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एक बेटी ने पिता को दी मुखाग्नि, दूसरी पिता की जलती चिता छोड़कर IBPS की परीक्षा देने गई, पहले ही प्रयास में बनी बैंक पीओ

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झारखंड: एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) ने कहा था कि सपने वह नहीं होते जो हम सोते हुए देखते हैं, सपने वह होते हैं जो हमें रात में सोने नहीं देते। इन लाइनों का मतलब स्पष्ट है कि हमें सपने वही देखने चाहिए जो हम पूरे कर पाने में सक्षम हों। उन सपनों को पूरा करने के लिए हम अपनी चैन और नींद खो सकें। वरना वह सपने हमारी नींद के दौरान आए सपनों की तरह अधूरे रह जाते हैं। जिनका बाद में कोई महत्त्व नहीं रहता।

आज हम आपको जिस बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं, वह भी इन लाइनों को मानो चरितार्थ करती-सी दिखाई पड़ती है। उस बेटी ने पहले तो सपना देखा, फिर उसके लिए कड़ी मेहनत की। लेकिन जब उस सपने को पूरा करने की बारी आई तो उसके सिर पर नई आफत आ गई। मानो कुदरत उसकी दूसरी परीक्षा लेना चाहती हो। परन्तु उस बेटी ने कुदरत की इस परीक्षा को बड़ी ही सूझबूझ से पास किया और सफलता पाई। आइए जानते हैं कि क्या है उस बेटी की कहानी।

Source – Hindustan

साक्षी श्रीवास्तव (Sakshi Srivastava)

इस बेटी का नाम साक्षी श्रीवास्तव (Sakshi Shrivastav) है। इनके पिता का नाम स्वर्गीय शैलेन्द्र लाल (Shailendra Lal) और माता का नाम शशि सिन्हा (Shashi Sinha) है। इनका घर बिशुनपुर रोड स्थित शास्त्री नगर में है। इनकी ज़िन्दगी भी हम सभी के जैसी ही आम है। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा संत विनोबा स्कूल से पूरी की है। साथ ही बारहवीं के बाद इन्होंने अपनी पढ़ाई गणित विषय (Math Stream) से पूरी की है। जिसके लिए संत जेवियर कॉलेज रांची में दाखिला लिया। कॉलेज में पढ़ाई पूरी करने के बाद ये घर पर रहकर ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में जुट गई।

बड़ी बहन 2015 में बैंक पीओ के पद पर चयनित हो चुकी है

साक्षी तीन बहनें हैं। जिनमें से सबसे बड़ी बहन का नाम स्नेहा श्रीवास्तव (Sneha shrivastav) है वह साल 2015 में बैंक पीओ के पद पर चयनित हो चुकी है। जो कि फिलहाल ‘बैंक ऑफ बड़ौदा’ में कार्यरत है। साक्षी को अपनी बहन से प्रेरणा तो मिली ही साथ ही उसे समय-समय पर अपनी बहन का उचित मार्गदर्शन भी मिलता गया। जिससे साक्षी का लक्ष्य भी धीरे-धीरे बैंक पीओ की तरफ़ बढ़ता चला गया।

पिता की जलती चिता छोड़कर गई IBPS की परीक्षा देने

साक्षी के जीवन की यही पल बेहद ख़ास है कि उन्होंने जिस परीक्षा की सालों साल तैयारी की, लेकिन जब उसकी परीक्षा की घड़ी सामने आ गई। तो परिवार में ग़म का मातम पसर गया था। क्योंकि उनके पिता श्री शैलेन्द्र लाल का देहांत हो चुका था। ऐसे में साक्षी के सामने चुनौती ये थी कि क्या अब वह परीक्षा देने जाए या ग़म की इस घड़ी में परिवार का साथ दे। लेकिन साक्षी ने कड़ा फ़ैसला लिया और अपने पिता की जलती चिता को बीच में ही छोड़कर परीक्षा देने चली गई।

क्योंकि उनके पिता का सपना था कि उनकी बेटी एक दिन उनका नाम ज़रूर रोशन करे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। जब परीक्षा के नतीजे घोषित हुए तो पता चला कि साक्षी IBPS की परीक्षा पास कर बतौर बैंक पीओ चयनित हो चुकी है। पहली बार में ही जिस तरह से साक्षी ने बैंक पीओ की परीक्षा को पास कर लिया उससे परिवार में मानो दोबारा से खुशियाँ लौट आई।

बेटियों ने बढ़ाया परिवार का मान

एक तरफ़ जहाँ समाज में आज बेटियों को बड़ी ही हीन भावना से देखा जाता है, तो वहीं शैलेन्द्र की तीनों बेटियों ने उनका नाम रोशन करने का काम किया है। आज उनकी सबसे छोटी बेटी समृद्धि श्रीवास्तव ने उनकी मृत्यु पर बेटे की भूमिका में आकर उनको 27 फरवरी को मुखाग्नि दी। जो कि काबिले तारीफ है। साथ ही एक बेटी पहले से ही बैंक पीओ के पद पर चयनित है। साथ ही दूसरी बेटी ने उनके सपने को पूरा करने के लिए उनके अंतिम सफ़र पर भी अपने लक्ष्य को ही प्राथमिकता दी। आज उनकी तीनों बेटियों ने ये एक बार फिर से साबित करके दिखाया है कि यदि बेटियों को सही मार्गदर्शन और उचित माहौल मिले, तो वह भी बेटों की तरह अपने परिवार का नाम गर्व से ऊंचा उठा सकती हैं।

मां को नहीं है बेटा ना होने का मलाल

साक्षी की माँ शशि सिन्हा के आज भले ही तीन बेटियाँ हों, पर उन्हें बेटा ना होने का कोई मलाल नहीं है। वह कहती हैं कि उनकी तीनों बेटियाँ कभी उन्हें बेटे की कमी महसूस नहीं होने देती। आज उनकी बेटियों ने जो कर दिखाया है वह शायद अगर उनके पास कोई बेटा होता तो वह ना कर पाता। साक्षी ने भी अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को दिया है। उन्होंने अपनी इस कामयाबी को अपने पिता को श्रद्धांजलि स्वरूप उन्हें समर्पित किया है। आपको बता दें कि साक्षी के पिता स्वर्गीय शैलेन्द्र लाल जेजे कॉलेज में कार्यरत थे। उनका निधन अभी हाल ही में 27 फरवरी को हो गया था।

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News Desk
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