कहते हैं… ‘कामयाब वही होते हैं, जिनके हौंसलों में जान होती है।’ चाहे आप शारीरिक या प्राकृतिक बाधाओं से ही क्यों न घिरे हों, यदि आपमें कुछ कर दिखाने का जज़्बा है तो हर बाधा आपके मज़बूत इरादों से हार कर घुटने टेकने को विवश हो जाती है।
ऐसी ही कश्मीर की एक बेटी हैं ताबिया इकबाल (Tabia Iqbal), जो कई शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद 10वीं कक्षा में 90.4% मार्क्स प्राप्त कर सभी छात्रों के लिए प्रेरणा का सबक बन गईं हैं और अब भविष्य में डॉक्टर बनना चाहती हैं। चलिए अब विस्तार से जानते हैं ताबिया के बारे में…
3 साल की उम्र से ही व्हीलचेयर पर हैं ताबिया
ताबिया जम्मू-कश्मीर, अनंतनाग की रहने वाली हैं। उनके पिताजी मोहम्मद इकबाल एक किसान हैं। वे बताते हैं कि ताबिया को बचपन से ही बहुत-सी शारीरिक परेशानियाँ थीं। जब वह 3 साल की थी तो उसे ऑर्थोपेडिक बीमारी ने घेर लिया, फिर वह व्हीलचेयर पर ही चलती फिरती थी। ताबिया ना बोल सकती है और न ही सुन सकती है, परन्तु वह लिप मूवमेंट्स और इशारों से कही बात समझ जाती हैं। ताबिया मूक बधिर होने की वज़ह से साधारण बच्चों के स्कूल में नहीं जा पाई थीं।
प्रिंसिपल ने घर जाकर पढ़ाया
फिर ताबिया के पिताजी ने उनका दाखिला श्रीनगर के रामबाग में मूक-बधिर प्राइवेट स्कूल में करवाया। वहाँ की प्रिंसपिल ने ताबिया की काबिलियत को पहचाना और उसे पढ़ाने के लिए मेहनत की। इतना ही नहीं, वे ताबिया को घर जाकर भी पढ़ाया करती थीं और एक ही टॉपिक को बार-बार रिपीट करवा कर उसे याद करवाती थीं। ताबिया ने भी अपने प्रिंसिपल मैडम की मेहनत को साया नहीं होने दिया वह भी पूरी लगन के साथ पढ़ाई करती थीं। इसी का नतीजा था कि ताबिया उनकी अपेक्षाओं पर खरी उतरी।
स्कूल गए बिना ही 10वीं कक्षा में ले आईं 90.4% मार्क्स
17 साल की ताबिया को गठिया की बीमारी है, इस वज़ह से वे व्हीलचेयर पर ही रहती हैं। वह मूक बधिर भी है, फिर भी उन्होंने मेहनत करके 10वीं कक्षा में 90.4% मार्क्स हासिल किए हैं। आपको बता दें कि ताबिया पिछले 7 वर्षों से स्कूल नहीं गई हैं, इसके बावजूद उन्होंने 500 में से 452 अंक प्राप्त कर लिए।
डॉक्टर बनना है ताबिया का सपना
ताबिया की माँ मुनीरा अख्तर बताती हैं कि उनकी बेटी ने उनका नाम रोशन कर दिया। ताबिया को 4 साल की छोटी आयु में ही गठिया की बीमारी हो गई थी। उसे चलने फिरने में बहुत दिक्कत आती थी लेकिन फिर भी वह मूक बधिर विद्यालय में जाया करती थीं, पर जब वह तीसरी कक्षा में आईं तो उनकी टांगों ने काम करना बंद कर दिया, फिर वह व्हीलचेयर पर बैठकर ही पढ़ाई किया करतीं। ताबिया की माँ ने सुबह जब वेबसाइट पर अपनी बेटी का परीक्षा परिणाम देखा तो वह बहुत खुश हुईं। उन्होंने कहा कि ताबिया भविष्य में डॉक्टर बनना चाहती है।
साधारण बच्चों के स्कूल में पढ़ने की इजाज़त नहीं मिली
ताबिया के पिताजी ने कहते हैं कि सरकार ताबिया जैसे बच्चों के लिए कोई छूट नहीं देती है, जबकि उनको भी अन्य बच्चों की तरह ही समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलना चाहिए। ताबिया के पिताजी ख़ुद उन्हें व्हीलचेयर पर परीक्षा केंद्र ले जाया करते थे और फिर सेंटर के बाहर ही रहकर ताबिया का इंतज़ार करते थे। वे बताते हैं कि उन्होंने परीक्षा केंद्र में ड्यूटी दे रहे शिक्षकों से इस सम्बंध में मदद की गुहार भी लगाई पर फिर भी उन्हें परमिशन नहीं दी गई।
होनहार ताबिया के जज़्बे को हम सलाम करते हैं और यह आशा करते हैं कि हमारी सरकार आने वाले भविष्य में ऐसे बच्चों के लिए कुछ करे, ताकि उनके जीवन में आने वाली परेशानियाँ कुछ कम हो सकें और उन्हें भी साधारण बच्चों की तरह ही पढ़ाई करने का हक़ मिले।