अक्सर महिलाओं को घर में पूरे दिन काम करने के बावजूद भी उनके काम को बहुत ही आसान समझा जाता है और उनके घर के कामों को कोई सैलरी भी नहीं मिलती। एक बार फिर से यह सारे मुद्दे चर्चा में आ चुके हैं।
कमल हसन जो एक बहुत बड़े अभिनेता रह चुके हैं, फिलहाल वह राजनीति में है। इन्होंने एक बार फिर से गृहणियों द्वारा किए जाने वाले कामों को सैलरी वाले प्रोफेशन में बदलने की चर्चा शुरू कर दी है। राजनीति में अपना क़दम रख चुके कमल हसन की पार्टी का नाम MNM है, जो इस साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार है। कमल हसन ने लोगों से यह वादा किया था कि “होममेकर्स को घर पर अपने काम के लिए भुगतान के माध्यम से उनकी उचित मान्यता दी जाएगी जो महिलाओं की गरिमा के लिए अच्छा है।”
सुप्रीम कोर्ट का क्या बयान आया
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस विषय पर कहा था कि अगर घर में एक महिला पूरे दिन काम करती है, तो यह ऑफिस में काम करने वाले उसके पति से किसी तरह से कम नहीं है।
उच्च अदालत में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए दंपति के राशि की सुनवाई पर बहस हो रही थी। जिसमें ट्रिब्यूनल ने एक बीमा कंपनी को उस परिवार को मुआवजे के रूप में 40.71 लाख रुपये देने का आदेश भी दिया था, लेकिन बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बहस के दौरान एक अपील को सुनने के बाद इस राशि को घटाकर 40 लाख रुपए से 22 लाख रुपये कर दिया।
राशि में कटौती के बाद उस मृतक के घरवालों ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दी, जिसमें मंगलवार को न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने इस आदेश को आंशिक रूप से पलट दिया। जिसके बाद बीमा कंपनी द्वारा मई 2014 से 9% वार्षिक मुआवजा 11.20 लाख रुपये बढ़ाकर 33.20 लाख कर दिया गया।
इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि गृहणियों के लिए भी किसी तरह की उल्लेखनीय आय की गणना की जाए और 2011 की जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति रमना ने यह भी कहा कि लगभग 159.85 मिलियन महिलाओं ने केवल 5.79 मिलियन पुरुषों के खिलाफ “घरेलू काम” का उल्लेख है।
न्यायमूर्ति रमणा ने ऑफिस टाइम न्यूज़ इन इंडिया-2019 नामक राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की हाल की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने यह कहा था कि औसतन रूप से महिलाएँ अपने घर के सदस्यों के लिए बिना वेतन के घर के कामों और सेवाओं पर अपना प्रतिदिन लगभग 299 मिनट ख़र्च करती हैं, जबकि पुरुषों द्वारा सिर्फ़ 97 मिनट का समय ख़र्च किया जाता है।
न्यायमूर्ति रमणा ने यह भी कहा कि इस तरह एक दिन में औसतन महिलाएँ 134 मिनट घर के सदस्यों की देखभाल पर ख़र्च करती हैं, जबकि पुरुष सिर्फ़ 74 मिनट ही ख़र्च करते हैं। महिलाएँ औसतन 16.9% और अपने दिन का 2.6% बिना वेतन का समय घरेलू सेवाओं और घर के सदस्यों पर ख़र्च करती हैं। जबकि पुरुष 1.7% और 0.8% तक अपना समय घर पर ख़र्च करते हैं।
इस तरह न्यायमूर्ति रमना ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि ” एक गृहिणी अक्सर पूरे परिवार के लिए खाना बनाती है, किराने का सामान और अन्य घरेलू खरीदारी की ज़रूरतों का प्रबंधन करती है। इसके साथ ही महिलाएँ अपने घर और आस-पास की सफ़ाई और प्रबंध करती है। इसके बाद सजावट, मरम्मत और रखरखाव का उनका काम अलग होता है। महिलाएँ ही ज्यादातर बच्चों की ज़रूरतों और किसी भी वृद्ध सदस्य की देखभाल भी करती है। महिलाएँ बजट का भी प्रबंधन करती हैं और इसके साथ ही बहुत ऐसे काम होते हैं जिनकी गिनती करना मुश्किल है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर बनाने वालों के लिए एक संवैधानिक आय को तय करना एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है, क्योंकि यह इस बात का संकेत देता है कि वे ” परिवार की आर्थिक स्थिति और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में भी वास्तविक तरीके से अपनी भूमिका निभाते हैं। इस सारी तथ्यों की परवाह किए बिना ही इसे पारंपरिक रूप से आर्थिक विश्लेषण से बाहर रखा गया है।
इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि यह “सामाजिक समानता की संवैधानिक दृष्टि की दिशा में एक बेहद महत्त्वपूर्ण क़दम है जो सभी व्यक्तियों के लिए जीवन की गरिमा को सुनिश्चित करता है।” इस प्रकार अगर ऐसा कुछ होता है तो यह घरेलू महिलाओं के हित में एक बहुत ही अच्छाऔर सराहनीय क़दम होगा।