105 बरस की उम्र, जिसमें इंसान या तो हॉस्पिटल्स में होता है या घर पर भी उसे स्पेशल केयरटेकर की ज़रूरत होती है। लेकिन इस उम्र में भी नए उम्र के लोगों को टक्कर दे रही हैं तमिलनाडु की एक ‘महिला किसान’ जो उम्र के इस पड़ाव में भी जैविक कृषि में नित्य नए मुकाम हासिल कर रही हैं।
पप्पम्मल (उर्फ रंगमाला) का जन्म 1914 में तमिलनाडु के देवलपुरम गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। बचपन में ही मां-बाप का साया सिर से उठ जाने के कारण इनका देखभाल इनकी नानी ने किया। 1914 में जन्म होने की वज़ह से इन्होंने विश्वयुद्ध से लेकर भारत की आजादी कई प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ वर्तमान में कोरोना महामारी का भी दौर देखा है। पुराने ज़माने में भी जन्म लेने के बावजूद उन्होंने उनका जो मन किया वह किया। यानी उन्होंने स्वतंत्रता पूर्वक जीवन व्यतीत किया।
दादी का प्रारम्भिक जीवन
कोई स्कूल न होने के कारण उन्होंने मैथ्स को पल्लंघुजी खेल से सीखा था। उनके समय में पांचवी पास लोग ही शिक्षक बनने के योग्य हो जाते थे, और इस बात का उनको अफ़सोस है कि वह स्कूल के अभाव में पांचवी तक भी नहीं पढ़ पाई। किसान परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें खेती से भी बहुत कम उम्र में ही लगाव हो गया था और वह अपना अधिकतर टाइम खेती सीखने में लगाती थी।
आज से लगभग 50 वर्ष पहले उन्होंने होटल की शुरुआत की जिसके लिए जगह उन्हें विरासत में मिली थी। होटल के पैसे बचा कर उन्होंने 10 एकड़ ज़मीन लिया जिसका उद्देश्य खेती करना था। उसमें उन्होंने कई प्रकार के दलहन, सब्जियों और फलों की खेती करना शुरू किया, जिसका प्रयोग वह खानपान में करती थीं। फिर उन्होंने सुचारू रूप से खेती करने का सोचा और इसके लिए ‘तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय’ में एडमिशन ले लिया।
दादी को कहा जाता है ‘अग्रणी किसान’
उनको यह याद नहीं कि किस वर्ष एडमिशन लिया था। शिक्षा लेने के दौरान वह एक जिज्ञासु छात्रा के रूप में शिक्षकों से सवाल पूछती रहती थी। जिसकी वज़ह से वह काफ़ी लोकप्रिय हो गई और लोग उन्हें पसंद करने लगे थे। वहाँ के कुलपति ने उन्हें ‘अग्रणी किसान’ के रूप में सम्बोधित किया साथ ही साथ उन्हें विश्वविद्यालय के डिबेट कार्यक्रम में ‘विशेष अतिथि’ के रूप में आमंत्रित भी किया गया।
1958 में तमिलनाडु में जब पंचायत अधिनियम को अपनाया गया और 1959 में पहला चुनाव हुआ तो पप्पाम्मल को थेक्कमपट्टी पंचायत से पार्षद चुने जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जब वह 80 वर्ष की हुई तो 10 एकड़ में कृषि कर पाना उनके लिए मुश्किल होने लगा, फिर उन्होंने उसका एक हिस्सा बेच दिया और वर्तमान में 2.5 एकड़ में कृषि जारी रखी हैं।
अपना जन्मदिन 3000 लोगों के साथ मनाया
जब उन्होंने अपना 100 वर्ष पूरा किया तो स्थानीय लोग उनके जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए पूरे शहर में फ्लेक्स बोर्ड लगाए थे। जिसमें 3000 लोग शामिल हुए थें। उनके स्वागत में दादी ने खीर से लेकर मटन बिरयानी तक बनाया था और सारे मेहमान मन से इस बात का ख़ास ख़्याल रखा था। सेलिब्रिटी बन चुकी दादी को आज आस-पास के हर ख़ास मौके पर बुलाया जाता है। शादियों में नवविवाहितों को आशीर्वाद देकर दादी अम्मा बहुत खुश होती हैं। इनके साथ जो सेल्फी लेने आते हैं दादी उन्हें भी मायूस नहीं करती हैं।
दादी की डॉक्टर पवित्रा बताती है कि दादी हमेशा रूटीन चेकअप के लिए आती हैं और आज भी उनका बीपी और शुगर सामान्य है। इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है उनका खान-पान। खाने पीने को लेकर वह काफ़ी सतर्क रहती हैं। वह ताजे और स्थानीय खाने को ही पसंद करती हैं, जिसमें बाजरा दलिया और मटन बिरयानी शामिल होता है। आज भी दादी अपने सारे काम स्वयं करती हैं। इनको पूर्व राष्ट्रपति ‘आर वेंकटरमन’ भी राष्ट्र भवन में चाय पर आमंत्रित कर चुके हैं।
आज जब 60 वर्ष के लोग ख़ुद को थका-हारा समझकर रिटायरमेंट लेकर घर पर आराम करने लगते हैं, 105 वर्ष की दादी पूरे जोश के साथ जैविक कृषि कर रही हैं, और वह भी प्रतिदिन। ऐसे में दादी पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है