हर किसी में भेड़ की चाल चलने की आदत नहीं होती, भीड़ से अलग चलना ही सफल लोगों की निशानी होती है। इसी भीड़ से अलग चलने वाली मेरठ की 25 वर्षीय इंजीनियर बेटी पायल अग्रवाल स्टार्टअप के द्वारा केंचुए से खाद बनाकर ना सिर्फ़ ख़ुद कमा रही हैं बल्कि उन्होंने कई लोगों को रोज़गार भी दिया है।
दरअसल एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली पायल मूल रूप से मेरठ के सदर बाज़ार की रहने वाली हैं, जिन्होंने शुरूआती पढ़ाई के बाद साल 2016 में बीटेक की डिग्री हासिल की। अक्सर लोग कोई भी टेक्निकल पढ़ाई जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल के बाद एक अच्छे सलाना पैकेज वाली नौकरी की तलाश करते हैं और अपनी लाइफ में सेटल होना चाहते हैं और एक फ़िक्स्ड टाइमिंग में नौकरी करके खुश रहते है।
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लेकिन पायल ने अपनी लाइफ़ के लिए कुछ हटकर सोचा और एक अच्छे सालाना पैकेज और भीड़ का हिस्सा ना बन कर अपना कुछ स्टार्टअप करने का फ़ैसला किया, जिससे उन्हें तो रोजगार मिले ही और साथ ही वह दूसरों को भी रोज़गार दे सकें और उसी समय से वह केंचुआ खाद बनाने में जुट गई।
कहाँ से मिला यह आईडिया?
अपने इस आईडिया के बारे में पायल बताती हैं कि वह एक बार राजस्थान गई थी और वहाँ से उन्होंने ख़ुद के बगीचे के लिए केंचुए से बना खाद खरीदा था और उसी समय उन्होंने यह ठान लिया कि वह इंजीनियरिंग करने के बाद इस खाद को बनाने का काम शुरू करेंगी और बचपन से ही धुन की पक्की पायल ने इस काम को करना शुरू भी किया। इसके लिए पायल ने ग्रीन अर्थ ऑर्गेनिक संस्था स्थापित की और किराए पर कृषि भूमि लेकर खाद बनाना शुरू किया। इससे पहले वह अपने बगीचे के लिए ख़ुद से खाद बनाया करती थी।
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वर्तमान समय में पायल उत्तर प्रदेश के अलावा और भी कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे अनेक स्थानों पर इस ऑर्गेनिक खाद को बनाने की यूनिट स्थापित करा चुकी हैं। उनके इस यूनिट के द्वारा हर 2 महीने में कई टन केंचुआ खाद बनाए जा रहे हैं। अगर इस खाद को बनाने की लागत की बात की जाए तो इसकी लागत है लगभग ढाई रुपए प्रति किलो।
केंचुआ खाद क्या है, इसे बनाने की विधि एवं इसकी विशेषताएँ क्या है?
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जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि केंचुआ खाद, केंचुओं द्वारा जब गोबर, घास-फूस, कचरा आदि कार्बनिक पदार्थ निगला जाता है, तब ये सब इनके पाचन तंत्र से पिसी हुई अवस्था में बाहर आता है, उसे ही केंचुआ खाद कहते हैं।
इसे बनाने के लिए सबसे पहले उपयुक्त स्थान को ध्यान में रखते हुए सीमेंट तथा ईंट की पक्की क्यारियाँ बनाई जाती है। क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अँधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर लकड़ी से बने टाटियो और नेट से ढकना ज़रूरी होता है।
क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ घास, सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप में आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना जाता है। अधगले कचरे को क्यारियों में 50 सेमी ऊँचाई तक भर दिया जाता है।
कचरा भरने के 3-4 दिन बाद पत्तियों की क्यारी में केंचुऐं छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक दिया जाता है, जिससे एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे मच्छर, कीड़े-मकोड़े इत्यादि नहीं आते है और इस खाद से दुर्गंध भी नहीं होता है।
फ़िलहाल पायल के साथ-साथ करीब 35 से 40 लोग इस रोजगार से जुड़े हैं, जिससे यह काम बड़े लेवल पर आसानी से हो पा रहा है। खेती करने वालों के लिए यह खाद इतना उपयुक्त है जिससे अच्छी खासी फ़सल उगाई जा सकती है। इस क्षेत्र में पायल ने नया मुकाम हासिल किया है और वह युवाओं को रोज़गार के लिए प्रेरित भी कर रहीं हैं।
Featured Image Source- The Better India – Hindi