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जब पूरी दुनिया युद्ध में व्यस्त थी, तब हिंदुस्तान ने बना डाला खुद का ‘मैसूर सैंडल सोप’

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Story of Mysore Sandal Soap – भारतीय बाजारों में एक से बढ़कर एक खुशबूदार साबुन और बॉडी वॉश मौजूद हैं, जिनसे स्नान करने पर पूरा शरीर महक उठता है। लेकिन क्या आप भारत के पहले खुशबूदार साबुन के बारे में जानते हैं, जिसका इस्तेमाल शाही परिवार के सदस्य स्नान करने के लिए किया करते थे।

उस खुशबूदार साबुन को मैसूर सैंडल सोप (Mysore Sandal Soap) के नाम से जाना जाता है, जो भारत का सबसे पुराना और शुद्ध चंदन की फ्रग्नेंस वाला साबुन है। मैसूर सैंडल सोप को भारत में उस वक्त बनाया गया था, जब सारी दुनिया युद्ध में व्यस्त थी। यही वजह है कि यह खुशबूदार साबुन भारतीयों के दिल के बेहद करीब है, तो आइए जानते हैं इस सोप को बनाए जाने की दिलचस्प कहानी। Story of Mysore Sandal Soap

Mysore Sandal Soap

चंदन के तेल से बनाया गया था मैसूर सोप | Story of Mysore Sandal Soap

भारत के पहले खुशबूदार साबुन को बनाने में मैसूर के शाही खानदान की अहम भूमिका रही थी, जहां के तत्कालीन शासक कृष्ण राजा वोडियार चतुर्थ ने चंदन की लकड़ी से साबुन बनाने का फैसला किया था। इस काम को पूरा करने के लिए कृष्णा राजा ने अपने दीवान मोक्षगुंडम विश्वेश्वैया की मदद ली थी।

दरअसल भारत पूरी दुनिया में चंदन की लकड़ी का निर्यात करता था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चंदन का व्यापार अचानक से रूक गया था। इसकी वजह से मैसूर में चंदन की लकड़ियों का ढेर जमा हो गया था, जिसे इस्तेमाल करने के लिए राजा ने खुशबूदार साबुन बनाने का फैसला किया था। ये भी पढ़ें – 100 साल पहले अंग्रेजों की नस्लीय भेदभाव का विरोध करने के लिए शुरू की गई ‘वाघ बकरी चाय’ की कहानी

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मैसूर में चंदन के पेड़ के सबसे ज्यादा जंगल मौजूद थे, जिनकी मदद से हर साल ढेर सारी चंदन की लकड़ी का उत्पादन हुआ करता था। ऐसे में राजा ने अपने दीवान के साथ मिलकर मई 1916 में चंदन की लकड़ी से तेल निकालने वाली मशीन आयात की और साबुन का निर्माण करने के लिए एक कारनाखा स्थापित किया था।

इस तरह चंदन की लकड़ी से पहली बार तेल निकाल कर अलग किया गया था, जो बहुत ही खुशबूदार होता था। ऐसे में राजा कृष्ण ने अपने महल में काम करने वाले कर्मचारियों और मजदूरों को चंदन के तेल से नहाने का आदेश दिया, जिसके बाद धीरे धीरे पूरे मैसूर में लोगों ने चंदन के तेल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।

Mysore Sandal Soap
fireflydaily

साबुन बनाने के लिए किए गए थे प्रयोग

उस दौर में तकनीकी आज की तरह एडवांस नहीं हुआ करती थी, इसलिए चंदन की लकड़ी से निकलने वाले तेल से साबुन बनाना इतना भी आसान नहीं था। ऐसे में राजा ने अपने दीवान मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को साबुन बनाने फॉर्मूला खोजने का काम दिया था, जिसके तहत दीवान मोक्षगुंडम घूमते घूमते बॉम्बे (मुंबई) जा पहुंचे थे।

