राजस्थान: आपने पढ़े-लिखे युवाओं को बेरोजगार घूमते ज़रूर देखा होगा। हो सकता है आपने सोचा भी हो कि हमारे देश में कितनी कठिन परिस्थिति है, लोग लाखों रुपए ख़र्च करके पढ़ने के बाद भी बेरोजगार घूमने को मजबूर हैं। लेकिन हम आपसे कहना चाहते हैं कि इस बेरोजगारी से आप कभी भी निराश मत होना। अपनी कोशिश हमेशा जारी रखना। फिर भले ही आप कम पढ़े-लिखे क्यों ना हों।
आज हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं, वह उसी का उदाहरण है। हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे कुछ अनपढ़ महिलाओं ने आज मार्केटिंग की बड़ी-बड़ी पढ़ाई करने वालों को भी फेल कर दिया। कभी वह जंगलों में सूख कर गिर जाने वाले फल को अपनी आमदनी का ज़रिया बना लिया। आज उसी से फल से उन्होने करोड़ो के टर्नओवर वाली कंफनी खड़ी कर दी।
कौन हैं ये आदिवासी महिलाएँ
ये महिलाएँ राजस्थान (Rajasthan) के आदिवासी इलाके की रहने वाली हैं। इनकी दिनचर्या की शुरुआत जंगलों में जाकर लकड़ी बीनने से शुरू होती थी। इन चार महिलाओं का ग्रुप है जीजा बाई, सांजी बाई, हंसा बाई और बबली। ये सभी महिलाएँ रोज़ जंगल में खाना बनाने के लिए सूखी लकड़ी बीनकर लाती थी। तभी इन्होंने देखा कि जंगल में बहुत से सीताफल के पेड़ हैं। जिनके फल सूख कर गिर जाते हैं। पर उन्हें कोई तोड़ने वाला नहीं है।
शुरू कर दिया सीताफल बेचना
इन महिलाओं ने जब सीताफल को इस तरह सूख कर गिरते देखा तो एक नया विचार आया। कि क्यों ना इस सीताफल को बेचा जाए। फिर क्या था, ये महिलाएँ सीताफल को हर रोज़ तोड़कर टोकरी में भरती और सड़क किनारे लोगों को बेच देती। उन्होंने देखा कि इन फलों को लोग ख़ूब पसंद करते हैं और इनकी डिमांड भारी मात्रा में है और इन्हें काफी मुनाफा होने लगा।
बना ली अपनी कंपनी
महिलाओं ने डिमांड को देखते हुए भीमाणा-नाणा में ‘घूमर’ नाम की कंपनी बना ली। आप अचरज करेंगे कि महिलाओं की कंपनी साल भर में एक करोड़ सलाना टर्नओवर तक पहुंच गई। आपके जहन में सवाल होगा कि आखिर कैसे एक करोड़ रुपये टर्नओवर हो पाया। ऐसा संभव इसलिए हुआ क्योंकि इस कंपनी से शुरुआत से ही आदिवासी लोगों को जोड़ना शुरू कर दिया। वह हर रोज़ जंगलों से सीताफल बीन कर लाते थे और ये महिलाएँ खरीद लेती थी। इससे आदिवासी लोगों को फायदा भी इससे वह लोग बड़े पैमाने पर जुड़ते चले गए।
आज है 1 करोड़ का टर्नओवर
सीताफल बीनने वाली आदिवासी महिलाओं का सालाना टर्नओवर जानकर आपको अचरज होगी। आज इनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर एक करोड़ के पार पहुँच चुका है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सीताफल आइसक्रीम (Ice Cream) बनाने के काम में आता है। ऐसे में आइसक्रीम बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इनसे संपर्क किया और आज वह इनसे सीताफल बड़े पैमाने पर खरीदती हैं। साथ ही लाखों का भुगतान करती हैं। आज इनका फल राष्ट्रीय स्तर तक की कंपनियाँ खरीदती हैं। इससे इनका काम बढ़ता ही जा रहा है।
60 महिलाओं को मिला रोजगार
कंपनी को चलाने वाली सांजीबाई बताती हैं कि आज उनकी कंपनी में बहुत-सी महिलाएँ काम भी करती हैं। जिसके बदले उन्हें रोजाना 150 रुपए मजदूरी दी जाती है। सांजीबाई कहती हैं कि आज उन्होंने 21 लाख रूपये लगाकर ‘पल्प प्रोसेसिंग यूनिट’ (Pulp Processing Unit) भी शुरू की है। जिसका संचालन केवल महिलाएँ करती हैं। सरकारी मदद के तौर पर उन्हें ‘ सीड कैपिटल रिवॉल्विंग फंड” (Seed Capital Revolving Fund) भी दिया जाता है। आज वह रोजाना 60 से 70 क्विंटल सीताफल का कारोबार करती हैं। जिसे 60 छोटे-छोटे सेंटर बनाकर इकठ्ठा किया जाता है। वह कहती हैं कि इससे गरीब महिलाओं को काम भी मिल रहा है और वह अपना गुज़ारा भी ख़ुद से चला रही है।
कंपनी ने दिए कई गुना दाम
सीताफल को बेचने वाली आदिवासी महिलाएँ बताती हैं कि जब वह टोकरी में सीताफल बेचती थी तो बाज़ार में उन्हें महज़ 8 से 10 रुपए किलो ही दाम मिलता था। लेकिन आज जब वह प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर फल बेचती हैं तो उन्हें 160 रुपए किलो तक दाम मिल रहा है। साथ ही बड़ी-बड़ी कंपनियाँ फल की बड़े पैमाने पर खरीद भी कर रही हैं। फिलहाल उनका लक्ष्य है कि वह इस साल 10 टन सीताफल बेचे। फिलहाल बाज़ार में सीताफल का भाव 150 रुपए किलो हैं ऐसे में उन्हें यह टर्नओवर तीन करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है।
सूख कर गिरते सीताफल को बनाया कमाई का जरिया
कंपनी का संचालन करने वाली महिलाएँ बताती हैं कि बचपन से ही वह जंगलों में लकड़ी बीनने जाती तो उन्हें देखकर गिरते सीताफल देखकर बड़ा अजीब-सा लगता। वह सोचती कि क्यों ना इतने महंगे फल का कुछ किया जाए। एक आंकड़े के मुताबिक राजस्थान के ही पाली इलाके में आज ढाई टन सीताफल का कारोबार होता है। आदिवासी महिलाएँ पहले तो सीताफल को ऐसे ही बेच देती थी, लेकिन अब वह उसका पल्प भी निकालकर बेचती हैं जिससे कंपनी उन्हें ज़्यादा दाम देती है। ये सब तक हुआ जब उन्हें एक एनजीओ (Non Government Organization) की मदद मिली। एनजीओ की मदद से उन्होंने महिलाओं का एक ग्रुप बनाया और कंपनी शुरू कर दी। आज सीताफल का प्रयोग खाने और आइसक्रीम में डालने के लिए प्रयोग होता है।