दोस्तों, हम अपने आप से, अपनी परेशानियों और हालातों से तो लड़ सकते हैं लेकिन क़िस्मत से लड़ना हर किसी के बस में नहीं होता। ज्यादातर लोग अपनी फूटी क़िस्मत का रोना रोकर उसे कोसते रहते हैं और सबकी सहानुभूति का पात्र बनते हैं, पर आज हम जिस व्यक्ति के बारे में आपको बताने जा रहे हैं वह इनसे अलग है, उसने अपनी क़िस्मत को अपनी मेहनत से बदल कर रख दिया। बिना माँ बाप का प्यार पाए उसने अपने कटे हुए हाथों के साथ दुनिया में रंग भर दिए, तो चलिए देश के इस प्रतिभाषाली, दृढ़ संकल्पित कलाकार की पूरी दास्तान जानते हैं।
हाथ कटने पर 4 साल की उम्र में माता-पिता ने अस्पताल में छोड़ दिया
हम आज जिस व्यक्ति की बात करने जा रहे हैं उनका नाम है सुनील कुमार। वे बचपन में हरियाणा में रहा करते थे। जब वह काफ़ी छोटे करीब 4 साल के थे तब बिजली की चपेट में आने के कारण बहुत घायल हो गए। उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, लेकिन इस दुर्घटना में उनके दोनों हाथ चले गए थे। इतने छोटे बच्चे को इस हालत में उनके माता-पिता हॉस्पिटल में छोडकर चले गए, सम्भव है वे उस बिना हाथ के बच्चे के भावी जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना करने का साहस ना रखते हों, जो भी हो पर इस समय उस बच्चे को माँ और पिता के प्यार और देखभाल की बहुत ज़रूरत थी, जो उसे नहीं मिला।
आश्रम में रहे, पैरों से पेंटिंग बनाना सीखा, बदल दिया क़िस्मत को
छोटे सुनील कुमार, जिन्हें उनके माँ पिता ही इस हालत में छोड़कर चले गए थे, उन्हें देखकर एक दयालु महिला को तरस आया और वे उन्हें मदर टेरेसा हरियाणा साकेत काउन्सिल परिषद नामक एक ऐसे आश्रम में ले आयी जहाँ पर उनके जैसे दिव्यांग बच्चों को अपने बलबूते पर जीवन जीना सिखाया जाता है। वहाँ पर उन्होंने अपने सारे काम अपने पैरों से ही करना सीखा। उन्होंने अपने पैरों से ही पेंटिंग ब्रश पकड़कर पेंटिंग करना भी शुरू किया। अभी वे उसी आश्रम में रहते हैं और अपने पैरों से ऐसी खूबसूरत पेंटिंग्स बनाने में माहिर हो गए हैं, जिन्हें सामान्य व्यक्ति भी नहीं बना पाते हैं।
सुनील कुमार ने अपनी बिगड़ी तक़दीर को अपने परिश्रम से बदल दिया और उन सब लोगों को ज़िन्दगी जीने की कला सिखाई जो अपनी समस्याओं से हारकर ग़लत क़दम उठाने के बारे में सोच लेते हैं। आश्रम में रहते हुए सुनील कुमार को पढ़ना लिखना भी सिखाया गया और अपने दम पर सारे काम करने का कौशल भी। उन्होंने अपने शिक्षकों की सहायता से अपने पैरों की उंगलियों से ही पैन, पेंसिल पकड़ना सीखा, साथ ही कम्प्यूटर के की-बोर्ड को चलाना भी। उन्होंने कंप्यूटर शिक्षा में डिप्लोमा भी प्राप्त किया, परन्तु उनकी पेंटिंग बनाने में ही रुचि थी अतः वे चित्रकार बन गए।
राष्ट्रपति जी ने भी किया पुरस्कार देकर सम्मानित, फाइव स्टार होटलों में सजाई जाती हैं इनकी पेंटिंग्स
दिन प्रतिदिन सुनील कुमार की प्रतिभा में निखार आता गया और वे और ज़्यादा अच्छी पेंटिंग्स किया करते थे। उनकी मनमोहक पेंटिंग्स को सभी ने सराहा। एक दिन उन्होंने एक ख़ास थीम ‘सेव पांडा‘ पर खूबसूरत पेंटिंग बनाई, जिसके लिए उनको उस समय की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी ने पुरस्कार देकर सम्मानित किया। फिर बाद में सुनील कुमार ने इसी क्षेत्र में अपना करियर बना लिया।
इनकी बनाई पेंटिंग्स काफ़ी ज़्यादा दामों में बिकती हैं, जिन्हें बड़े-बड़े लोग खरीदते हैं। इनकी पेंटिंग्स फाइव स्टार होटलों और कई रईस लोगों के घरों में देखने को मिलती हैं। अपने हौसलों से सुनील कुमार ने ना सिर्फ़ अपने चित्रों में रंग भरे बल्कि अपनी ज़िन्दगी को भी सुंदर रंगों से सराबोर कर दिया। इन्होंने सारी दुनिया को सीखा दिया कि इंसान अपनी क़िस्मत से नहीं, अपनी कड़ी मेहनत से जीतता है।
केपीसिटी फाउंडेशन ने की सहायता
सुनील कुमार की पेंटिंग्स और उनके इस हुनर के बारे में सबको पता चले इसका जिम्मा केपीसिटी फाउंडेशन ने उठाया। इस संस्था में दिव्यांग बच्चों को इतना कुशल बनने को तैयार किया जाता है जिससे वे किसी भी सामान्य शारीरिक क्षमता वाले व्यक्ति से कम ना पड़ें। इस संस्था के एक अधिकारी मुकेश कुमार जी के अनुसार, सुनील कुमार की पेंटिंग्स अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शित किए जाते हैं, फिर जिनको भी उनकी ये पेंटिंग्स अच्छी लगती है वे दाम देकर उन्हें खरीद लिया करते हैं। कई बड़े बिजनेसमैन और अमीर लोग इनके जैसे विशेष बच्चों की पेंटिंग्स खरीद उन्हें अपने घर और बिल्डिंग्स में सजाते हैं और इन होनहार बच्चों को अपने बलबूते पर खड़ा होने में मदद करते हैं।