Success Story of IAS Shweta Agrawal – कई लोगों को जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यंत सँघर्ष करना पड़ता है। उनके संघर्ष की कहानी सभी के लिए प्रेरणा बन जाती है और वे प्रतिभाषाली छात्र अपनी संकल्प शक्ति व मेहनत से असंभव कार्य को भी संभव करते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही एक लड़की से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद IAS बनने का सपना चुना तथा उसे पूरा भी करके दिखाया। हम बात कर रहे हैं श्वेता अग्रवाल (IAS Shweta Agrawal) की।
किराने की एक दुकान पर काम करने वाले व्यक्ति की इस होनहार बेटी ने जो मुकाम हासिल किया है, उससे सिविल सेवा परीक्षा दे रहे विद्यार्थियों को बहुत हौंसला मिलता है। श्वेता ने वर्ष 2016 की सिविल सेवा परीक्षा में 19वीं रैंक प्राप्त की और यह सिद्ध किया कि सच्ची लगन और मेहनत से जो भी काम किया जाए उसमें सफलता ज़रूर मिलती है। उन्होंने अपने जीवन में आने वाली सारी मुश्किलों को पार किया और IAS ऑफिसर बनकर अपने पिता का गर्व से ऊंचा कर दिया।
पिताजी करते थे किराने की दुकान में काम
श्वेता अग्रवाल (IAS Shweta Agrawal) , जो पश्चिम बंगाल (West Bengal) की रहने वाली हैं, उनका जन्म हुगली (Hooghly) के एक मारवाड़ी परिवार में हुआ। उनके परिवार में कुल 28 मेम्बर थे। पैदा होते ही श्वेता को भेदभाव सहन करना पड़ा था, क्योंकि उनके दादा व दादी पोता चाहते थे। परन्तु श्वेता के पिताजी और माँ को इस बात से बिल्कुल फ़र्क़ नहीं पड़ता था। वे अपनी संतान की परवरिश बिना किसी भेदभाव के करते थे।
उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए श्वेता के पिताजी घर चलाने के लिए एक किराने की दुकान पर काम किया करते थे। घर की माली हालत ठीक ना होने की वज़ह से वे अपनी बेटी को किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पा रहे थे। फिर भी उन्होंने श्वेता का स्कूल में एडमिशन कराया तथा कभी भी उनके पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। श्वेता के पिताजी ने कई तरह के काम करके अपनी बेटी की फीस भरी और उसे पढ़ाया।
स्कूल व कॉलेज में टॉपर थीं श्वेता
श्वेता ने बताया कि उन्हें पैसों की इतनी दिक्कत थी कि रिश्तेदार जो थोड़े से पैसे भी भेंट स्वरूप देते थे, उन पैसों को भी वे माँ को ही दे देती थीं, जिससे उनकी स्कूल की फीस इकट्ठा हो सके। होनहार बेटी श्वेता ने ख़ूब मन लगाकर पढ़ाई की और अपने परिवार वालों, विशेष रूप से अपने पिता की उम्मीद को ज़िंदा रखा।
श्वेता को समाज के रूढ़िवादी मानसिकता का भी सामना करना पड़ा। वे बताती हैं की, ‘स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद जब कॉलेज में दाखिला लेना था, तब लोगों ने ताने मारना शुरू कर दिया था की, लड़की को चाहे कितना भी पढ़ाई लिखाई करवा लो, बाद में तो उसे चूल्हा चौका ही संभालना है। मेरे परिवार में किसी ने भी पहले ग्रेजुएशन पूरा नहीं किया था, इसलिए मैं परिवार में पहली लड़की थी, जिसने कॉलेज की पढ़ाई करने का फ़ैसला कर लिया था।’
