वो कहते हैं कि ग़रीबी में जन्म लेना अभिशाप नहीं है, लेकिन ग़रीबी में मर जाना एक अभिशाप है। व्यक्ति अपने मेहनत और कर्मों से इसे दूर कर सकता है। अपने मेहनत के दम पर ही मंजुला जो कभी पूरे दिन में सिर्फ़ 5 रुपए तक ही कमा पाती थी वही मंजुला आज करोड़ों की मालकिन है।
करोड़ों की मालकिन मंजुला वाघेला साल 1981 तक पूरे दिन सडकों से कूड़ा बीनने का काम करती थी और पूरे दिन भर में काफ़ी मशक्कत करने के बाद भी बड़ी मुश्किल से 5 रुपए तक ही कमा पाती थी और इसी 5 रुपए में वह अपना गुज़ारा करती थी। रोजाना सुबह 5 बजे उठकर वह एक बड़ा थैला लेकर कूड़ा बीनने चली जाती थी और कूड़े से रिसाइकिल होने वाले कचड़े को इकट्ठा कर कबाड़ी वाले को बेचा करती थी।
लाइफ़ में आया यू टर्न
अचानक उनकी लाइफ में एक टर्न आया जिससे उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल गई। जब उनकी मुलाक़ात इला बेन भट्ट से हुई जो सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन की संस्थापक थी। अब 40 सदस्यों वाली इला श्री सौंदर्य सफ़ाई उत्कर्ष महिला सेवा सहकारी मंडली लिमिटेड के निर्माण में मंजुला की पूरी सहयता करती है।
पति की भी हो गई मृत्यु
मंजुला के लिए या बिजनेस खड़ा करना बहुत ही मुश्किल था। लेकिन इन मुश्किलों के साथ एक और विपत्ति उनके माथे आ पड़ी। हुए यूं कि उनके पति हमेशा-हमेशा के लिए उन्हें छोड़कर चल बसे। मंजुला के लिए गुज़ारा करना बहुत ही मुश्किल हो गया और उनके साथ उनका एक छोटा बेटा भी था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
उन्होंने अपनी मंज़िल पर फोकस करना शुरू किया और तुरंत ही मंजुला को सौंदर्य मंडली को पहला ग्राहक नेशनल इंस्टीट्युट ऑफ डिजाईन भी मिल गया था। उसके बाद मंजुला ने इंस्टीट्यूट, घरों, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवाएँ देनी शुरु कर दी। इसके साथ-साथ उन्होंने गुजरात के इन्टरनेशनल इवेंट वाइब्रेट को भी सफ़ाई की सेवा दी।
आज बहुत सारे तकनीकों का करती हैं इस्तेमाल
वाकई उन्हें किन-किन मुश्किलों से गुजरना पड़ा, ये तो उनकी कहानी ही बयाँ कर रही है। सड़कों से कूड़े इकट्ठे करने वाली मंजुला से लेकर सौंदर्य मंडली तक सफ़र बहुत ही लंबा और मुश्किल भरा था। आज बहुत सारे आधुनिक उपकरण और तकनीक के इस्तेमाल करती हैं, जैसे-हाई-जेट प्रेशर, माइक्रो फाईबर मॉप्स, रोड क्लिनर्स, फ्लोर क्लिनर्स, स्क्रबर्स इत्यादि।
बड़ी कंपनियों में शुमार होने की कोशिश
वैसे वर्तमान समय में जितनी भी बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और संगठन है वह साफ़ सफ़ाई के काम और कॉन्ट्रैक्ट के लिए ई टेंडर इशू करती हैं। फिलहाल सौंदर्य मंडली के लिए यह काम थोड़ा मुश्किल है। वैसे अब मंजुला ऐसे लोगों को नौकरी पर रख रही है जिन्हें इन सब के बारे में पूर्ण जानकारी हो और वह भी बड़ी-बड़ी कंपनियों की तरह और आगे बढ़ सके।
कॉलेज में सम्मानित भी की जा चुकी हैं
अपने बिजी लाइफ के बावजूद भी मंजुला अपने बेटे का पूर्ण ख़्याल रखती थी। उनका मानना था कि बचपन में वह जिन परिस्थितियों से गुजरी हैं उनके बेटे को उन परिस्थितियों से ना गुजरना पड़े। इसलिए वह अपने बेटे के हर ज़रूरत का ख़्याल रखती हैं। उन्होंने अपने बेटे को डॉक्टर बनाने के लिए पैसे भी इकट्ठे किए। मंजुला को अपने बेटे के लिए किए गए संघर्षो के खातिर उनके कॉलेज में सम्मानित भी किया जा चुका है।
वार्षिक टर्नओवर एक करोड़ है
मंजुला का साल 2015 के आँकड़े के मुताबिक वार्षिक टर्न ओवर एक करोड़ रुपये था। वर्तमान समय में मंजुला क्लिनर्स को-ओपरेटिव की प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं। इस संस्था में अभी लगभग 400 सदस्य हैं। फिलहाल क्लिनर्स को-ओपरेटिव के द्वारा गुजरात में 45 इंस्टीट्यूट और सोसायटीज को क्लीनिंग और हाउसकिपींग की सुविधा उपलब्ध करवाया जाता है।
फिलहाल मंजुला की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल चुकी है। वह अपनी लाइफ में पूरी तरह से सेटल है। इसे कहते हैं अपने कर्मों द्वारा अपने हाथों की लकीरों को बदल देना।