IPS Ruveda Salam Success Story – आज देश की महिलाएँ हर क्षेत्र में नाम कमा रही हैं फिर चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, चिकित्सा का क्षेत्र, खेल का मैदान, राजनीति क्षेत्र अथवा तकनीकी क्षेत्र, महिलाओं में ने हर क्षेत्र में उपलब्धियाँ प्राप्त की है। पहले जहाँ महिलाएँ घर चार दिवारी तक ही सीमित कर जाती-जाती थीं, आज उन्हें खुला आसमान मिल रहा है और वे पंख फैलाकर हर जगह पर अपनी प्रतिभा के बल पर कामयाबी हासिल कर रही हैं। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अब हर क्षेत्र में उनका प्रदर्शन पुरुषों से काफ़ी बेहतर हो रहा है, बस आवश्यकता है तो केवल एक अवसर प्राप्त होने की।
आज हम ऐसी ही एक होनहार महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से मिसाल क़ायम की है। हम जिनकी बात कर रहे हैं, वे हैं धरती के स्वर्ग यानी कश्मीर घाटी में रहने वाली मुस्लिम महिला रुवैदा सलाम (IPS Ruveda Salam), जो भारतीय सिविल सेवा परीक्षा को उत्तीर्ण करके कश्मीर की पहली IPS ऑफिसर बनीं और कश्मीर घाटी की जिम्मेदारी संभाली।
पहले MBBS, फिर कश्मीर की फर्स्ट वीमेन IPS और फिर रुवैदा बनीं IAS
जम्मू-कश्मीर की रहने वाली रुवैदा सलाम (IPS Ruveda Salam) ने एक के बाद एक सफलता प्राप्त करके सभी को हैरान कर दिया। वे पहली ऐसी कश्मीरी मुस्लिम लड़की हैं, जिन्होंने एक नहीं बल्कि कई उपलब्धियाँ हासिल की। पहले उन्होंने MBBS की परीक्षा पास की, फिर IPS और फिर IAS अधिकारी बनकर सभी को चौंका दिया। आज वह सभी कश्मीरी महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन गई हैं।
UPSC परीक्षा में कुल 998 प्रतिभागियों को सफलता मिली थी, जिनमें से रुवैदा को 820 वीं रैंक मिली और उन्हें भारत की पहली मुस्लिम लड़की के तौर पर सिविल सर्विसेज परीक्षा उत्तीर्ण कर आईएएस बनने का गौरवपूर्ण अवसर मिला। पूर्व में रुवैदा वर्ष 2009 में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थीं और उन्होंने श्रीनगर से MBBS का एग्जाम पास किया। फिर उन्होंने श्रीनगर से ही सिविल सर्विसेज परीक्षा के लिए अप्लाई किया, जिसमें वह सफल हुई और वे 24वीं रैंक के साथ IPS बनीं थीं।
रुवैदा सलाम (IPS Ruveda Salam) हैं, कश्मीरी लड़कियों की प्रेरणा
जम्मू के कुपवाड़ा की रहने वाली रुवैदा ने आईएएस बनने का सपना देखा था जिसे उन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत से साकार भी कर दिखाया। परंतु जैसा कि हम जानते हैं हर कामयाबी के पीछे कड़ा संघर्ष व परिश्रम होता है, यूं ही किसी को बिना मेहनत के सफलता नहीं मिलती है। रुवैदा ने भी बड़े संघर्षों के बाद यह मुकाम हासिल किया है, क्योंकि अक्सर मुस्लिम लड़कियों के घर के रीति रिवाज़ और परंपराएँ ऐसी होती हैं कि उन्हें ज़्यादा पढ़ा ना लिखा ना हो तो दूर घर के बाहर भी कम ही निकलने दिया जाता है। ऐसे में इतना ऊंचा ओहदा प्राप्त करना अपने आप में बड़ी कामयाबी है।
रुवैदा का कहना है, “जब लड़कियाँ मुझे वर्दी में देखा करती हैं, तो वे मुझे प्रशंसा से भरी दृष्टि से देखती हैं। मुझे बहुत प्रसन्नता होगी, अगर मैं उनके लिए प्रेरणा बनूँ।”
संवेदनशील कस्बे में रहने की वज़ह से कई समस्याओं का किया सामना
