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विदेश से पढ़ाई कर स्वदेश लौटे, आज गुलाब की खेती कर लाखों कमा रहे हैं ये दोनों दोस्त- पढ़ें कैसे

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आधुनिक युग प्रयोगों का युग है जहाँ आए दिन हर क्षेत्र में प्रयोग देखने को मिलते हैं। कृषि प्रधान देश होने के नाते हमारे देश में कृषि क्षेत्र में भी रोज़ अनेक प्रयोगों को देखने को मिलते हैं। आज के युवा परंपरागत खेती को छोड़कर और अपरंपरागत खेती की तरफ़ ज़्यादा आकर्षित हो रहे हैं और अपने प्रयोगों द्वारा अपने लगन से सफलता की एक नई कहानी लिखते जा रहे हैं। आज की हमारी कहानी ऐसे ही दो दोस्तों की है जो परंपरागत खेती की बजाय गुलाब की खेती कर रहे हैं और लाखों कमा रहे हैं। इनके गुलाब और इसके उत्पाद देश के साथ ही विदेशों तक भी जा रहे हैं।

पंजाब के जालंधर के मनिंदर सिंह और पटियाला के मंजीत सिंह दोनों ने कनाडा से पढ़ाई की और पढ़ाई के दौरान ही दोनों एक दूसरे से परिचित हुए। पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों ने खेती का मन बनाया और देश प्रेम ने उन्हें स्वदेश बुला लिया।

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भारत आने के बाद गेहूँ और चावल की खेती करने के बजाय दोनों ने कुछ अलग प्रकार की खेती करने का मन बनाया और काफ़ी विचार-विमर्श के बाद गुलाब का व्यवसाय करने का निर्णय किया। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित ‘हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी’ से 3 महीने का प्रशिक्षण लिया, जिसमें गुलाब की खेती करना, उससे तेल बनाना और गुलाब जल के लिए रस निकालना आदि को सीखा। उन्होंने संकर क़िस्म की ‘बुल्गारिया रोजा डेमसेना’ का अध्ययन किया था। इसके बाद दोनों ने हिमाचल के शिवालिक के तलहटी में लगभग 25 एकड़ ज़मीन खरीदी जो फूलों की खेती के लिए अनुकूल थी।

मनिंदर और मंदीप जिनके परिजन आज भी परंपरागत खेती करते हैं गुलाब का उत्पादन शुरू कर दिये। हालांकि इसके पहले उन्होंने आंवला का उत्पादन अचार और सॉस बनाने के लिए किया था परंतु उसमें वह असफल हो गए थें। आज गुलाब का उत्पादन कर वह काफ़ी अच्छी कमाई कर रहे हैं।

शुरुआत में दोनों दोस्तों को भारतीय बाज़ार के लिए देशी गुलाब विकसित करने में चार साल का समय लग गया। गुलाब की खेती शुरू करने के कुछ समय के बाद करीब तीन साल में वह न्यूयॉर्क स्थित फ्रेंच कंपनी को गुलाब तेल और गुलाब जल का निर्यात करने लगे। लेकिन उनका यह काम लंबे समय तक नहीं चल पाया क्योंकि उनके ग्राहक एक निश्चित मात्रा में उत्पाद चाहते थे परंतु उत्पादन में उतार–चढ़ाव की वज़ह से ऐसा संभव नहीं हो पाता था इस कारण उन्हें अपने उत्पाद को कम मुनाफे में भारतीय बाज़ार में ही बेचना पड़ता था।

कुछ समय बाद दोनों ने एक क़िस्म की बजाय अलग–अलग क़िस्म की फ़सल उगाने का आइडिया निकाला जिसके बाद से एक दोस्त ‘रेड रोजा बोरबोनियाना’ क़िस्म उगाने लगा तो दूसरा ‘पिंक रोजा दमासेना’ किस्म, जो मार्च–अप्रैल के महीने में छह हफ्ते के लिए खिलती है।

4 एकड़ में फैले ‘रोजा बोरबोनियाना’ से प्रतिदिन फूल तोड़े जाते हैं और उसे कांगड़ा जिले में स्थित ज्वालाजी मंदिर और उना के चिंतापूर्णी मंदिर में भेज दिया जाता है। जून–जुलाई के महीने में उनके गुलाबों की मांग बढ़कर 80 किलोग्राम प्रतिदिन पहुँच जाती है और साल के बाक़ी महीने में गुलाबों की मांग 40 से 60 किलोग्राम प्रति दिन रहती है। गुलाब के फूलों को एक बस के जरिए पहले होशियारपुर भेजा जाता है और उसके बाद इन्हें दोनों मंदिरों में भेज दिया जाता है। मनिंदर और मंजीत खेतों की ऊर्वरता को बनाए रखने के लिए फसलों की समय-समय पर अदला–बदली करते रहते हैं। सफल खेत बनाने के लिए उन्हें 12 साल का उतार-चढ़ाव देखना पड़ा।

वे दोनों गुलाब के फूल को तोड़ने के समय को लेकर बेहद संवेदनशील रहते हैं और फूल को तोड़ने के लिए सूर्योदय के वक़्त या फिर सूर्यास्त से पहले का समय चुनतें हैं क्योंकि इस समय फूल सबसे ज़्यादा सुगंध देते हैं। फूल के उत्पाद को बाज़ार में भेजने से पहले गुलाब के रस की जांच बेंगलुरु स्थित ‘काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च’ के ‘फ्रेगरेंस एंड फ्लेवर डेवलपमेंट सेंटर’ में की जाती है।

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गुलाब जल और गुलाब के तेल को उनके फार्म हाउस पर स्वदेशी तरीके से निर्मित प्लांट में बनाया जाता है जहाँ ये स्थानीय लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहें। ‘रोजा बोरबोनियाना’ गुलाब को प्रतिदिन तोड़ा जाता है और इसके लिए होशियारपुर फार्म पर करीब 35 मज़दूर दिन-रात काम करते हैं। यहाँ प्रत्येक मज़दूर 250 रु प्रतिदिन कमाते हैं। तो दूसरी ओर 10 से 12 साल में एक बार में करीब एक एकड़ में खेती के दौरान उन्हें 40 हज़ार रुपये का ख़र्च आता है और प्रति वर्ष 800 से एक हज़ार किलो प्रति एकड़ पैदावार में पांच हज़ार किलो गुलाब से एक किलो गुलाब तेल तैयार किया जाता है, जिससे उन्हें पांच से छह लाख तक का आय होता है।

गुलाब की खेती में दक्ष हो चुके मनिंदर और मनजीत को अब अच्छे से पता है कि गुलाब को कब और कैसे उगाना है और कैसे तोड़ना है। आज इन दोनों दोस्तों ने हमारे देश की मिट्टी की क्षमता सबको दिखा दिया है। गुलाब की व्यवसायिक खेती ने मनिंदर और मंजीत का भविष्य तो सुनहरा बनाया ही है साथ ही अन्य लोगों को भी प्रेरणा दिया है कि वह भी इस तरह से व्यवसायिक खेती कर अपने भविष्य को खुश्बुओं से भर सकते हैं।

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