Supreme Court of India – सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वसीयत से जुड़ा एक अहम सुनाया है, जिसके तहत अगर किसी हिंदू व्यक्ति की बिना वसीयत बनाए ही मृत्यु हो जाती है तो उस स्थिति में मृतक की संपत्ति में उसकी बेटी का भी हिस्सा होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत हिंदू महिलाओं व विधवाओं के संपत्ति में अधिकार को लेकर सुनाया है, जिसने संपत्ति पर बेटियों की हिस्सेदारी को लेकर एक लंबे समय से चल रही बहस पर विराम लगाने का काम किया है।
बेटियों का मृत पिता द्वारा खरीदी गई प्रॉपर्टी में पूरा हक
सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति पर महिलाओं के अधिकार पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर किसी हिंदू व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसकी वसीयत तैयार नहीं है, तो उस स्थिति में मृतक के बेटे के साथ-साथ बेटी की भी तमाम तरह की संपत्ति में हिस्सेदारी होगी।
इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि मृत पिता की संपत्ति पर बेटे के बेटी का ही अधिकार होगा, इसलिए बेटा अपने बच्चों का नाम लेकर संपत्ति में हिस्सेदारी नहीं मांग सकता है। यानी कोर्ट के फैसले के हिसाब से मृतक की संपत्ति पर बेटा और बेटी दोनों का हक होगा, जिसमें बेटी से पहले पोता-पोती को वरीयता नहीं दी जाएगी।
Daughters to inherit self-acquired properties of fathers dying without a will: Supreme Court.#supremecourt #property #daughter #propertyrights #indiadotcom pic.twitter.com/nJ7ltatAu9
— India.com (@indiacom) January 21, 2022
लंबे समय से चल रहा था मामला
सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला तमिलनाडु के केस के चलते लिया है, जिसमें पिता की मृत्यु साल 1949 में हो गई थी और उन्होंने अपनी वसीयत घर के किसी भी सदस्य के नाम नहीं की थी। ऐसे में उस वक्त मद्रास हाई कोर्ट ने मृत व्यक्ति के बेटों को पूरी संपत्ति सौंप दी थी, जबकि उस समय मृतक का पूरा परिवार ज्वाइंट फैमिली रूप में रहता था और उनकी बेटी भी थी।
इस फैसले से असंतुष्ट बेटी ने इंसाफ की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने 51 पन्नों का फैसला बेटी के हक में सुनाया। अब इस फैसले के तहत मृतक के बेटों को अपने पिता की संपत्ति में से अपनी बहन को भी हिस्सेदारी देनी होगी, जिसका मुकदमा उनके बच्चे लड़ रहे थे।
क्या है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम?
महिलाओं के संपत्ति में अधिकार को लेकर साल 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियन पेश किया गया था, जिसके तहत पिता की संपत्ति में बेटियों को हिस्सेदारी देने की बात कही गई थी। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी दोनों का बराबर अधिकार होगा, फिर चाहे बेटी शादीशुदा हो या फिर वह विधवा हो।
हालांकि इस कानून को बनाए जाने के बावजूद भी बेटियों को लंबे समय तक पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं दिया जाता था, लिहाजा साल 2005 में इस कानून में संशोधन किया गया था।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन किए जाने के बाद महिलाओं को जन्म से ही पिता की संपत्ति का हिस्सेदार बना दिया गया था, जिसके तहत बेटियों के पास यह अधिकार है कि वह खानदानी जमीन का अपने भाई के साथ बराबर बंटवारा कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बेटियाँ भी अपने पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार होती हैं, लिहाजा उन्हें उनका अधिकार जरूर दिया जाना चाहिए। वहीं कई मामलों में मृतक के बेटे नहीं होते हैं, उस स्थिति में पिता की संपत्ति पर उसकी बेटी का ही अधिकार होगा।