Laxmanrao Kashinath Kirloskar : हर इंसान का जन्म अलग-अलग परिस्थितियों में होता है, कोई जन्म के साथ ही अमीर बन जाता है तो किसी को दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में मुश्किल परिस्थितियों में जन्म लेने वाले ज्यादातर बच्चे अपने जीवन में कुछ बेहतर करने की कोशिश करते हैं, ताकि उन्हें भी हर प्रकार की सुख सुविधा प्राप्त हो सके।
आज हम आपको ऐसे ही एक शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनका पूरा जीवन संघर्ष करते हुए गुजर गया और उन्होंने लोगों के सामने फर्श से अर्श तक पहुँचने की एक बेमिसाल उदाहरण पेश किया है। हम बात कर रहे हैं लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर की, जिनकी गिनती देश के प्रसिद्ध उद्योगपतियों में की जाती थी।
कौन थे लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर? Laxmanrao Kashinath Kirloskar Biography
लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर (Laxmanrao Kashinath Kirloskar) का जन्म 20 जून 1869 में मैसूर के बेलगांव जिले में स्थित गुरलाहोसुर नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था, जिनका बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था। ऐसे में काशीनाथ के पिता ने उनका दाखिला मुंबई में स्थित जे.जे. स्कूल ऑफ ऑर्ट में करवा दिया था, लेकिन वहाँ भी काशीनाथ पढ़ाई न कर सके। इसे भी पढ़ें – 150 रुपए महीने कमाने वाले व्यक्ति ने खड़ी की 1000 करोड़ की कंपनी, जानिए अजंता ग्रुप के सफलता की कहानी
दरअसल जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ते हुए काशीनाथ को एहसास हुआ कि उनकी आंखों में कोई खराबी है, जिसकी वजह से वह रंगों को अच्छी तरह पहचान नहीं पाते थे। इसके बाद काशीनाथ ने मैकेनिकल ड्राइंग करने का फैसला किया और फिर वह मुंबई के विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट में बतौर अध्यापक नौकरी करने लगे थे।
इतना ही नहीं काशीनाथ कोर्लोस्कर (Laxmanrao Kirloskar) इंस्टीट्यूट से फ्री होने के बाद कारखाने में जाते थे, जहाँ वह एक्स्ट्रा काम करते हुए मशीनों को चलाने की जानकारी भी प्राप्त करते थे। इस तरह काशीनाथ अध्यापक होने के साथ-साथ एक मजदूर के रूप में भी काम करते थे, जिसके उनकी कमाई और ज्ञान में वृद्धि होती थी।
Shri. Laxmanrao Kashinath Kirloskarji (20June 1869 –26 September1956) was the founder of the Kirloskar Group and the township of Kirloskarwadi,amongst India’s first industrial townships.He was an entrepreneur who had a love for machines and was passionate @narendramodi @PMOIndia pic.twitter.com/1xBk8RO3N9
— Rajesh.B.R (@rajesh_b_r) June 20, 2020
लोगों को सिखाते थे साइकिल चलाना
आज के दौर में आपने बहुत से लोगों को कार ड्राइविंग की क्लास लेते हुए देखा होगा, लेकिन काशीनाथ वह पहले शख्स थे जिन्होंने भारतीयों को साइकिल चलाने के लिए क्लास देना शुरू किया था। दरअसल काशीनाथ किर्लोस्कर ने एक बार किसी को साइकिल चलाते हुए देखा था, जिसके बाद उनके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न सभी भारतीयों को साइकिल चलानी सिखाई जाए। इसे भी पढ़ें – कभी मामूली किराने की दुकान से की थी शुरुआत, आज है सालाना 100 करोड़ का टर्नओवर
इसके बाद काशीनाथ ने अपने भाई रामुअन्ना के साथ मिलकर साल 1888 में किर्लोस्कर ब्रदर्स के नाम से एक साइकिल की दुकान खोली थी, जिसमें वह साइकिल बेचने के साथ-साथ लोगों को साइकिल चलाने की क्लास भी दिया करते थे। इतना ही नहीं खाली समय में काशीनाथ साइकिल की मरम्मत और उसका पंचर ठीक करने का काम भी करते थे, जबकि उनकी वजह से कई लोगों ने साइकिल चलाना सीखा था।
अध्यापक के पद से दिया था इस्तीफा
