Home125 वर्षों बाद नजर आया यह दुर्लभ प्रजाति का उल्लू, जिसकी आंखों...

125 वर्षों बाद नजर आया यह दुर्लभ प्रजाति का उल्लू, जिसकी आंखों का रंग है नारंगी

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

प्रकृति के करिश्मों से कोई भी अनजान नहीं है! आए दिन हमें कुदरत ऐसे आश्चर्यजनक दृश्य, चीजें या फिर नई-नई प्रकार के प्राणी दिखाती रहती है, जिन्हें देखकर हैरान होना लाजमी है। कई बार हमें लगता है कि कुदरत में एक अज्ञात शक्ति है जिसे हम कुदरत का करिश्मा भी कहते हैं और ऐसा कुछ ना कुछ घटित होता रहता है जिससे हमें प्रकृति के चमत्कार का आभास होता है।

एक ऐसा ही कुदरत का करिश्मा दिखाई दिया है मलेशिया में, जहाँ लुप्त प्रजाति का एक उल्लू सैकड़ों सालों बाद एक बार फिर नज़र आया है, जिसे देखकर वैज्ञानिक भी हैरान हो रहे हैं। यह अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का उल्लू मलेशिया में 125 वर्षों पश्चात दिखाई दिया है, इस वज़ह से इसे देखने वाले सभी लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि इतने वर्षों बाद आख़िर यह उल्लू आया कहाँ से।

oneindia.com

आंखों का रंग है नारंगी

125 वर्षों बाद नज़र आए इस उल्लू की कुछ खासियत है जो इससे दूसरे उन लोगों से अलग बनाती है। इसकी आंखें गहरे नारंगी रंग की हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह उल्लू अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का है, इसलिए इसका संरक्षण किया जाना चाहिए। वैसे अब तक इस प्रकार के उल्लू के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। आपको बता दें कि यह दुर्लभ उल्लू मलेशिया के वर्षा वन माउंट किनाबलू में दिखाई दिया है।

जीव वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उल्लू राजाह स्कोप नामक प्रजाति का है तथा इसके शरीर पर विशेष प्रकार की धारियाँ भी बनी हैं, इन सभी शारीरिक लक्षणों से पता चलता है कि यह उल्लू दूसरे उन लोगों से कितना अलग है। इसलिए इसे संरक्षण अवश्य मिलना चाहिए। जीव वैज्ञानिक इन उल्लूओं के बारे में यह भी बताते हैं कि निरन्तर पर्यावरण में परिवर्तन होने के कारण सम्भवतः उल्लू की इस प्रजाति को काफ़ी ज़्यादा नुक़सान हुआ होगा, जिसकी वज़ह से यह प्रजाति लुप्त हो गई है।

oneindia.com

कई वर्षों से की जा रही थी तलाश

सूत्रों से पता चला है कि बहुत वर्षों से इस प्रजाति के उल्लुओं की खोज की जा रही थी। साल 2016 में एक टेक्निशियन कीगन ट्रांनक्लिलो इसी उल्लू की खोज में बहुत समय तक माउंट किनाबलू के जंगल में रहे थे, परंतु फिर भी उन्हें यह उल्लू नहीं मिला। जीव वैज्ञानिकों का कहना है कि निरंतर परिवर्तित होते हुए जलवायु और मौसम, जंगल कटने की तथा पॉम ऑयल प्रोडक्शन जैसे कारणों से इस प्रजाति के उल्लुओं को बहुत नुक़सान हुआ है।

टेक्नीशियन कीगन स्मिथसोनिआन नामक एक मैगजीन को बताते हुए कहते हैं कि जिस स्थान पर यह उल्लू बैठा हुआ दिखाई दिया था वहाँ बहुत ज़्यादा अँधेरा था। पहले तो कुछ देर ही वहाँ बैठकर वह उल्लू उड़ता चला गया था सौभाग्यवश फिर कुछ ही समय बाद पुनः लौट भी आया था। वे आगे बताते हैं कि यह स्कोप प्रजाति का उल्लू ही है, इसका आकार बहुत बड़ा है, साथ ही इस उल्लू की आंखों का रंग भी नारंगी था, जबकि साधारणतया उल्लुओं की आंखों का रंग पीला होता है।

oneindia.com

इससे पहले सन 1892 ईस्वी में दिखाई दिया था इस प्रजाति का उल्लू

इस दुर्लभ उल्लू के बारे में पता चलने पर कीगन ने इसकी सूचना इस पर शोध करने वाले एंडी बोयसे को दी। आपको बता दें कि एंडी बोयसे मोंटाना यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे हैं। एंडी बोयसे बताते हैं कि ‘जब मुझे यह दुर्लभ उल्लू नज़र आने के बारे में जानकारी मिली तो मुझे बहुत ज़्यादा ख़ुशी हुई, क्योंकि मेरे लिए इस पक्षी के नज़र आने का अर्थ था, किसी काल्पनिक पक्षी की खोज करना। फिर जानकारी मिलने के बाद तुरंत ही मैंने इस पक्षी की सारी इनफार्मेशन दस्तावेजों में डाली।’

एक रिपोर्ट के अनुसार पता चला है कि इससे पूर्व सन 1892 ईस्वी में यह राजाह स्कोप प्रजाति का उल्लु दिखाई दिया था और उस बारे में रिचर्ड बोवडलर ने भी लिखा है। रिचर्ड ने पक्षियों की 230 प्रजातियों तथा उप-प्रजातियों को नाम भी दिए थे। वे बताते हैं कि यह उल्लू ज़्यादा बड़ा नहीं था। यह लगभग 9 इंच की लंबाई का होगा।

दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण है ज़रूरी

एंडी बोयसे कहते हैं कि उल्लुओं की इस अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का संरक्षण करना बहुत ज़रूरी है। इनको बचाने के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई रोकनी चाहिए और ज़्यादा पेड़ लगाने चाहिए। वरना, एक दिन ऐसा आएगा जब पशु-पक्षियों की ऐसी दुर्लभ प्रजातियाँ सदा के लिए पृथ्वी से लुप्त हो जाएंगी।

यह भी पढ़ें
News Desk
News Desk
तमाम नकारात्मकताओं से दूर, हम भारत की सकारात्मक तस्वीर दिखाते हैं।

Most Popular