भारत में नियमो की बात करें तो ऐसे में शायद हर देश हमसे पीछे रह जाए लेकिन बात हो कि उन नियमो को सरकारी ऑफिसों में कितना फॉलो किया तो शायद हमारा नंबर सबसे अंतिम नंबर पर आए, क्योंकि यहाँ टैलेंट को सराहा तो जाता है लेकिन सपोर्ट नहीं किया जाता यहाँ कह दिया जाता है कि खिलाड़ी ने उत्कृष्ट कार्य किया लेकिन उस खिलाड़ी के टैलेंट को निखारने की बात हो तब सब पीछे हो जाते हैं।
आज हम एक हमारे देश की होनहार खो-खो खिलाड़ी की बात कर रहे हैं जिन्हें जब मौका मिले तो इन्होंने अपने शहर इंदौर के नाम को ऊंचा उठा दिया, इनकी उपलब्धि के बारे में बताने से पहले हम आपको इनके बारे में कुछ बता दे रहे हैं।
इंदौर के एक शौचालय कर्मचारी की बेटी ने मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय खो-खो के खेल में प्रतिष्ठित विक्रम पुरुष्कार जीता था, जिनका नाम जूही झा है, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि ये पुरस्कारजूही ने 2018 में जीता था लेकिन अभी तक इनको खेल कोटे से कोई भी सरकारी नौकरी नहीं मिली है, विक्रम पुरस्कारका नियम ये है कि विजेता खिलाड़ी को सरकारी नौकरी खेल कोटे के द्वारा आवंटित की जाती है लेकिन विगत वर्षों में अब तक जूही को कोई नौकरी नहीं मिली है। ये भी पढ़ें – चाय वाले की होनहार बेटी ने कमाल कर दिखाया, बनीं लड़ाकू विमान की पायलट
जूही के पिताजी सुबोध कुमार झा जो कि नगर पालिका के किसी शौचालय में कार्यरत थे और उसी शौचालय के साथ एक छोटा-सा कमरा भी था जूही ने अपने परिवार के साथ 12 साल उस शौचालय में रहकर गुजारे जहाँ पर रहकर माँ सिलाई का काम करती थी, माता-पिता की कमाई को मिलाकर बड़ी मुशिकल से घर चला लेकिन जूही ने अपनी पढ़ाई और खेल की प्रैक्टिस चालू रखी, जूही इस समय B. Com. कर रही है और आगे पढ़ने की भी इक्छुक है।
जब इन्हें सूचना मिली की इन्हें सम्मानित किया जाएगा भोपाल में तो इन्हें बेहद ख़ुशी हुई लेकिन आपको बता दें कि इनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि ये ट्रैन में रिजर्वेशन से भोपाल जा सकें बल्कि जनरल बोगी में बैठकर ये भोपाल पहुँची थीं, 2018 में तत्कालीन खेल मंत्री जी ने इन्हें विक्रम सम्मान से इन्हें सम्मानित किया, उस वर्ष इंदौर से विक्रम पुरस्कारविजेता ये पहली महिला खिलाड़ी थीं।
जूही के पिता जी की भी नौकरी चली गई और अब जूही के परिवार का पूरा बोझ जूही और उनकी माँ पर आ गया है जूही की माँ सिलाई करती हैं और जूही किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने जाती हैं, अब जूही का परिवार वाणगंगा में किसी किराए की एक झोपड़ी में रहता हैं, जूही आएँ दिनों सरकारी कार्यालयों में चक्कर लगा रही हैं और बजह है कि अगर जूही को कोई सरकारी नौकरी मिल जाए तो बो अपने परिवार की आर्थिक स्थित में मदद कर सकें जिससे परिवार को साहूलियत हो।
बात जब उच्च अधिकारियों से पूछी गई तो बोले कि प्रकरण चल रहा है, कोटे से सम्बंधित सारे सरकारी कार्यालयों में बात चल रही है जल्द ही वैकेंसी देखकर जूही को नौकरी दी जाएगी। खैर हम तो कहेंगे जूही को जल्द से जल्द नौकरी मिले और वे अपबे जीवन को असीम उचाईयों तक ले जाएँ।