हम में से जितने भी लोग सरकारी सेवाओं में रहते हैं। अक्सर उनके रिटायरमेंट से पहले के कुछ साल इस बात को सोचने-विचारने में बीत जाते हैं कि हम रिटायरमेंट के बाद क्या करेंगे। कुछ लोग रिटायरमेंट के बाद अपने गाँव में जाकर रहने का फ़ैसला कर लेते हैं। कुछ लोग अपने बच्चों के ऊपर निर्भर हो जाते हैं। बहुत से लोग नौकरी के बाद देश भ्रमण का भी फ़ैसला कर लेते हैं। ताकि देश को जाना और समझा जा सके। इस दौरान वह बड़े-बड़े मंदिर और ऐतिहासिक जगहों की यात्रा करते हैं।
लेकिन आज हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं, वह इन सभी से अलग है। इसमें सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद एक दंपत्ति ने जीवन को आरामदायक ना बनाकर खेती-बाड़ी से जुड़ने का फ़ैसला किया। इसी खेती बाड़ी से ही आज वह दंपत्ति एक नई मिसाल बनकर उभरा है। आइए जानते हैं क्या है उस दंपत्ति की कहानी।
ये है वो दंपत्ति
बात साल 2017 की है। कनक लता (Kanaklata) के पति वासुदेव पांडेय (Vasudev Pandey) एक सहकारी बैंक में नौकरी करते थे। इसी साल उनकी रिटायरमेंट होने वाली थी। लेकिन रिटायरमेंट के बाद परेशानी इस बात कि थी उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी पेंशन नहीं मिलने वाली थी। ऐसे में वासुदेव पांडेय ने रिटायरमेंट के बाद कुछ समय तक अमेरिका में रह रहे अपने बेटे के साथ वक़्त गुजारा। लेकिन जीवन भर बैंक में रहकर अपने देश की सेवा में लगे रहे वासुदेव पांडेय को विदेशी ज़मीन ज़्यादा दिन रास नहीं आई। इसलिए यूपी के मिर्जापुर से 30 किलोमीटर दूर विट्ठल पुर नामक अपने गाँव में वापिस आ गए। पेंशन ना होने के चलते यहाँ भी उन्हें आजीविका चलाने के लिए खेती का सहारा लेना पड़ा।
गांव में शुरू की खेती
वासुदेव पांडेय जीवन भर सरकारी सेवा में लगे रहे। ऐसे में उन्हें खेती का कभी कोई अनुभव नहीं था। लेकिन फिर भी गाँव की डेढ एकड़ ज़मीन पर खेती करने का फ़ैसला किया। 57 वर्षीय कनक लता बताती है कि वह बचपन से ही अपने दादाजी को गाँव में खेती करते हुए देखती आई थी। क्योंकि वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। इसी को आधार बनाते हुए कनक लता और वासुदेव पांडेय ने अपने खेत में गेहूँ, टमाटर और मटर उगाना शुरू कर दिया। एक तो खेती से अनजान ऊपर से आधी अधूरी जानकारी हासिल करके खेती करने में उन्हें कुछ फायदा नहीं हुआ। उनकी उपज को देखकर गांव वाले भी उनका मज़ाक बनाने लगे। लोग कहने लगे कि वह कम उर्वरता वाली ज़मीन पर खेती कर रहे हैं।
खेती में अपनाए वैज्ञानिक तरीके
कनक लता बताती हैं कि सब कुछ देखने के बाद उन्होंने वैज्ञानिक ढंग से खेती करने का फ़ैसला किया। वैज्ञानिक पद्धति अपनाने के बाद आज हर दिन 7 क्विंटल टमाटर का उत्पादन हो रहा है। इसके साथ ही इन टमाटरों की मांग यूनाइटेड किंगडम और ओमान के अंदर भी ख़ूब हो रही है। आइए आपको बताते हैं कैसे उन्होंने अपनाई वैज्ञानिक पद्धति…
50 हज़ार का लिया कर्ज
कनक लता का कहना है कि उन्होंने सबसे पहले चेतना कृषि केंद्र निर्माता कंपनी से संपर्क किया। जो कि नाबार्ड की एक सहयोगी संस्था है। जिस दौरान उन्हें पता लगा कि जैविक खेती के लिए उन्हें कुछ बदलाव करने पड़ेंगे। पैसों की कमी के चलते उन्होंने दिल्ली स्थित एक ‘प्रयत्न संस्था’ से 50 हज़ार रुपए का कर्ज़ लिया। ताकि खेत को जैविक खेती के उपयुक्त बनाया जा सके।
टमाटर से की शुरुआत
कनक लता ने सभी जानकारी लेने के बाद खेत में टमाटर उगाने का फ़ैसला किया। वह फिलहाल दो क़िस्म के टमाटर उगाती हैं। जिनका नाम है दुर्ग और आर्यमन। ये दोनों क़िस्म बेहद उपयोगी हैं। कनक लता ने दुर्ग क़िस्म के टमाटरों की पहली उपज 2020 में ली थी। इस दौरान उन्हें सामान्य टमाटरों के मुकाबले हर ट्रे पर करीब सौ रुपए का अतिरिक्त फायदा हुआ। इन टमाटरों की ख़ास बात ये है कि सामान्य टमाटरों के मुकाबले इनको ज़्यादा दिनों तक रखा जा सकता है। साथ ही ये कम खट्टे होने के साथ ज़्यादा रसीले भी होते हैं।
ढाई लाख की है आमदनी
उनकी उपज को देखते हुए ज़िला बागवानी अधिकारी मेवाराम ने भी उनके खेत का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने खेत में मिट्टी के सैंपल भी लिए। जानकारों की मानें तो ये टमाटर दो सप्ताह तक बिना फ्रिज में रखे भी सुरक्षित रखे जा सकते हैं। साथ ही देसी टमाटर के मुकाबले ज़्यादा गोल और लंबे होते हैं।
कनक लता अपनी खेती को लेकर दावा करती हैं कि अब वह हर दिन करीब 50 टोकरी टमाटर रोजाना तोड़ रही हैं। इससे उनकी अच्छी कमाई हो रही है। बाज़ार जाने वाली हर पेटी में करीब 25 किलो टमाटर होते हैं। इससे होने वाली आमदनी से उन्हें प्रयत्न संस्था का कर्ज़ चुकाने में भी मदद मिली। कभी जिस खेती का लोग मज़ाक उड़ाया करते थे आज कनक लता और वासुदेव पांडेय मिलकर उसी खेती से 2.5 लाख की आमदनी ले रहे हैं। जो कि समाज के लिए एक मिसाल है।