रामविलास पासवान एक ऐसे नेता में गिने जाते थे जो शायद ही कभी विवादों के घेरे में आए। राजनीतिक से ज़्यादा उनका व्यक्तिगत जीवन ही विवादों का कारण बना रहा। लेकिन उन्होंने अपनी छवि को हमेशा ऐसे बना कर रखा जिससे कभी कोई विवाद उत्पन्न ना हो।
1969 में पहली बार विधायक के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले रामविलास पासवान अब हमारे बीच नहीं है। पहली बार वह सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे। उन्होंने पूरे 51 साल गुजारे हैं राजनीति में।
बहुत कम लोग ही रामविलास पासवान की निजी ज़िन्दगी के बारे में जानते हैं। अधिकतर लोगों को यही पता है कि उनके सिर्फ़ एक बेटे हैं, जिनका नाम चिराग पासवान है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि पासवान ने दो शादियाँ कीं थी। राजनीतिक क्षेत्र में आने से पहले ही उन्होंने पहले शादी की थी और उनकी पहली पत्नी अभी भी बिहार के खगड़िया जिले में उनके पैतृक आवास में रहती हैं। उनकी दो बेटियाँ हैं, लेकिन पासवान ने आगे चलकर सन 1980 में फिर दूसरी शादी कर ली जिनसे उन्हें एक बेटे चिराग पासवान और एक बेटी है यानी कि उन्हें कुल 4 बच्चे हैं।
ऐसा माना जाता है कि रामविलास पासवान पॉलिटिक्स के विज्ञानी थे, मौसम विज्ञानी से भी शायद कोई गलती हो जाए लेकिन रामविलास से कभी नहीं होती थी। वे जिनके साथ मिल जाते थे उनकी सरकार बन जाती थी। वह कभी ऐसे विवादों में नहीं आए जिससे उनकी छवि पर दाग पड़े। पिछले तीन दशकों से वह कैबिनेट में मंत्री के तौर पर बने रहे, चाहे वह अटल बिहारी वाजपेई की सरकार हो या फिर मनमोहन सिंह की या फिर नरेंद्र मोदी की। इन तीनों के सरकार में उन्होंने बहुत महत्त्वपूर्ण-महत्त्वपूर्ण पदों को संभाला। चाहे वह किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन में हो चाहे उनकी अपनी पार्टी हो, वह जब भी चुनाव लड़े उनका हमेशा चुनाव में रिकॉर्ड मतों से जीतना रिकॉर्ड रहा है।
5 जुलाई 1946 को खगरिया के एक दलित परिवार में रामविलास पासवान का जन्म हुआ था। इमरजेंसी का पूरा दौर पासवान ने जेल में गुजारा। रामविलास पासवान 1977 फिर 1980 और 1989 के लोकसभा चुनावों में बहुत ज़्यादा मतों से जीते। पहली बार उन्हें विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। उसके बाद रामविलास पासवान ने रेल मंत्री से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली।
वह ज़्यादा समय तक केंद्र में ही मंत्री के पद पर और सांसद बने रहें। वह मोदी कैबिनेट में सबसे उम्रदराज मंत्री थे, जिनकी उम्र 74 साल थी। केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद भी हमेशा उनका दिल और दिमाग़ बिहार में ही लगा रहता था। क्योंकि उनकी योजना कोई भी होती थी, बिहार के हिस्से में हीं आता था।
उनका एक सपना जो सपना ही रह गया और वह था बिहार का सीएम बनना। चाहे वह लालू यादव के साथ हो चाहे वह उनके विरोध में लड़े हो चाहे वह अपनी पार्टी से लड़े हो, उन्हें हमेशा केंद्रीय मंत्री से ही संतोष होना पड़ा। पिछले तीन दशक में त्रिमूर्ति नेताओं का अपना बोलबाला रहा है जिसमें, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान इस त्रिमूर्ति का हिस्सा रहे। तीनों एक दूसरे के साथ मिलकर और अलग होकर भी चुनाव लड़े और काम किए लेकिन किसी बात को लेकर विवाद नहीं उत्पन्न हुआ और अगर हुआ भी तो जितनी जल्दी इनके बीच राजनीतिक झगड़ा होता उतनी ही तेजी से सारे विवाद हल भी हो जाते।
कुछ दिनों पहले जब पहली बार जब रामविलास पासवान अस्पताल गये तो पासवान की पार्टी लोजपा, राजद में रहते हुए भी बिहार चुनाव के लिए राजद द्वारा दरकिनार कर दी गई। जबकि नीतीश कुमार जी ने ज़रूर कहा कि अगर आज रामविलास पासवान जी हॉस्पिटल में नहीं होते तो यह मनमुटाव होता ही नहीं। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था वे नीतीश से मनमुटाव दूर करने के लिये हॉस्पिटल से बाहर ही नहीं सके और हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
पिछले कई दिनों से रामविलास दिल्ली के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में अपनी बीमारी को लेकर भर्ती थें और जब इस दुनिया से गए तब उनके बेटे चिराग पासवान ने गुरुवार रात 8 बजकर 40 मिनट पर पापा के साथ अपने बचपन की एक फोटो के साथ एक संदेश ट्वीट कर सबको यह जानकारी दी कि “पापा अब आप इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन मुझे पता है आप जहाँ भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं।” रामविलास पासवान मोदी कैबिनेट में सबसे उम्रदराज मंत्री थे।