हमारे भारत में सड़क दुर्घटना की समस्या एक बहुत बड़ी समस्या है। हजारों लोग सड़क दुर्घटना कारण अपनी जान गवां देते हैं। एक आंकड़े में बताया गया है कि साल 2017 में 35, 975 लोगों की मृत्यु सिर्फ़ हेलमेट ना लगाने की वज़ह से हुई थी, तो वही साल 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 43, 600 पहुँच चुका था। यानी अगर वह लोग हेलमेट का इस्तेमाल करते तो शायद उनकी जाने बच सकती थी। इस तरह अगर लोग यात्रा के दौरान हेलमेट का प्रयोग करें इस्तेमाल करें तो ख़ुद के साथ-साथ लोगों की जान भी बचा सकते हैं।
इसी तरह एक सड़क दुर्घटना में हेलमेट की वज़ह से अपने जिगरी दोस्त को खो चुके राघवेंद्र अब हेलमेट मैन (Helmet man Raghavendra) बन चुके हैं वह सड़कों पर खड़े होकर बिना हेलमेट लगाए गाड़ी चलाने वालों को फ्री में हेलमेट बांटते हैं। यही कारण है कि अब सारे लोग इन्हें “हेलमेट मैन” कह कर बुलाते हैं।
हेलमेट मैन राघवेंद्र बिहार के कैमूर जिले के बगड़ी गाँव के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि वह नहीं चाहते कि हेलमेट की वज़ह से किसी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो और उनके दोस्त की तरह किसी अन्य की भी जान जाए, क्योंकि बहुत से ऐसे लोगों की भी मृत्यु होती है जो अपने परिवार के इकलौते होते हैं।
राघवेंद्र का हेलमेट बांटने के पीछे एक ही उद्देश्य है कि लोग हेलमेट लगाने के प्रति जागरूक हो और अपनी जान की सुरक्षा करें। वह लोगों को पुरानी किताबों के बदले हेलमेट देते हैं। उनका मकसद है कि वह सड़क सुरक्षा अधिनियम को मज़बूत करें और अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपना घर और अपनी पत्नी के ज्वेलरी को भी बेच चुके हैं।
मीडिया से बातचीत के दौरान राघवेंद्र ने बताया कि कैसे गाँव का लड़का हेलमेट मैन बना। उन्होंने बताया कि वह अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। बेहद गरीब परिवार में जन्मे राघवेंद्र के पिता राधेश्याम सिंह खेती गृहस्ती का काम करते हैं। उनके घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल अच्छी नहीं थी लेकिन फिर भी उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। लेकिन आगे पढ़ाने के लिए उनका परिवार सक्षम नहीं था और उन्हें बे अपने हालात के हाथों मजबूर होना पड़ा।
तब राधवेंद्र बैठने के बजाय अपने घर की आर्थिक स्थिति मज़बूत करने की सोचे और नौकरी की तलाश में बनारस चले गए वहाँ जाकर उन्होंने 5 सालों तक कई कामों को किया। नौकरी से मिले पैसे को पढ़ाई के लिए जमा किया और उन्हीं पैसों को इकट्ठा कर वर्ष 2009 में वह दिल्ली पहुँचे और वहाँ लॉ से ग्रेजुएशन किया। इस दरमियान उनके कई दोस्त साथी बने। लेकिन इन दोस्तों में जो सबसे करीब था उनका नाम था कृष्ण।
कृष्ण पढ़ने में बहुत होशियार और अपने घर का इकलौता लड़का था। लेकिन साल 2014 में एक हादसे में राघवेंद्र ने अपने दोस्त कृष्ण को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया। राघवेंद्र बताते हैं कि उनका दोस्त कृष्ण बिना हेलमेट लगाए ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे पर बाइक से कहीं जा रहा था। दुर्भाग्यवश उसका एक्सीडेंट हो गया और उसकी मृत्यु वहीं पर हो गई। अगर वह हेलमेट लगाया होता तो शायद उसकी जान बच जाती। इस घटना ने राघवेंद्र को पूरी तरह झकझोर कर रख दिया।
अपने दोस्त कृष्ण को खोने के बाद उन्होंने उसके परिवार की भी बहुत बुरी स्थिति होते देखी। क्योंकि कृष्णा के परिवार ने अपना एकलौता बेटा को दिया था। इस हादसे से राघवेंद्र इतने विचलित हुए कि उन्होंने उसी समय फ़ैसला लिया कि वह अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करेंगे कि आगे से किसी की मृत्यु इस वज़ह से ना हो। उन्होंने ठान लिया कि वह सड़क सुरक्षा अभियान की मुहिम चलाएंगे और आगे से अपने किसी दोस्त कि मृत्यु इस तरह से नहीं होने देंगे।
इस अभियान के तहत राघवेंद्र लोगों से पुरानी किताबें लेनी शुरू की और उसके बदले हेलमेट नहीं लगाने वालों को फ्री में हेलमेट बांटना शुरू किया। लोगों ने जब उनसे किताबों के बदले हेलमेट देने का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि इसके 2 बड़े फायदे हैं, एक तो यह कि फ्री में हेलमेट बांटने से लोगों की ज़िन्दगी बच सकती है और हम लोगों को जागरुक कर पा रहे हैं और वही दूसरा फायदा यह है कि वह पुरानी किताबों के द्वारा बहुत सारे गरीब बच्चों की भी ज़िन्दगी बदल पा रहे हैं और उन्हें शिक्षित करने का काम कर रहे हैं।
राघवेंद्र ने बताया कि उन्होंने जिन बच्चों को मुफ्त में किताबे बांटी है उसे पढ़कर कई बच्चे अपनी कक्षा में टॉप कर चुके हैं। अब तो राघवेंद्र फ्री में हेलमेट बांटने के साथ-साथ 5 लाख का फ्री दुर्घटना बीमा भी देना शुरू कर दिए हैं और उनके इस नेक काम में “स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस” उन्हें सहयोग कर रहा है और उनकी पूरी मदद कर रहा है।
सड़क सुरक्षा अभियान के तहत राघवेंद्र अब तक 48 हज़ार से भी अधिक हेलमेट और 6 लाख से भी अधिक बच्चों को मुफ्त में पुस्तके बांट चुके हैं। राघवेंद्र सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार से नए नियम की भी मांग करते हैं जिसके तहत किसी भी राज्य में टोल टैक्स पर बिना हेलमेट की यात्रा ना करने दी जाए।
राघवेंद्र का इस मुहिम में अब तक का सफ़र बहुत मुश्किलों भरा रहा है। क्योंकि से करने के लिए उन्हें अपनी नौकरी तक छोड़नी पड़ी। कुछ दिनों पहले उन्हें हर में खरीदने के लिए बहुत ज़्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ी और इसी वज़ह से उन्होंने अपना घर भेज दिया और बाद में उन्होंने अपनी पत्नी के गहने तक बेच दिए।
उनके इस नेक काम के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी उनकी तारीफ कर चुके हैं। बिहार के परिवहन मंत्री संतोष कुमार निराला राघवेंद्र को उनके इस हौसले के लिए सम्मानित भी कर चुके हैं। लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं। भविष्य के बारे में राघवेंद्र कहते हैं कि उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है कि उनका आगे का सफ़र कैसे तय होगा कैसे वह इस मदद को जारी रख सकेंगे। लेकिन उनकी हर संभव है यह कोशिश रहेगी कि वह इस काम को करते रहे और लोगों के जीवन को बचाते रहे।
अन्य लोगों से भी अपील है कि वह उनकी आर्थिक मदद करें ताकि वह इस काम को आगे भी कर सके।