अगर कोई व्यक्ति मेडिकल इंजीनियरिंग जैसी हायर स्टडी करने के बाद खेती करने का विचार करें तो ऐसा कोई नहीं होगा जो उसे बेवकूफ ना कहे। क्योंकि हर इंसान का सपना होता है कि वह एक अच्छा अधिकारी बने डॉक्टर बने इंजीनियर बने ना कि एक किसान बने। हाँ यह सच है कि हमारा भारत 75% से भी ज़्यादा कृषि पर ही आश्रित है। लेकिन फिर भी बहुत सारे लोग कृषि छोड़ दूसरे क्षेत्रों में जा रहे हैं और नौकरी कर रहे हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने B.Tech और M.Tech की डिग्री पूरी करने के बाद एक किसान बनने का फ़ैसला लिया और खेती करके नौकरी से भी ज़्यादा कमाई कर रही है।
वल्लरी चंद्राकर (Vallari Chandrakar) जिनकी उम्र 27 वर्ष है। मूल रूप से वल्लरी रायपुर से करीब 88 किमी दूर मुहँसमून्द के बागबाहरा के सिर्री पठारीमुडा गाँव की रहने वाली हैं। उन्होंने वर्ष 2012 में कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। उसके बाद रायपुर के दुर्गा कॉलेज में अस्सिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी भी करने लगी। लेकिन उस समय तक वल्लरी ने भी नहीं सोचा होगा कि वह अपनी नौकरी छोड़ खेती करना शुरू करेंगी और अपनी लाइफ में इतना मुश्किल क़दम उठाएंगी।
गांव आने के बाद ली थी खेती करने का फैसला
एक बार की बात है जब वल्लरी नौकरी के दौरान छुट्टियों में अपने गाँव आईं। वहाँ उन्होंने देखा कि गाँव के किसान बहुत ही पुरानी तकनीक से खेती कर रहे हैं और पूरे दिन मेहनत कर रहे हैं और उनकी मेहनत और लागत की तुलना में उन्हें मुनाफा नहीं हो रहा है। तभी उन्होंने अपने मन में फ़ैसला कर लिया कि वह आगे खेती ही करेंगे और दूसरे किसानों को नए तकनीक के साथ खेती करना सिखाएंगी।
नौकरी छोड़ खेती की शुरुआत की
उसके बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और खेती की शुरआत की। उन्होंने सबसे पहले अपनी खेती की शुरुआत अपने पिता द्वारा फार्म हाउस के लिए खरीदी हुई ज़मीन से ही की। इनके पिता जो की मौसम विभाग केंद्र रायपुर में इंजीनियर हैं और सबसे हैरान होने वाली तो यह बात है कि उनके घर में पिछले तीन पीढ़ियों से किसी ने खेती नहीं की थी। लेकिन वल्लरी अपने फैसले पर अडिग रही। शुरुआत उन्होंने 15 एकड़ ज़मीन पर खेती करके की, तो वहीं वर्तमान समय में वल्लरी पूरे 27 एकड़ ज़मीन पर खेती कर रही हैं।
उनका यह सफ़र काफ़ी मुश्किलों भरा रहा
वैसे वल्लरी के लिए खेती का सफ़र इतना भी आसान नहीं था जितना उन्होंने सोचा था और उनके मुश्किलों का सबसे बड़ा कारण था उनका लड़की होना। यही वज़ह थी कि कोई उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेता था। अनुभव की कमी के कारण वल्लरी किसान, बाज़ार और मंडी वालों से भी अच्छे से डील नहीं कर पाती थी।
किसानों से बेहतर संवाद के लिए छत्तीसगढ़ी सीखी
काफी मुश्किलों का सामना करने के बाद वल्लरी ने फ़ैसला लिया कि वह छत्तीसगढ़ी भाषा सीखेंगी ताकि वह अच्छे से किसानों और वहाँ के लोगों से बात कर पाए। इसके साथ ही उन्होंने इंटरनेट पर खेती की नई-नई तकनीकों को भी सीखा। वल्लरी ने दुबई इजराइल और थाईलैंड में होने वाली खेती के तरीकों को भी अपनाना शुरू किया।
विदेशो में भी है उनकी उगाई हुई सब्ज़ियों की मांग
अनुभव होने के बाद आज के समय में वल्लरी की उगाई हुई सब्जियाँ दिल्ली समेत भोपाल, इंदौर, उड़ीसा, नागपुर जैसे बड़े-बड़े शहरों में जाती हैं। इतना ही नहीं अब तो उन्हें विदेशों से भी सब्जियों के आर्डर आने लगे हैं। अब तो वल्लरी ख़ुद की उगाई हुई सब्जियों जैसे कद्दू टमाटर इत्यादि को दुबई, इजराइल जैसे देशों में निर्यात करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। फिलहाल वल्लरी खेती करने के साथ-साथ शाम में 5 बजे खेत से घर आने के बाद लड़कियों को अंग्रेज़ी और कंप्यूटर का प्रशिक्षण भी देती हैं। ताकि वहाँ की लड़कियाँ दूसरों पर निर्भर ना होकर आत्मनिर्भर बने।
भविष्य में क्या है वल्लरी की योजना
वल्लरी अपने भविष्य की योजना के बारे में बताती हैं कि उन्हें इजराइल जाकर आधुनिक खेती की तकनीक सीखनी है, जिससे वह अपने खेतों में भी नए-नए प्रयोग कर सके और ज़्यादा ज्यादा मुनाफा हासिल कर सके और दूसरे किसानों को भी खेती के लिए अच्छे से प्रशिक्षण दे सके। आज सभी लोग वल्लरी के इस जज्बे और हौसले के कायल हो चुके हैं। आज वल्लरी के इस फैसले पर उनके पूरे परिवार को गर्व महसूस होता है।