आज आप और हम जिस दौर में जी रहे हैं, उसमें इंसान को सांस लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन भी नहीं मिल पा रही है। ऑक्सीजन की इस कमी के लिए हम इंसान की ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने शहरीकरण के नाम पर लाखों करोड़ों पेड़ों को बलि चढ़ा दिया है।
जंगलों की कटाई और शहरीकरण के चलते ही आज धरती का तापमान बढ़ रहा है, जिसकी वज़ह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्रों का जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है। फिर इसी बढ़े हुए जल स्तर की वज़ह से तूफान और सुनामी का जन्म होता है, जो एक ही झटके में सैकड़ों ज़िन्दगी को निगल जाती है।
पर्यावरण को लेकर टीचर की शानदार पहल
झारखंड के चाईंबासा इलाके में रहने वाला एक टीचर ने पेड़ पौधों को पानी देने के लिए प्लास्टिक का बेकार बोतलों को इस्तेमाल करने का शानदार तरीक़ा खोज निकाला है। दरअसल राजाबास गाँव के स्कूल टीचर तरूण गोगोई (Tarun Gogoi) काफ़ी लंबे समय से पर्यावरण को बेहतर बनाने को लेकर काम कर रहे हैं, जिसके तहत वह बंजर ज़मीन को फिर से हरा भरा बनाना चाहते हैं।
इस काम के लिए तरूण गोगोई ने बेकार हो चुकी प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें लोग इस्तेमाल करके इधर उधर फेंक देते हैं। तरूण उन्हीं बोतलों को इकट्ठा करते हैं और उसके निचले हिस्से को काटकर अलग कर देते हैं, फिर प्लास्टिक की बोतल के ढक्कन में छोटा-सा होल कर देते हैं।
इसके बाद उस बोतल को ढक्कन की तरफ़ से पेड़ या पौधें की जड़ के पास लगा दिया जाता है और बोतल को किसी लकड़ी की मदद से खड़ा कर दिया जाता है। जबकि बोतल के ऊपरी हिस्से से उसके अंदर पानी भर दिया जाता है, जिसके बाद ढक्कन के छेद से थोड़ा-थोड़ा पानी दिनभर पेड़ पौधों को मिलता रहता है।
पेड़ पौधों को तेजी से बढ़ने में मिलेती है मदद
तरूण गोगोई के मुताबिक इस तरह पेड़ पौधों को पानी देना आसान होता है, साथ ही उन्हें तेजी से बढ़ने में भी मदद मिलती है। तरूण बताते है कि पेड़ पौधों को दिन भर में जितना भी पानी दिया जाता है, वह सारा पानी आसानी से सोख लेते हैं। पेड़ पौधों की सिंचाई के लिए प्लास्टिक की बोतल का इस्तेमाल करने से पानी की बर्बादी भी नहीं होती और पर्यावरण में प्लास्टिक वेस्ट की बढ़ोतरी भी नहीं होती है। इस तरह धीमी गति से पौधों की सिंचाई करने को टपक विधि (Drip irrigation) के नाम से जाना जाता है।
टपक विधि (Drip irrigation) और प्लास्टिक का बेहतरीन इस्तेमाल
तरूण गोगोई अभी तक टपक विधि की चलते अपने गाँव में लगभग 2 हज़ार से ज़्यादा पेड़ पौधों की सिंचाई करते हैं, इसके साथ ही वह नए-नए पौधे लगाकर गाँव में हरियाली बढ़ाने पर भी ज़ोर दे रहे हैं। टपक विधि के चलते चिलचिलती गर्मी और सूखे के मौसम में भी पेड़ पौधों की सिंचाई की जा सकती है, जिसमें बहुत कम पानी ख़र्च होता है।
तरूण गोगोई (Tarun Gogoi) का मानना है कि प्लास्टिक से पर्यावरण को काफ़ी नुक़सान पहुँचता है, लेकिन अलग उसी प्लास्टिक को किसी सही काम में इस्तेमाल किया जाए तो वह फायदेमंद भी साबित हो सकती है। तरूण टपक विधि के लिए पानी की बोतल से लेकर कोका कोला और अन्य पेय पदार्थों की वेस्ट प्लास्टिक बोतल का इस्तेमाल करते हैं।