काशीनाथ किर्लोस्कर (Laxmanrao Kirloskar) जिस इंस्टीट्यूट में पढ़ाते थे, वहाँ उनकी जगह पर एक एंग्लो इंडियन को प्रमोशन दे दिया गया था। इस बात से काशीनाथ को जरा-सा भी धक्का नहीं लगा, बल्कि उन्होंने तुरंत अध्यापक के पद से इस्तीफा दे दिया था। असल में काशीनाथ किर्लोस्कर पहले से ही इस्तीफा देने का मन बना चुके थे, क्योंकि वह एक कारखाना खोलना चाहते थे।
ऐसे में अध्यापक का पद छोड़ने के बाद काशीनाथ किर्लोस्कर ने बेलगांव में एक छोटा-सा कारखना खोला था, जिसनें चारा काटने वाली मशीन और लोहे का हल बनाने का काम किया जाता था। काशीनाथ का कारखाना बिल्कुल ठीक चल रहा था, लेकिन तभी नगर पालिका द्वारा कुछ नए नियम बनाए गए थे और उसकी वजह से काशीनाथ को अपना कारखाना बंद करना पड़ा था।
#20June_1868 Laxmanrao Kashinath Kirloskar was born. He was the founder of the Kirloskar Group India's largest maker of pumps and valves. His first venture –
— Belagavi Tourism (@BelagaviTour) June 22, 2019
a small bicycle repair shop at #Belagavi. The road on which he started the shop, is today named as Kirloskar Road. pic.twitter.com/wjUhgJWkk4
बंजर जमीन पर बसाई थी किर्लोस्कर वाड़ी
कारखाना बंद होने के बावजूद भी काशीनाथ ने हालातों के आगे हार नहीं मानी, बल्कि उन्होंने महाराष्ट्र में 10 हजार रुपए का लोन लेकर 32 एकड़ जमीन खरीदी थी। वह जमीन एक तरह से बंजर थी, जहाँ नागफनी के पौधे उगते थे और वहाँ ढेरों की संख्या सांप निवास करते थे। इसे भी पढ़ें – एक छोटी-सी नाश्ते की दुकान से भारत का सबसे लोकप्रिय ब्रांड बनने तक का सफर
लेकिन काशीनाथ किर्लोस्कर (Laxmanrao Kirloskar) हमेशा लीक से हटकर काम करते थे, इसलिए तो उन्होंने 32 एकड़ बंजर जमीन पर किर्लोस्कर वाड़ी बसाने का फैसला किया था। इस काम के लिए उन्होंने अपने भाई रामुअन्ना की मदद ली और एक टाउनशिप शुरू करने की योजना बनाई थी।
इतना ही नहीं किर्लोस्कर वाड़ी को बसाने के लिए काशीनाथ ने ऐसे लोगों का चुनाव किया था, जिन्हें दूसरी जगह नौकरी तक नहीं दी गई थी। इन लोगों में इंजीनियर शंभुराव जम्भेकर, एक असल विद्यार्थी के. के. कुलकर्णी, स्कूल ड्राफ आउट अनंतराव फाल्निकर, कुख्यात डकैत पिर्या मांगा और अकाउंटेंट मंगेशराव का नाम शामिल था।
इस तरह काशीनाथ ने अपनी 25 लोगों की टीम के साथ बंजर जमीन का रंग रूप पूरी तरह से बदल दिया था, जबकि उसकी जगह शानदार टाउनशिप और औद्योगिक इकाई को खड़ा कर दिया था। लेकिन उस जमीन पर बनाई गई फैक्ट्री में तैयार होने वाले हल को बेचने में काशीनाथ को 2 साल का समय लगा था, क्योंकि किसानों का अंधविश्वास था कि बंजर पर बने हल से खेती नहीं हो सकती है।
लेकिन काशीनाथ ने न सिर्फ किसानों के अंधविश्वास को दूर किया, बल्कि किर्लोस्कर वाड़ी के बाद उनकी किस्मत पूरी तरह से बदल गई थी। इसके बाद काशीनाथ ने बैंगलोर, पुणे और मध्य प्रदेश के देवास शहर में अपनी औद्योगिक इकाई शुरू कर दी थी, जहाँ वह खेती और फैक्ट्री में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न उपकरण और मशीनें बनाई जाती थी।
काशीनाथ किर्लोस्कर (Laxmanrao Kirloskar) अध्यापक के रूप में 45 रुपए प्रति महीना कमाते थे, लेकिन उन्होंने अपना कारोबार शुरू करके लाखों रुपए की कमाई की थी। इतना ही नहीं उन्होंने किर्लोस्कर ग्रुप के जरिए सैकड़ों लोगों को नौकरी भी दी थी, जबकि किसानों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों का जीवन भी आसान बनाया था।
वर्तमान में किर्लोस्कर ग्रुप की सालाना कमाई 2.5 बिलियन डॉलर्स से भी ज्यादा है, जबकि साल 2015 में इस ग्रुप का कुल मार्केट कैप 9684.8 करोड़ रुपए था। भारत में एक बेहतरीन उद्योग की शुरुआत करने वाले लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर का निधन 26 सितंबर 1956 को हुआ था, लेकिन उनका जीवन हर किसी के लिए मार्गदर्शन बन है। इसे भी पढ़ें – कभी 100 रुपए में किया था ऑफिस बॉय का काम, आज धान की पराली से प्लाईवुड बनाकर कमा रहे हैं करोड़ों रुपए