छत्तीस के अंबिकापुर में रहने वाले आनंद नाघेशिया जब 15 वर्षों तक जेल में काटने पश्चात घर आने के लिए काफ़ी उत्सुक थे। लेकिन घर आने के बाद उन्हें अपनी के बेटी यामिनी की समस्या को देख कर काफ़ी दुख हुआ कि वह स्मार्ट फ़ोन की वज़ह से अपनी ऑनलाइन क्लास नहीं कर पा रही है।
कहाँ की है यह घटना?
यह कहानी छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में रहने वाले आनंद नाघेशिया कि है। यह उस पिता कि कहानी है जो किसी के लिए भले ही ह_त्या का आरोपी है पर बेटी के लिए किसी राजा से कम नहीं।
आनंद नागेशिया को 40 साल की उम्र में अपने चाचा कि ह_त्या के लिए उ_म्र_क़ैद की सज़ा हुई थी। जेल से निकलकर अपने परिवार और अपनी बेटी से मिलना उनके लिए बहुत ही उत्साहित करने वाला मौका था। इस के दौरान उनकी बेटी की उम्र महज़ 1 साल थी।
क्या देखा आनंद ने घर आकर?
उन्होंने अपनी बेटी का बचपन तो नहीं देखा पर 12वीं में पढ़ने वाली अपनी बेटी यामिनी को देखकर उन्हें जल्द ही यह एहसास हो गया कि उसको ऑनलाइन क्लासेज लेने में परेशानी हो रही है, जिसकी मुख्य वज़ह उसके पास स्मार्टफोन नहीं होना था। बस सोचना क्या था पिता ने अपने जेल में कमाए हुए पैसे से मोबाइल खरीदा और अपनी बेटी की समस्या हल कर दी।
शिक्षा का महत्त्व जो उसे समझ में आ गया था। आनंद नागेशिया के अनुसार-” मेरी बेटी के पास ऑनलाइन क्लास लेने के लिए फ़ोन नहीं था। वह बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती है। मैंने जेल में रहने के दौरान शिक्षा का महत्त्व समझा। मैं अपनी बेटी की पढ़ाई में कोई कमी नहीं चाहता और उसे किसी रूकावट का सामना नहीं करने देना चाहता।
अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते हैं
अंबिकापुर जेल के एसपी राजेंद्र गायकवाड ने कहा आनंद के बर्ताव के कारण उन्हें जल्दी रिलीज कर दिया गया। उन्हें 15 साल 5 महीना के बाद रिहा कर दिया गया। आनंद ने समाज के लिए एक उदाहरण पेश किया है कि लोग लड़कियों को शिक्षित करें।
आनंद ने जेल में रहने के दौरान काफ़ी कुछ सीखा भी है, जैसे-गार्डेनिंग, कापेंट्री इत्यादि। इस प्रकार जेल में रहने के दौरान उस शख़्स की ज़िंदगी में ऐसा बदलाव आया कि आरोपी से वह ऐसा पिता बना जिस पर बेटी शर्म नहीं गर्व कर सके। अब आनंद अपनी पैतृक ज़मीन पर खेती कर अपना जीवन जीना चाहते हैं और अपने परिवार के लिए कुछ करना चाहते हैं।
All Image Source- The New Indian Express