लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती…
डॉ. हरिवंश राय बच्चन की यह पंक्तियां राजस्थान के बीकानेर के रहने वाले प्रेमसुख डेलू पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। प्रेमसुख की दृढ़ इच्छाशक्ति का नतीजा है कि, उन्होंने अपने एकमात्र लक्ष्य आईपीएस पद को प्राप्त करके ही दम लिया। अपने जुनून, पक्की लगन और कठिन मेहनत से उन्होंने इस लक्ष्य को हासिल किया। ये भी पढ़ें – पंचर की दुकान चलाने वाले Varun Baranwal ने यूपीएससी में हासिल की 32वीं रैंक
बचपन से ही लगता था पढ़ाई में मन
प्रेमसुख देलू राजस्थान के बीकानेर के रहने वाले हैं। बचपन से उनका पढ़ाई में खूब मन लगता था। दसवीं कक्षा में ही उन्होंने निर्धारित कर लिया था कि, उन्हें सिविल सेवा में जाना है और इसके लिए उन्होंने कठिन मेहनत करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपनी जीवनशैली इतनी कठोर बनाने की थी कि उनके शिक्षक को समझाना पड़ा कि अगर उन्हें अपना लक्ष्य प्राप्त करना है, तो उन्हें 6 घंटे की नींद लेना आवश्यक है।
प्रेमसुख हिंदी माध्यम के छात्र थे। उन्होंने इतिहास विषय से एम.ए. की परीक्षा ना सिर्फ उत्तीर्ण की, बल्कि अपने कॉलेज में टॉप किया था। इसके लिए उन्हें कॉलेज की ओर से गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
6 साल में लगी 12 सरकारी नौकरियां
प्रेमसुख की कड़ी मेहनत और निरंतर पढ़ाई में मन लगाने का नतीजा यह था कि 6 साल में उनकी 12 सरकारी नौकरियों में लगीं। साल 2010 में उनकी पहली नौकरी पटवारी के रूप में लगी। 2 साल वह पटवारी के रूप में कार्य करते रहे और साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। उसी दौरान उनका चयन ग्रामसेवक परीक्षा में भी हुआ। इसमें उन्हें प्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ।
उसके बाद उनका चयन राजस्थान पुलिस में एसआई(सब इंस्पेक्टर) के पद पर हुआ। सब इंस्पेक्टर के बाद वह राजस्थान पुलिस में असिस्टेंट जेलर के रूप में कार्यरत हुए। उन्होंने बीएड और नेट की परीक्षाएं भी उत्तीर्ण की। उनका चयन एक कॉलेज में लेक्चरर के पद पर भी हुआ।
इन सबके बीच प्रेमसुख यूपीएससी परीक्षा के लिए तैयारी करते रहे। पहले प्रयास में उनका चयन राजस्थान प्रशासनिक सेवा में तहसीलदार के पद पर हुआ, किन्तु प्रेमसुख का एकमात्र लक्ष्य आईपीएस बनना था। अंततः दूसरे प्रयास में प्रेमसुख देलू को यूपीएससी परीक्षा में 170वीं रैंक के साथ सफलता प्राप्त हुई और उनका आईपीएस बनने का सपना पूरा हुआ।
माता-पिता तथा भाई को देते हैं श्रेय
प्रेमसुख देलू अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और भाई को देते हैं। हिंदी माध्यम का होने के कारण लोग उनके आईपीएस बनने के सपने पर हंसते थे, लेकिन उनके माता-पिता और भाई ने उनका हमेशा सहयोग किया और उनके सपनों पर विश्वास किया।
उनकी सफलता ने इस धारणा को भी बदला है, जिसके अनुसार हिंदी माध्यम के लोगों का चयन यूपीएससी में मुश्किल होता है। वर्तमान में प्रेमसुख देलू अमरेली के एसीपी के पद पर कार्यरत हैं और पूरी लगन व निष्ठा के साथ देश सेवा में लगे हुए हैं।
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