रुवैदा LOC (नियंत्रण रेखा) के कुपवाड़ा नामक अत्यधिक संवेदनशील कस्बे रहा करती थीं, इस वज़ह से उनके सामने रोजाना नई-नई चुनौतियाँ आती थी। इस बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि “चाहे आप श्रीनगर में ही क्यों न रह रहे हों, परन्तु यहाँ पर भी आपको रोजाना कोई ना कोई समस्या का सामना करना ही पड़ता है तथा जब भी अराजकता का माहौल फैलने की वज़ह से हालात खराब हो जाते हैं और हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, तो हमें जनता के क्रोध का सामना भी करना पड़ता है।
बहुत बार कर्फ़्यू, अख़बारों पर पाबंदी व अध्ययन सामग्री न मिलने की वज़ह से पढ़ाई करने वाले बच्चों को बहुत-सी परेशानियाँ उठानी पड़ती है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है, हमें यह चिंता होने लगती है कि अब आगे कौन-सी परिस्थितियाँ आने वाली हैं…”
MBBS के बाद डाला जा रहा था शादी का दबाव
27 साल की IAS रुवैदा सलाम ने IAS बनने के लिए बहुत-सी परेशानियाँ उठाई और कई प्रकार के संघर्षों का सामना किया। जिस समय रुवैदा ने एमबीबीएस का एग्जाम पास किया तो उनके माता-पिता व रिश्तेदारों ने उन पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था। परन्तु उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वे समाज की बातों को ना सुनते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेंगी। फिर कड़ी मेहनत व मज़बूत हौसलों से उन्होंने बड़ी सफलता हासिल करते हुए कश्मीर घाटी को गौरवान्वित किया।
परिवार ने दिया साथ
रुवैदा की कामयाबी का श्रेय उनके परिवार को भी जाता है क्योंकि उनके पिता जी रूढ़ीवादी परंपराओं को ना मानते हुए अपनी बेटी को हमेशा प्रोत्साहित किया करते थे और उसे आगे बढ़ने को प्रेरित करते थे। इतना ही नहीं, वे रुवैदा को समय-समय पर को अहसास करवाते रहते थे कि महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा ज़्यादा सशक्त होती हैं, जिससे रुवैदा का उत्साह वर्धन होता था।
रुवैदा के पिता जी का नाम सलामुद्दीन बजद है, जो कुछ समय पहले ही दूरदर्शन में उप-निदेशक की पोस्ट से रिटायर हुए हैं। अपनी बेटी की इस सफलता पर उनके पिता सलामुद्दीन कहते हैं कि ” मैं अपनी बेटी पर बहुत गर्व करता हूँ, उसने परिवार के अलावा, राज्य और देश का भी नाम रोशन किया है। इसके साथ ही महिलाओं को नई दिशा देते हुए आगे बढ़ने को प्रेरित किया है। हैं। वे कहते हैं कि मैं अपने बेटी की वज़ह से ख़ुद को बहुत सम्मानित अनुभव करता हूँ की क्योंकि हमारे समुदाय में पहली ऐसी लड़की है जो इस मुकाम तक पहुँची है और हर जगह पर बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।
कश्मीरी युवा भी अब पसंद करते हैं सरकारी नौकरी
पिछले कुछ सालों की बात करें तो आंकड़ों से पता चलता है कि अब कश्मीर घाटी के युवा भी सरकारी नौकरियों में दिलचस्पी ले रहे हैं। परंतु पहले ऐसा नहीं था, अब तो रुवैदा सलाम की कामयाबी से कश्मीर के युवाओं और विशेष तौर पर महिलाओं व बालिकाओं के हौसले बढ़ेंगे तथा वह भी पढ़ लिखकर कुछ बनने का प्रयास करेंगी। ऐसा कहना भी ग़लत नहीं होगा कि कश्मीर घाटी के दिन अब बदलने वाले हैं, क्योंकि वहाँ के युवा अब पहले से ज़्यादा जागरूक हो गए हैं और कश्मीर तरक्क़ी की राह पर चल पड़ा है।
रुवैदा सलाम (IPS Ruveda Salam) की हिम्मत और उनके जज्बे को हम सलाम करते हैं क्योंकि उन्होंने सारे युवा पीढ़ी के आगे एक मिसाल क़ायम की है और उन्हें सिखाया है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों ना आए पर अगर हौसले बुलंद हैं तो सपने ज़रूर पूरे होते हैं।