फिर श्वेता ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने ना सिर्फ़ स्कूल में बल्कि कॉलेज में भी पढ़ाई में टॉपर बनकर अपने परिवार को गर्वित किया। पढ़ाई में अच्छी होने की वज़ह से श्वेता के परिवार वालों को भी लगता था कि एक दिन उनकी बेटी जीवन में कुछ बनकर हमारा नाम ज़रूर रोशन करेगी।
साधारणतया देखा जाता है कि विद्यार्थी एक चीज के लिए सदैव कंफ्यूज रहते हैं और तय नहीं कर पाते हैं कि आगे जाकर उन्हें अपने जीवन में क्या करना है, परन्तु श्वेता के साथ ऐसा नहीं था, दृढ़ निश्चयी श्वेता ने अपना एक लक्ष्य बना लिया था, जिसके तहत वह हर संभव प्रयास करके IAS ऑफिसर बनना चाहती थीं।
शादी के लिए बनाया गया दबाव
श्वेता कहती हैं, ‘मैं जान गई थी कि यदि मैं अपने माता-पिता का बोझ हटाना चाहती हूँ तो उसके लिए पढ़ाई बहुत आवश्यक है।’ हालांकि कॉलेज पूरा करने के बाद श्वेता को एक प्राइवेट कंपनी में अच्छी जॉब मिल गई थी, पर उन्होंने तो हमेशा से ही अफसर बनने का सपना देखा था। इसलिए अपने इस सपने को पूरा करने के लिए श्वेता ने जॉब छोड़ दी और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। परन्तु अभी उनके सामने आने वाली मुश्किलों का दौर ख़त्म नहीं हुआ था।
अब उन पर परिवार व रिश्तेदारों की ओर से शादी करने का दबाव डाला जाने लगा। इस बारे में श्वेता बताती हैं कि ‘ मेरे सभी चचेरे भाई बहन, जिनकी उम्र मुझसे काफ़ी कम थी, उनकी भी शादी हो गई थी। इस कारण अब मुझ पर भी दबाव बनाया जाने लगा था, परन्तु मैं अपने बिल्कुल क्लियर थी कि मुझे IAS ही बनना है।
इस तरह तय किया IAS बनने का सफर
श्वेता ने UPSC परीक्षा की तैयारी करके वर्ष 2013 में पहली बार एग्जाम दिया, जिसमें उन्होंने अंतिम लिस्ट में भी जगह बनाई, पर उनकी 497वीं रैंक आईं थी, जिसके कारण उन्हें मन मुताबिक IAS सर्विस नहीं मिली, बल्कि इंडियन रेवेन्यू सर्विस मिली। इस वज़ह से उन्होंने निश्चय किया कि वे फिर से एग्जाम देंगी। फिर जब उन्होंने दूसरी बार कोशिश की, तब भी क़िस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और इस बार तो वे प्रीलिम्स भी पास नहीं कर पाईं थीं। असफल होने के बाद भी वे हिम्मत नहीं हारी और अपनी तैयारी जारी रखी।
फिर साल 2015 में उन्होंने फिर से एग्जाम दिया और इस बार उनकी 141वीं रैंक आई, परन्तु इस बार भी श्वेता को आईएएस सेवा की बजाय आईपीएस सर्विस मिली। फिर वे साल 2016 में एक बार फिर से परीक्षा में बैठी और आखिरकार उन्हें 19वीं रैंक के साथ उनकी मनपसंद आईएएस सर्विस प्राप्त हुई।
देश की जानी-मानी IAS अधिकारी श्वेता अग्रवाल (IAS Shweta Agrawal) ने साबित कर दिया कि पूरी लगन से किसी काम को करने की इच्छा हो तो उसमें कामयाबी ज़रूर मिलती है, आज उनकी कहानी से जाने कितने युवाओं को संघर्षों से जूझते हुए जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है, क्योंकि जहाँ सभी सुख सुविधाएँ मिलने के बाद भी लोग अच्छा मुकाम हासिल नहीं कर पाते हैं, वहीं श्वेता ने तमाम अभावों के बावजूद कामयाबी प्राप्त कर मिसाल क़ायम की है।