Pearl Farming: इस दौर में कई लोगों की नौकरी छूट चुकी है, जिसकी वज़ह से उनके पास घर ख़र्च चलाने के लिए भी पैसे नहीं है। वहीं दिन ब दिन बढ़ती महंगाई की वज़ह से ज्यादातर लोग नौकरी करने के बजाय व्यापार करना पसंद करते हैं, जिसमें मुनाफा होने के चांस ज़्यादा होते हैं।
हालांकि कम लागत में ज़्यादा मुनाफा कमाने वाले बिजनेस शायद की हर किसी को समझ आ पाता है, क्योंकि इसके लिए शारीरिक बल से ज़्यादा दिमागी बल ख़र्च करने की ज़रूरत होती है। आज हम आपको ऐसे ही एक बिजनेस के बारे में बतान जा रहे हैं, जो कम लागत में ज़्यादा मुनाफा देने के लिए लोकप्रिय है।
मोतियों का बिजनेस (Pearl Farming)
खेती और किसानी के लिए अलावा मोतियों के बिजनेस (Pearl Farming Business) को अगर सही ढंग से किया जाए, तो उसके जरिए कम लागत में 10 गुना तक फायदा कमाया जा सकता है। ऐसे में आप सिर्फ़ 30 हज़ार रुपए ख़र्च करके 3 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं, जिसमें नौकरी के मुकाबले काफ़ी कम मेहनत होती है।
मोतियों की खेती सुनने में बहुत ही मुश्किल और मेहनत भरा काम लगता है, क्योंकि इसमें तालाब के निर्माण से लेकर सीप से मोती निकलने तक सारा काम देखना होता है। इसके साथ ही मोतियों की खेती करने से पहले ट्रेनिंग की भई ज़रूरत होती है, लेकिन अगर आप एक बार इस काम को सीख जाए तो आपकी क़िस्मत बदल सकती है।
सरकार देती है सब्सिडी
मोतियों की खेती करने से लिए सबसे पहले तालाब खुदवाने की ज़रूरत होती है, जिसमें सीप डाले जा सके। ऐसे में अगर आपके पास पैसों की कमी है, तो चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि भारत सरकार मोतियों की खेती करने के लिए किसान को सब्सिडी देती है, जिसमें तालाब खुदवाने का 50 प्रतिशत ख़र्च सरकार द्वारा उठाया जाता है।
अगर आप सरकारी सब्सिडी लेना चाहते हैं, तो आपको गाँव के ग्राम प्रधान या सेक्रेटरी से मदद लेने होगी। जो आपको तालाब खुदवाने के लिए सरकारी सब्सिडी मुहैया करवाएंगे। मोतियों की खेती में काफ़ी ज़्यादा फायदा होता है, यही वज़ह है कि आज ज्यादातर गांवों के किसान मोतियों की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।
कैसे करें मोतियों की खेती (How to Start Pearl Farming)
मोतियों की खेती (Pearl Farming) सबसे ज़्यादा दक्षिण भारत और बिहार के दरभंगा जिले में की जाती है, जहाँ के सीप की क्वालिटी सबसे बेहतरीन मानी जाती है। वहीं मध्य प्रदेश के होशंगाबाद और मुंबई में मोती की खेती करने के लिए युवाओं को ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि वह खेती करके आमदनी बढ़ा सके।
मोतियों की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत में तालाब की खुदाई करने होती है, ताकि ज़्यादा मात्रा में पानी को इकट्ठा किया जा सके। इसके बाद सीपियों को 10 से 15 दिन तक जाल में बाँधकर तालाब में डाल दिया जाता है, ताकि वह पानी के अंदर अपने हिसाब से वातावरण तैयार कर सके।
इसके बाद 15 दिन तालाब में डूबोए रखने के बाद सीपियों को बाहर निकाला जाता है और उसमें चीरा करके सीप को अंदर से थोड़ा-सा खरोंच दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सीफ के अंदर लेयर तैयार हो सके, उसी लेयर के अंदर खरोंचे गए सीप के हिस्से से मोती का निर्माण होता है।
इसके बाद सीपियों को दोबारा से पानी में छोड़ दिया जाता है और मोती के बनने का इंतज़ार किया जाता है। इस दौरान पानी की देखभाल करना बेहद ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि पानी की कम होने से उसके अंदरूनी वातावरण में परिवर्तन आता है। जिसकी वज़ह से सीप के अंदर मोतियों को तैयार होने में ज़्यादा समय लग सकता है।
मोतियों के व्यापार से मुनाफा (Profit from Pearl Business)
अगर तालाब में सीपियों की खेती अच्छी तरह से की जाती है, तो कुछ ही दिनों में सीपियों के अंदर मोती बनकर तैयार हो जाते हैं। किसान को एक सीप को तैयार करने में 25 से 35 रुपए ख़र्च करने होते हैं, जबकि एक सीप में कम से कम दो मोती तैयार होते हैं।
भारतीय बाज़ार में एक मोती की क़ीमत 150 से 200 रुपए तक होती है, ऐसे में एक सीप पर 35 रुपए ख़र्च करके किसान को कम से कम 400 रुपए का मुनाफा होता है। अगर एक तालाब में 1000 सीप डाले जाते हैं, तो उसमें एक समय पर 2000 मोतियों की खेती की जा सकती है।
हालांकि पानी के बदलते वातावरण की वज़ह से एक समय पर सारे सीप जीवित नहीं बच पाते हैं, लेकिन फिर भी तालाब में कम से कम 600 से 700 सीप आराम से ज़िंदा रह सकते हैं। इस तरह मोतियों की खेती करने से किसान को एक समय में 2 से 3 लाख रुपए का मुनाफा हो जाता है, जबकि खेती की लागत सिर्फ़ 30 रुपए होती है।
इसके साथ ही एक बार तालाब खुदवाने के बाद किसान उसमें बार-बार मोतियों की खेती कर सकता है, क्योंकि तालाब को बार-बार खुदवाने की ज़रूरत नहीं होती है। वहीं पहली बार तालाब खुदवाने का ख़र्च सरकार द्वारा उठाया जाता है, इसलिए मोतियों की खेती कर रहे किसान पर ज़्यादा बोझ नहीं पड़ता है।