रांची में अपनी एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की स्टैबलिश्ड ऑफिस होने के बाद भी राजीव बिट्टू के दिमाग़ में एक बात हंट होती रहती कि हमें ऐसे लोगों को नज़रअंदाज़ नहीं करनी चाहिए जिसकी वज़ह से हम अनाज खरीद पाते हैं खाने के लिए, उन लोगों की वज़ह से हम लोग ज़िंदा हैं। इसी वज़ह से उन्होंने अपनी सीए की नौकरी छोड़ खेती करने का फ़ैसला किया।
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प्रारंभिक शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
वैसे बिहार के गोपालगंज ज़िले के रहने वाले राजीव बिट्टू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार से ही की। इसके बाद उनके पिता जो ख़ुद बिहार सरकार में सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे, उन्हें झारखंड के हजारीबाग के एक हॉस्टल में पढ़ाई के लिए भेज दिया। उसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए रांची शिफ्ट हो गए।
सीए करने के पहले एक बार राजीव ने 1996 में 12वीं करने के बाद आईआईटी के लिए भी प्रयास किया था हालांकि वह इस परीक्षा में सफल नहीं हुए। तब उन्होंने रांची के ही एक कॉलेज में बीकॉम में दाखिला ले लिया और उसी साल उन्होंने सीए में भी इनरोलमेंट करवा लिया।
कैसे शुरुआत की खेती?
कृषि क्षेत्र में आने से पहले राजीव को खेती का बिल्कुल भी अनुभव नहीं था और ना ही खेती करने के लिए उनके पास ज़मीन थी। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने इससे जुड़ी जानकारियाँ जुटाने में लग गए। उन्होंने कई यूनिवर्सिटीज का दौरा किया और कृषि विभाग के प्रोफेसर से बहुत कुछ सीखा। वह जगह-जगह खेतों में गए और किसानों को खेती करते देखा कि वह कैसे खेती करते हैं?
उसके बाद ख़ुद का ज़मीन ना होने की वज़ह से उन्होंने रांची से 28 किलोमीटर दूर ओरमांझी ब्लॉक के कुच्चु गाँव में किसान से उनकी 10 एकड़ ज़मीन को लीज पर लिया और तय हुआ कि राजीव को पूरे मुनाफे का 33 प्रतिशत उस किसान को देना होगा और यहीं से शुरूआत हुई राजीव की खेती की यात्रा।
उन्होंने उस ज़मीन पर खेती के लिए लगभग ढाई लाख रुपए तक ख़र्च कर दिए और उसे खेती योग्य बनाया। पूरे 7 एकड़ में उन्होंने तरबूज और खरबूज की जैविक तरीके से खेती की और अंततः जनवरी के अंत तक उनकी फ़सल तैयार हुई और लगभग 19 लाख रुपए में बिकी भी, जिससे राजीव को 7 से 8 लाख तक का मुनाफा हुआ। इससे उन्हें बहुत ख़ुशी हुई, जिससे वह और भी नए-नए तरीकों को अपनाने लगे। फिर राजीव ने अपने साथ खेती के लिए 40 से 45 मजदूरों को और जोड़ा जो उनके खेतों में काम करते हैं।
किस वाक़ये ने बदल दी उनकी जिंदगी?
राजीव बताते हैं कि सन 2003 में सीए करने के बाद उन्होंने अपनी ख़ुद की ऑफिस खोली, जिससे अच्छी खासी कमाई जैसे 40 से 50 हज़ार तक हो जाती थी। इसी दौरान कुछ सालों बाद 2009 में उन्होंने एक प्लास्टिक इंजीनियर रश्मी सहाय से शादी कर ली। फिर राजीव ने बताया कि एक बार जब वह अपनी 3 साल की बेटी को लेकर अपने गाँव आए जहाँ उनकी बेटी गाँव के लोगों के साथ काफ़ी घुलमिल गई थी और काफ़ी खुश भी थी।
लेकिन एक बार की बात है जब एक किसान ने उनकी बेटी को गोद लेना चाहा तो उनकी बेटी ने उस किसान की गोद में जाने से मना कर दिया, क्योंकि उस किसान के कपड़े में मिट्टी लगी थी। इस बात से राजीव को बहुत आश्चर्य हुआ। वह बहुत आहत हुए इसलिए उन्होंने सोचा कि हमलोग इनके साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हैं जो दिन रात अपने खेतों में मेहनत करके हमारे लिए फल, सब्जी और अनाज इत्यादि उगाते हैं। हमें इनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए और उसी समय उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ खेती करने का फ़ैसला लिया।
अपने खेत अपने पर्यावरण को ही अपना दोस्त अपना सब कुछ मानने वाले राजीव ने उसी गाँव में 13 एकड़ ज़मीन और लीज पर लिया और उसमें भी खेती करने लगे जिसके लिए खेत के मालिक को एक एकड़ के 10 हज़ार देने पड़ते हैं और मालिक अगर उस खेत में काम करना चाहे तो उसके लिए अलग से पैसे देने पड़ते हैं। राजीव अपने खेतों में तरबूज, खरबूज, खीरे, स्वीट कॉर्न, चेरी, टोमैटो आदि की खेती करते हैं। वह अपने खेतों में हुए आधी फ़सल को थोक में तो वही आधी फ़सल को फुटकर में बेचते हैं जिससे उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा लाभ हो।
राजीव अपने खेत में कई कीटनाशक दवाइयों का जैसे नीम और कारंजा कि पत्तियों का उपयोग करते हैं। वह खेत में बीजों को सीधे ना बो कर पहले नर्सरी तैयार करते हैं, उसके बाद ही उसे खेत में रोपते हैं, जिससे उनकी फ़सल बहुत अच्छी होती है।
राजीव का यह भी मानना है कि उनकी सीए की पढ़ाई ने खेती में बहुत सहयोग किया। उन्होंने खेती के लिए कभी ऐसी फ़सल की खेती नहीं कि जिसका वज़न हल्का हो। वह अच्छी से अच्छी फ़सल और ज़्यादा ज़्यादा मुनाफा के लिए काफ़ी टेक्निकल रूप से खेती करते हैं।
क्या है भविष्य का लक्ष्य?
राजीव ने आगे एक करोड़ टर्नओवर का लक्ष्य रखा है। फिलहाल वह लगभग 32 एकड़ ज़मीन में खेती करते हैं, जिससे उन्हें 50 लाख तक मुनाफा होता है। 2016 के अंत तक उन्होंने खेती से 40 से 45 तक का लाख तक का कारोबार किया। राजीव के साथ उनके दो दोस्त और देवराज भी उनकी मदद करते हैं। खेती के साथ-साथ राजीव सामाजिक कार्यों में भी जुड़े है।
वह एक अंकुर रूरल एंड ट्राईवल डेवलपमेंट सोसाइटी भी चलाते हैं जो ग्रामीणों और किसानों को उनकी खेती में मदद करता है। राजीव ने अपना एक नंबर भी 9431701141 पब्लिश किया है, जिसपे लोग खेती से जुड़ी जानकारी के लिए उनसे संपर्क कर सकते हैं।
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