वो कहते हैं ना कि हर चीज़ के दो पहलू होते हैं, एक अच्छा और दूसरा बुरा। अब ये पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है कि आप किस चीज़ का सदुपयोग करते हैं और किस चीज़ का दुरूपयोग करते हैं और इन चीजों में एक जो सबसे बड़ा नाम आता है, वह है इंटरनेट का सदुपयोग और दुरुपयोग।
दरअसल महाराष्ट्र के एक परिवार वालों के लिए इंटरनेट इतना वरदान साबित हुआ है कि लगभग 40 वर्षों से गुमशुदा उनकी 94 वर्षीय दादी पंचुबाई लॉकडाउन में इंटरनेट की वज़ह से ही अपने बिछड़े परिवार वालों से मिल गई है। लेकिन उनके लिए एक बहुत अफ़सोस की बात यह है कि उन्हें देखने के लिए अब उनका बेटा जीवित नहीं है।
कब की है यह घटना?
1979-80 के दशक की बात है, एक बार मध्य प्रदेश के एक ट्रक ड्राइवर को बदहवास हालत में एक महिला मिली। वह महिला एमपी के दमोह ज़िले की सड़क पर पैदल चले जा रही थी और उन्हें बुरी तरह से मधुमक्खियों ने काट लिया था और वह कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी। ये सारी बातें ट्रक ड्राइवर खान के बेटे इसरार ख़ान ने पीटीआई को बताई। उनकी हालत देखते हुए ख़ान उन्हें अपने घर ले गए और वह वहीं रहने लगीं
इसरार की उम्र उस वक़्त सिर्फ़ 9 साल थी। उनके परिवार ने दादी से उनके घर के बारे में पूछा, तो उन्होंने खंजमा नगर नाम की एक जगह का ज़िक्र किया लेकिन वैसी किसी जगह का परिवार को पता न चला और दादी सिर्फ़ मराठी ही बोलती थी इसलिए ये लोग उनकी बातें ज़्यादा समझ भी नहीं पा रहे थे।
इस साल 4 मई को जिस वक़्त पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा था, उस वक़्त एक बार फिर इसरार ने पंचूबाई से उनके घर के बारे में पूछा, तो उन्होंने एक दूसरी जगह परसपुर का नाम लिया। फिर खान ने ये जगह गूगल की तो नाम सामने आया और पता चला कि इस नाम से सही में कोई जगह महाराष्ट्र में है और 7 मई को इन लोगों ने परसपुर में दुकान चलाने वाले अभिषेक नाम के एक व्यक्ति से बात की।
अभिषेक किरार समुदाय से हैं, उन्होंने बताया कि पास में ही खंजमा नगर नाम से एक गाँव है और उसी दिन 7:30 बजे इसरार ने पंचू बाई का एक वीडियो बना कर अभिषेक को भेजी और ये वीडियो अभिषेक ने अपने समुदाय के सभी लोगों में शेयर कर दी। और कमाल तो तब हुआ जब रात में पंचूबाई के परिवार के बारे में पता चल गया।
ये वीडियो जब पृथ्वी भैयालाल शिंगणे के पास पहुँची तो उन्हें यक़ीन नहीं हुआ कि ये उनकी दादी है। पृथ्वी नागपुर में रहते हैं। उनका परिवार जल्द से जल्द पंचूबाई को लेने जाना चाहता था लेकिन लॉकडाउन की वज़ह से उस समय यह संभव नहीं हो पाया। आख़िरकार 17 जून को शिंगणे अपनी दादी को घर लेकर आये। दादी का पूरा नाम पंचफुला बाई तेजपाल शिंगणे है। ये परिवार पहले अमरावती ज़िले में आने वाले खंजमा नगर में रहता था लेकिन लगभग 5 दशक पहले नागपुर शिफ़्ट हो गए
कैसे हुई यह घटना?
सन 1979 में पंचूबाई को उनके बेटे दिमागी इलाज़ के लिए नागपुर लेकर आये थे। उनके इलाज़ को लेकर डॉक्टर्स भी आश्वस्त थे, उनका इलाज़ वहीं नागपुर में चल रहा था। फिर अचानक एक दिन पंचूबाई वहाँ से शाम को चली गई, सभी को ये कहकर कि वह अपने बेटे के पास जा रही हैं और उसके बाद वह मिली ही नहीं। उनके बेटे ने उन्हें ढूँढने की बहुत कोशिश की पर वह अपनी माँ को ढूँढने म में असफल रहे। 2017 में पंचूबाई के बेटे की मृत्यु हो गई।
उनके पोते का कहना है कि काश उन्हें अपनी दादी का पता कुछ साल पहले चल जाता तो उनके पिता बहुत ख़ुश होते अपनी माँ को दोबारा पाकर। उनके परिवार को ख़ुशी है कि उनकी दादी पंचूबाई वापस लौट आई हैं।