस इनाम राशि में कुछ पैसे डोनेशन से मिला कर और कुछ पैसे अपने घर से लगाकर श्रीयंस ने ₹10 लाख रुपए जमा कर 2014 में ‘ग्रीनसोल‘ नामक एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी लॉन्च किया।
‘ग्रीनसोल‘ मुंबई की एक परंपरागत जूते चप्पल बनाने वाली कॉलोनी ‘ठक्कर बप्पा कॉलोनी‘ में 500 स्क्वायर फीट के किराए के एक कमरे में 5 कामगारों के साथ शुरू हुई जहाँ पुराने जूतों से चप्पल और सैंडल बनाने का काम किया जाने लगा। कंपनी शुरू करने के बाद श्रेयंस एमबीए करने USA चले गए और रमेश कॉलोनी में स्थापित जूतें चप्पलों के कंपनियों में घूम-घूम कर इसकी बारीकियों को सीखने लगें।
“ग्रीनसोल” अब तक एक लाख से भी अधिक चप्पलों और सैंडल्स को महाराष्ट्र और गुजरात की ज़रूरतमंदों को वितरित कर चुका है। आज एक्सिस बैंक, इण्डियाबुल्स, टाटा पावर और DTDC जैसे और भी कई बड़े कार्पोरेट्स इनके इस नेक मुहीम से जुड़ चुकी हैं और कई संस्थाएँ इनके लिए जूते इक्कठे कर रहीं हैं। ये जूतों की मरम्मती के लिए ‘ग्रीनसोल’ को पैसे देते हैं और फिर उन्हें ज़रूरतमंदों के बीच दान कर देते हैं।
जहाँ एक पुराने जूते से नए चप्पल बनाने लगभग 60 मिनट का समय लगता है वहीं उच्चतम तकनीक और व्यवस्था के द्वारा ‘ग्रीनसोल’ में प्रतिदिन 800 जोड़ी का चप्पलों का उत्पादन होता है। ये मज़बूत जूतों को स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया को देकर वहाँ से कमजोर जूतों को ले लेते हैं।
यह गाँव में जाकर उनके ज़रूरत और साइज का सर्वे करते हैं और फिर उस हिसाब से चप्पल / सैंडल बनाते हैं। ‘ग्रीनसोल’ की रिटेलिंग ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से होती है जहाँ से दान देने के लिए या स्वयं के लिए चप्पल खरीदे जा सकते हैं।
इनके पास इंडस्ट्रियल आइडिया और डिजाइन के दो पेटेंट ‘D262161’ और ‘D262162’ हैं। इनके इस पहल की सराहना रतन टाटा और बराक ओबामा जैसे महान हस्तियों ने भी किया है जिसने इन दोस्तों को आत्मविश्वास से भर दिया है। वह दिल्ली और बेंगलुरु में अपनी कंपनी की शुरुआत करने के प्लान में हैं और जल्द ही वे सेलिब्रिटिज के स्लिपर्स को ऑनलाइन ऑक्शन के माध्यम से लोंगो के लिए लाने के प्रयास में भी हैं।
वर्तमान में श्रीयंस ‘ग्रीनसोल’ के मार्केटिंग का काम देखते हैं जबकी रमेश निर्माण, डिजाईन और रिसर्च आदि देखते हैं। आज इनकी एक बड़ी टीम गठित हो चुकी है और कंपनी का टर्नओवर ₹1करोड़ के पार पहुँच चुका है।युवाओं को सफलता टिप्स देते हुए श्रीयंस कहते हैं, “जब भी कोई आइडिया हो तो उसके हर अगले स्टेप पर बढ़ते रहो। अपने आस-पास और उस क्षेत्र में सफल लोंगो से बात करो और आइडिया को इम्पलीमेंट करो।”
समाज के वह वर्ग जो पैसे के अभाव में चप्पल तक नहीं खरीद पाते और नंगे पैर रहने को मजबूर होते हैं जिसके वज़ह से कई बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं को कई बीमारियों से बचाने के लिए श्रीयंस और रमेश का यह पहल निश्चय ही हम सबके लिए एक प्रेरणा है।