दोस्तों, हम सभी को अपनी ज़िन्दगी में कभी ना कभी, किसी ना किसी क्षेत्र में असफलता का सामना ज़रूर करना पड़ता है। असफलता के वह क्षण आसान नहीं होते, हमें अंदर तक झकझोर कर रख देते हैं। कभी तो अत्यधिक तिरस्कार और लोगों की बातें भी सुननी पड़ती हैं, लेकिन इतिहास गवाह है, इन सारी मुश्किलों के बावजूद कामयाबी उसी ने हासिल की है जिसने हार नहीं मानी।
हम अगर सफल व्यक्तियों की बात करें तो उनकी भी जीत की राह सरल नहीं रही, मंज़िल तक पहुँचने में बहुत-सी समस्याएँ झेलनी पड़ी होंगी, कई बार असफल भी हुए होंगे और देखा जाए तो वह कामयाबी ही क्या जो आसानी से मिल जाए? खैर, आज हम जिस पर्सनेलिटी की बात करने जा रहे हैं उनका नाम है रुक्मिणी रियार और वे IAS टॉपर हैं, परन्तु जैसा कि हमनें कहा, इनका आईएएस बनने का सफ़र भी सरल नहीं था, ये भी फेल होकर फिर से संभली।
छठी कक्षा में फेल हुई थीं रुक्मिणी
रुक्मिणी रियार का जन्म चंडीगढ़ में रिटायर्ड डेप्यूटी डिस्ट्रिक अटॉर्नी बलजिंदर सिंह के घर हुआ था। जब वे काफ़ी छोटी थीं तभी उनका एडमिशन एक बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया गया था। इस बदलाव का उन पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा, बोर्डिंग स्कूल के प्रेशर को वे सहन नहीं कर पा रही थीं और छठी कक्षा में फेल हो गईं। इसके बाद उन्हें डलहौजी सेक्रेट हार्ड स्कूल में भेज दिया गया। रुक्मिणी को अपने परिवार से दूर रहकर पढ़ने में मन नहीं लगता था और उनकी रुचि भी कम हो गई थी।
फेल होने की वज़ह से आ गईं थीं डिप्रेशन में
रुक्मिणी को फेल होने के कारण बहुत शर्म महसूस होती थी। वे अपने माता पिता, परिवारजनों, दोस्तों और शिक्षकों से बात करने में भी झिझकती थीं। इस असफलता ने उनका मनोबल बहुत गिरा दिया था और उन्हें लगता था कि सब उनके बारे में क्या सोचते होंगे? इसलिए वे सबसे अलग थलग-सी रहने लगी थीं और बहुत टेंशन करने के कारण डिप्रेशन में आ गई थीं।
असफलता से सीखा आगे बढ़ना
वे कई महीनों तक इसी तरह टेंशन में रहीं, फिर उन्होंने सोचा कि यदि वे इसी तरह अपनी एक असफलता कि वज़ह से पछताती रहेंगी और सोचती रहेंगी की लोग क्या कहेंगे, तो वे अपनी ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ पाएगी। उन्होंने ठान लिया कि अब तक जो कुछ भी हुआ उसी से प्रेरणा लेकर वे आगे अपने जीवन में ऐसा कुछ के दिखाएंगी जिससे सभी को उन पर गर्व हो। इस फेलियर का ठप्पा अपने ऊपर से हटाकर पूरी मेहनत और लगन के साथ सफलता कि सीढ़ियाँ चढ़ेंगी।
बिना कोचिंग क्लास के UPSC में किया टॉप, बनीं IAS
इन्होंने पहले टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस से मास्टर्स किया और फिर कुछ समय तक एक NGO में काम भी किया ताकि वे अपने देश की स्थिति को ठीक से समझ पाएँ। इसके बाद उन्होंने UPSC की तैयारी करना शुरु कर दिया। वे अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए ख़ूब निष्ठा से एकाग्रचित्त होकर दिन में 5 से 6 घंटों तक पढ़ती थीं।
खास बात तो ये है कि उन्होंने इस परीक्षा के लिए कोई भी कोचिंग ज्वाइन नहीं की और सेल्फ स्टडी ही करती थीं। आखिरकार उन्हें कामयाबी मिली, उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प से UPSC की परीक्षा में पहली बार में ही टॉप किया।
सभी को दिया हार ना मानने का सबक
उनकी इस जीत ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उनके प्रति सभी की सोंच बदली। उन पर सभी को गर्व हुआ। रुक्मिणी रायर ने अपनी इस सफलता से सब को सीखा दिया कि कोई इंसान यदि विफल होता है तो उसे हार कर बैठना नहीं चाहिए, बल्कि दुगुने उत्साह और परिश्रम के साथ अपनी मंज़िल का रास्ता तय करना चाहिए, गिरकर संभलने वाले लोग ही सफल होते हैं। उनसे सभी विद्यार्थियों को सबक मिलता है कि परीक्षा में फेल होना ज़िन्दगी की हार नहीं होती, फेल होने पर उन्हें मायूस नहीं होना चाहिए, बल्कि अपनी कमजोरी को खोजकर उसे दूर करना चाहिए।