किसी कवि ने ठीक ही कहा है “बंजर क़िस्मत पर सफलता कि फ़सल उगाओ, मंज़िल तो मिल ही जायेगी तुम ज़रा अपने क़दम तो बढ़ाओ”। इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है शिवागुरू प्रभाकरन (M. Sivaguru Prabhakaran) ने, जिन्होंने अपनी क़िस्मत से लड़कर, कठोर परिश्रम से मंज़िल पाई और अपने आईएएस बनने के सपने को हक़ीक़त में बदल दिया।
हर व्यक्ति अलग-अलग परिस्थितियों में जन्म लेता है। किसी को तो बचपन से ही सुख और सुविधाएँ मिल जाती हैं और किसी को जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति भी नहीं होती है। शिवागुरू प्रभाकरन भी उन गरीब व्यक्तियों में से एक थे जिनके पास खाने पीने के लिए भी पूरे पैसे नहीं होते हैं। हालांकि उनमें इतनी ताकत और दृढ़ संकल्प था कि वे अपनी इन परिस्थितियों से उबरने की क्षमता रखते थे।
अत्यंत गरीब परिवार से थे शिवागुरू प्रभाकरन, पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी थी
प्रभाकरन तमिलनाडु (Tamil Nadu) के तंजावुर जिले में स्थित मेलाओत्तान्काडू गाँव में एक दरिद्र परिवार में जन्मे थे। समस्याओं का और इनका जैसे गहरा नाता हो गया था। इनके पिताजी को शराब पीने की लत थी और घर की आर्थिक हालत बहुत खराब थी। ऐसे में प्रभाकरन को ही परिवार की जिम्मेदारियाँ उठानी पड़ी। वे पढ़ने में बहुत रुचि रखते थे और-और पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहते थे, लेकिन घर की इस हालत ने उन्हें पढ़ाई छोड़ने को मजबूर कर दिया और कक्षा 12 के बाद ही वे पढ़ाई छोड़कर काम में लग गए।
पैसों के लिए मजदूरी और लकड़ी काटने का काम किया
इन्हें अपने परिवार के लिए रोज़ी रोटी कमानी थी। कोई काम ना मिलने पर खेत में मज़दूर की तरह कार्य किया और करीब दो वर्ष तक आरा मशीन से लकड़ियाँ काट कर घर को संभाला। इन्होंने पैसे कमाने के लिए कई तरह के काम किए और बहुत परेशानियाँ झेली लेकिन हर हाल में उन्होंने अपनी हिम्मत बाँधे रखी और कुछ कर दिखाने की तमन्ना जो उनके मन में थी उसे ज़िंदा रखा।
कलेक्टर जे राधाकृष्णन से हुए प्रभावित
उन्होंने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बहुत अच्छे से निभाया, छोटे भाई की पढ़ाई से लेकर बहन के विवाह तक सभी महत्त्वपूर्ण कार्य पूरे किए। फिर एक दिन वर्ष 2004 में जिले में कुंभकोणम के एक विद्यालय में आग लगने पर करीब 94 बच्चे मारे गए और 18 व्यक्ति घायल हो गए, तब वहाँ के ज़िला कलेक्टर जे राधाकृष्णन ने उन लोगों के लिए बहुत मदद के कार्य किए और सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध करवाई। जिसे देखकर प्रभाकरन बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने ठान लिया कि वे भी लोकसेवा के कार्य करने हेतु राधाकृष्णन जैसे अधिकारी बनकर सबकी मदद करेंगे।
जी तोड़ मेहनत की, रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोकर समय बिताया
जब उनके सर से परिवार की जिम्मेदारी कुछ कम हुई तो उन्होंने आईआईटी में एडमिशन लेने के बारे में सोंचा लेकिन उनके पास कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे, पर कहते हैं ना कि भगवान भी मेहनत करने वालों का साथ देता है। उन्हें पता चला कि चेन्नई में सेंट थॉमस माउंट नाम के एक शिक्षक हैं जो बिना फीस लिए ही गरीब छात्रों को पढ़ाया करते हैं।
फिर वे पढ़ने चेन्नई चले गए परन्तु उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे किराए पर कमरा के पाएँ। ऐसे में भी उन्होंने हार नहीं मानी और रेल्वे प्लेटफॉर्म प्र ही सोना शुरू कर दिया। लगभग चार माह तक वे वहीं सोते थे उसके बाद एक दूसरे छात्र ने उन्हें अपने साथ रहने कि जगह दे दी। उन्होंने आईआईटी में एडमिशन लिया और फिर बीटेक किया, तत्पश्चात् एमटेक में टॉप भी किया।
यूपीएससी की परीक्षा में पास हुए, बने आईपीएस अधिकारी
उन्होंने अब निश्चय कर लिया था कि वे यूपीएससी की परीक्षा देंगे और आईपीएस अधिकारी बनेंगे, हालांकि ये आसान नहीं था लेकिन उनके हौसले भी कहाँ पस्त होने वाले थे। वे निरंतर लगन और मेहनत से तैयारी में लग गए। तीन बार असफल हुए और फिर चौथी बार में उन्हें सफलता मिली। उन्हें कड़ी मेहनत का फल मिला, उनका 101 वां स्थान आया था, वे आईपीएस अधिकारी बन गए।
उन्होंने कहा कि उन्हें सफल बनाने के लिए उनकी माताजी, दादी तथा बहन ने बहुत साथ दिया, अतः वे उन्हें भी इस मुकाम पर पहुँचने का श्रेय देते हैं। उन्होंने ना सिर्फ़ अपनी ज़िन्दगी को सुधारा बल्कि सभी को सिखाया कि कोई भी कार्य करने में मुश्किलें अवश्य आएंगी लेकिन अगर हम अपने पथ पर दृढ़ता से डटे रहें तो सफल ज़रूर होते हैं।