सुपर फूड के नाम से जाना जाने वाला मखाना हर तरह से हमारे लिए फायदेमंद होता है और दूसरी बात कि इसकी खेती करके हजारों किसान अपनी ज़िन्दगी बदल चुके हैं यानी इसकी खेती में बहुत ज़्यादा मुनाफा होता है। जहाँ पहले बिहार के सीमांचल क्षेत्र के किसानों की हजारों हेक्टेयर की जो ज़मीन बेकार पड़ी रहती थी, उसी ज़मीन को आज मखाने की खेती ने उपजाऊ बना दिया है। उसी के द्वारा कर्ज़ में डूबे रहने वाले किसान भी आज लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं
क्यों कहते हैं सुपर फूड
इसे सुपरफूड कहने के पीछे का कारण है कि यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक फूड है क्योंकि इसकी खेती में किसी भी तरह का कीटनाशक खाद्य या दवाइयों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है। मखाने में कई ऐसी चीजें पाई जाती है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होता है जैसे, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिल लवण, फॉस्पोरस और लौह पदार्थ इत्यादि। इसका इस्तेमाल लोग व्रत में भी करते हैं।
मखाने की 80% खेती अकेले बिहार करता है
पूरे भारत में करीब 20 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र वाले ज़मीन में मखाने की खेती होती है, जिसका 80% खेती अकेले बिहार ही करता है। वैसे किसान जो हमेशा बाढ़ जैसे भयानक त्रासदी से घिरे रहते थे वैसे किसान भी अब अपने खेतों में मखाने की खेती कर रहे हैं। ज्यादातर इसकी खेती पूर्णिया, कटिहार, अररिया और मधुबनी जैसे क्षेत्रों में हो रही है।
इसके पौधे पानी के स्तर के साथ ही बढ़ते हैं
मखाने की खेती पानी में ही होती है इसके पौधे पानी के अस्तर के साथ-साथ बढ़ते हैं और पानी के घटने पर यह खेत की ज़मीन पर फैल जाते हैं। जिसके बाद किसानी से एकत्रित कर पानी से बाहर निकालते हैं। इस प्रक्रिया को बुहारन प्रक्रिया कहते हैं जिसे काफ़ी सावधानी से करनी पड़ती है।
सामान्य खेतों में भी मखाने की खेती
मखाने के अनुकूल खेती के साथ-साथ कुछ किसान ऐसे भी हैं जो सामान्य खेतों में भी इसकी खेती कर रहे हैं। इसके लिए पहले वह खेत में तलाबनुमा बनाकर 6 से 9 इंच तक पानी भरते हैं। उसके बाद इसकी खेती करते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि 1 हेक्टेयर की खेती में लगभग 28 से 30 क्विंटल तक मखाने की पैदावार हो सकती है।
दरभंगा के मजदूरों की मांग है मखाने की खेती
बिहार दरभंगा के कुछ मज़दूर हैं जिनकी मखाने की खेती के लिए बहुत मांग होती है। इसके पीछे का कारण यह है कि वह गोरिया में एक्सपोर्ट होते हैं। मखाने की खेती से तैयार कच्चे माल को ही ‘गोरिया’ कहते हैं। मखाने के लावे को निकालना बहुत ही मुश्किल काम होता है जिसमें दरभंगा के मज़दूर एक्सपर्ट होते हैं।
25 हज़ार की लागत में 80 हज़ार का होता है मुनाफा
1 एकड़ में मखाने की खेती का उत्पादन लगभग 10 से 12 क्विंटल होता है। प्रति एकड़ लागत 20 से 25 हज़ार होते हैं जबकि मुनाफा 60 से 80 हज़ार तक हो होते हैं। इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय मार्च से अगस्त तक माना जाता है।
20 से 25 करोड़ विदेशी मुद्रा की होती है प्राप्ति
मखाने की खेती बिहार के सीमांचल, मिथिलांचल क्षेत्रों के अलावा पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, राजस्थान और मणिपुर में भी होती है। इन राज्यों के अलावा भी कहीं-कहीं कोई कोई किसान इसकी खेती करते हैं। साल 2002 में बिहार के दरभंगा में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना हुई थी। यह केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्य करता है। हर साल हमारे देश को मखाने के निर्यात से लगभग 22 से 25 करोड़ की विदेशी मुद्रा की भी प्राप्ति होती है।
कई बीमारियों को दूर करने में सहायक है मखाना
मखाने में इतने सारे पोषक तत्वों के पाए जाने के साथ-साथ कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि ये दिल की बीमारी और किडनी में भी सहायक होता है। वहीं हमारे जोड़ों को मज़बूत बनाता है। मखाने में एंटी ऑक्सीडेंट भी पाया जाता है, जो हमारी पाचन क्रिया को मज़बूत बनाता है।
इस तरह हमने जाना की मखाना सच में सुपर फूड कहलाने लायक है, जो हमारे शरीर की कई बीमारियों को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। इतना शुद्ध होता है कि लोग व्रत में भी इसका सेवन करते हैं।