सरकारी नौकरी का मुरीद तो हर कोई होता है, शायद ही कोई होगा जो सरकारी नौकरी की इच्छा ना रखता हो। कैसा लगेगा यह सुनना कि किसी ने सिर्फ़ खेती करने के लिए अच्छी खासी सरकारी नौकरी को अलविदा कह दिया? लगाना कुछ अजीब कि खेती के लिए भला कोई क्यूं नौकरी छोड़ेगा? आपको यह जानने की उत्सुकता होगी कि कौन है आख़िर वह शख़्स तो आइए हम बताते हैं उस इंसान के बारे में जो सरकारी नौकरी को छोड़ एलोवेरा की खेती से करोड़पति बन गया।
एलोवेरा की खेती के लिए सरकारी नौकरी को इस्तीफा देने वाले शख़्स का नाम हरीश धनदेव (Harish Dhandev) है जो राजस्थान (Rajasthan) के जैसलमेर (Jaisalmer) के रहने वाले हैं। सरकारी नौकरी के होते हुए मन में कुछ अलग करने की लालसा ने हरीश को एलोवेरा की खेती के प्रेरित किया इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और एलोवेरा की खेती करने लगे। उनका यह विचार उनके लिए वरदान साबित हुआ जिसने उन्हें करोड़पति बना दिया।
जूनियर इंजीनियर के पद पर थे तैनात
2012 में जयपुर से बीटेक कर हरीश दिल्ली के एक कॉलेज से एमबीए कर रहे थे। पढ़ाई के दौरान ही उनकी जैसलमेर की नगर पालिका में जूनियर इंजीनियर की नौकरी लग गई लेकिन किसानों के परिवार से होने के कारण उनका मन खेती करने का था। इसीलिए सरकारी नौकरी को छोड़ कर उन्होंने एलोवेरा की खेती का मन बनाया।
आज कल औषधीय पौधों की मांग काफ़ी है और एलोवेरा औषधीय पौधों में बहुत प्रचलित नाम है। इसके फायदे भी बहुत है। दवा से लेकर स्किन केयर तक एलोवेरा का प्रयोग होता है इसी वज़ह से इसकी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग बहुत हैं।
एग्रीकल्चर एक्सपो से मिली राह
हरीश के पास पर्याप्त ज़मीन और पानी तो था बस नहीं था तो इन संसाधनों को इस्तेमाल करने का तरीका। लेकिन अगर मन में कुछ अलग करने का जज़्बा हो तो रास्ता भी मिल ही जाता है। बीकानेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में उनकी एक व्यक्ति से हुई मुलाकात हुई जिसने उन्हें एलोवेरा की खेती करने की सलाह दी।
इस सलाह पर अमल करते ही हरीश ने दिल्ली जाकर ‘एग्रीकल्चर एक्सपो’ में नई तकनीक और आधुनिक खेती के बारे में जानकारी हासिल की और 120 एकड़ की ज़मीन पर ‘बेबी डेंसिस’ नामक एलोवेरा की एक प्रजाति को उगाने का निर्णय लिया। हरीश ने 80, 000 एलोवेरा के पौधों से शुरुआत की और अब इनकी संख्या 7 लाख हो गई है।
एलोवेरा मार्केटिंग का आईडिया
हरीश ने जब एलोवेरा के पौधों को उगाने का निश्चय किया तब लोगों ने बताया कि जैसलमेर में इससे पहले भी एलोवेरा की खेती कई लोग कर चुके हैं परंतु उन्हें कोई सफलता नहीं मिली क्योंकि फ़सल खरीदने कोई नहीं आया। इन बातों से हरीश के मन में शंका तो हुई पर जानकारी मिलने के बाद पता चला कि जिन्होंने पहले एलोवेरा की खेती की थी भी वे लोग खरीदार से संपर्क नहीं कर पाए। हरीश ने इस बात से अंदाजा लगाया कि यहाँ पर मार्केटिंग स्किल की ज़रूरत है।
चुनौती ख़ुद को साबित करने की
हरीश के अनुसार नौकरी छोड़ने पर घर में भले ही कोई परेशानी नहीं थी लेकिन उन पर स्वयं को साबित करने की चुनौती थी। 2013 में उन्होंने 10 बीघे से एलोवेरा की खेती की शुरुआत की और अब वे 700 बीघे में एलोवेरा की खेती करते हैं। जिनमें से कुछ ज़मीन ख़ुद की है और बाक़ी लीज़ पर ली गई है।
पतंजलि को सप्लाई करते हैं एलोवेरा पल्प
पतंजलि के उत्पादों ने सभी को अपनी तरफ़ आकर्षित किया है। पतंजलि के विशेषज्ञों ने भी हरीश को एलोवेरा की पत्तियों का आर्डर दिया। लगभग डेढ़ साल से हरीश एलोवेरा पल्प की सप्लाई पतंजलि आयुर्वेद को कर रहे हैं जिसे बाबा रामदेव संचालित करते हैं।
एलोवेरा की डिमांड राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफ़ी है। एलोवेरा की बढ़ती डिमांड को देखते हुए हरीश धनदेव ने जैसलमेर से 45 किलोमीटर दूर धहिसर में एक कंपनी शुरू की जिसका नाम ‘नेचुरल एग्रो’ है। यहाँ पर उन्होंने एलोवेरा पल्प की प्रोसेसिंग के लिए यूनिट भी लगाया है। एलोवेरा सप्लाई से हरीश का सालाना टर्नओवर करोड़ों में होता है। हरीश धनदेव की कामयाबी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो ज़्यादा कमाने के लिए विदेश का रुख अपना लेते हैं।