इंसान की ज़िंदगी में कब कौन-सी स्थिति आ जाए यह कहना थोड़ा मुश्किल है। कब कोई व्यक्ति अर्श से फ़र्श पर आ जाए और कब कोई फ़र्श से अर्श पर आ जाए। ज़िन्दगी इंसान को कभी भी दोराहे पर लाकर खड़ा कर सकती है।
ऐसी ही एक महिला के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिसे ज़िन्दगी ने क्या से क्या बना दिया। कभी छात्रसंघ चुनाव और विधानसभा चुनाव लड़ चुकी ये महिला इन दिनों हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांगकर अपना कर पेट पालने को विवश है। इनका नाम है हंसी प्रहरी, जो अल्मोड़ा के रणखिला गाँव की रहने वाली हैं। ये अपने छात्र जीवन में कुशल वक्ता रह चुकी हैं। ये 1998-99 में उत्तराखंड के कुमाऊँ विश्वविद्यालय के छात्र संघ की वाइस प्रेसिडेंट बनकर काफ़ी चर्चा में आई थी।
हंसी प्रहरी ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी तथा राजनीति विज्ञान में मास्टर्स करने के बाद कुमाऊँ विश्वविद्यालय की ही सेंट्रल लाइब्रेरी में बतौर लाइब्रेरियन लगभग चार साल तक नौकरी किया। उसके बाद उत्तराखंड से 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में सोमेश्वर सीट से इन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव भी लड़ा। लेकिन इस चुनाव में ही नहीं है सफलता नहीं मिली। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रदीप टम्टा ने 9146 मत हासिल कर भाजपा प्रत्याशी को 883 वोटों के अंतर से हराया था। उस समय हंसी को 2650 वोट मिले थे।
वैसे तो 2011 तक उनकी लाइफ में सब कुछ नॉर्मल चल रहा था। लेकिन अचानक से ज़िन्दगी ने ऐसा पासा फेंका के सब कुछ बदल गया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हंसी ने लगभग 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने साथ अपने 6 साल के बच्चे का पालन-पोषण कर रही हैं। एक बेटे के साथ उन्हें एक बेटी भी है, जो फिलहाल अपनी नानी के साथ रहती है।
अपनी शादी के बाद अपने ससुराल वालों से बहुत ज़्यादा परेशान होकर वह 2008 में ही लखनऊ से हरिद्वार चली गई। और वह शारीरिक रूप से इतनी कमज़ोर हो चुकी थी कि वह नौकरी करने में असमर्थ थी। इसलिए उन्होंने रेलवे स्टेशन, बस अड्डे आदि जगहों पर भीख मांगने का काम शुरू किया। हंसी की तरफ़ ख़ासकर लोगों का ध्यान तब गया, जब वह अपने बेटे को पढ़ाते वक़्त फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोल रही थी।
अब हंसी की कहानी सामने आने के बाद लोग उनकी मदद के लिए सामने आ रहे हैं। वहीं, ऐसी भी ख़बर आ रही है कि भेल स्थित समाज कल्याण आवास में इनके लिए कमरा उपलब्ध कराया गया है। लोगों में ऐसी उम्मीद भी है कि इस घटना के बाद उनकी ज़िंदगी दोबारा से पटरी पर लौटेगी और अपने बेटे को पढ़ाकर प्रशासनिक अधिकारी बनाने का सपना भी पूरा कर पाएंगी।