वहां उन्होंने तकनीकी विशेषज्ञों से साबुन बनाने का विचार साझा किया, जिसके बाद भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) में पहली बार चंदन के तेल से साबुन तैयार करने का प्रयोग शुरू किया गया था। संस्थान में साबुन बनाने का फॉर्मूला तैयार करने वाले वैज्ञानिकों में सोसले गरलापुरी शास्त्री का अहम योगदान था, जिन्हें वर्तमान में साबुन शास्त्री के नाम से भी जाना जाता है। ये भी पढ़ें – कहानी भारत के सबसे मशहूर ‘वनस्पति घी’ की, जिसने 90 सालों तक किया था भारतीय कीचन पर राज

दरअसल सोसले शास्त्री ने चंदन की लकड़ी से साबुन बनाने का फॉर्मूला जानने के लिए लंबी यात्रा तय की थी, जिसके बाद वह इंग्लैंड पहुंचे थे और वहां से साबुन बनाने की प्रक्रिया सीख कर आए थे। इसके बाद सोसले शास्त्री ने मैसूर के राजा और दीवान से मुलाकात की और साबुन बनाने का फॉर्मूला उनके साथ साझा किया था, जिसके बाद बेंगलुरू में पहला साबुन बनाने का कारखाना स्थापित किया गया था।

भारतीय बाजारों में सैंडल सोप की धूम

कारखाने में सोसले शास्त्री द्वारा लाए गए फॉर्मूला की मदद से चंदन की लकड़ी से तेल अलग करके खुशबूदार साबुन बनाने का काम शुरू किया गया था, जिसके बाद साल 1916 तक कारखाने में बनने वाला साबुन बाजार में पहुंचने लगा था। भारतीय बाजार में अचानक से खुशबूदार साबुन के आने से लोगों के बीच हलचल मच गई थी, जिसके बाद मैसूर सोप की बिक्री में काफी तेजी आ गई थी।

देखते ही देखते यह साबुन बेंगलुरू समेत कर्नाटक और पूरे भारत में मशहूर हो गया था, जिसकी लोकप्रियता इसलिए भी बढ़ गई थी क्योंकि मैसूर सोप का ताल्लुक शाही घराने से था। ऐसे में मैसूर सोप की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए साल 1944 में शिवमोगा में साबुन बनाने के लिए एक अन्य कारखाना स्थापित किया गया था, जहां चंदन के तेल से इत्र बनाने का काम भी किया जाता था। ये भी पढ़ें – ये थे भारत के सबसे अमीर व्यक्ति, जिनकी कुल संपत्ति अंबानी-अडानी से भी कई गुना ज्यादा हुआ करती थी

सैंडल सोप के लोकप्रिय होने का एक कारण यह भी था कि इस साबुन का आकार गोल होने के बजाय अंडाकार हुआ करता था, जिसकी वजह से उसके हाथ में पकड़ने और इस्तेमाल करने में आसानी होती थी। इसके अलावा सैंडल सोप के बीचों बीच शराबा (हाथी के सिर और शेर के शरीर वाला जीव) का चित्र बनाया गया था, जो राज्य की समृद्धि का प्रतीक माना जाता था। सैंडल सोप के डिब्बे पर श्रीगंधा तवरिनिंडा का एक संदेश भी मुद्रित किया गया था, जिसका हिंदी में अर्थ था- चंदन के मातृ गृह से।

इन सभी कारणों की वजह से सैंडल सोप देश भर में लोकप्रिय हो गया था, जिसे आम लोगों के साथ साथ शाही परिवार के सदस्य भी इस्तेमाल किया करते थे। सैंडल सोप का प्रचार करने के लिए देशभर में साबुन के पोस्टर और साइनबोर्ड लगाए गए थे, जबकि कराची में सैंडल सोप की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए ऊंटों का जुलूस भी निकाला गया था।

Mysore Sandal Soap
TheHindu

कंपनी ने खरीदा मैसूर सैंडल सोप का कारखाना | Story of Mysore Sandal Soap

इसके बाद 1980 के दशक में कर्नाटक साबुन एंड डिटर्जेंट लिमिटेड नामक कंपनी ने मैसूर और शिवमोगा में स्थित सैंडल सोप के कारखानों को अपने अंतर्गत ले लिया था, जिसके बाद इस खुशबूदार साबुन का व्यापार तेजी से रफ्तार पकड़ने लगा था। हालांकि 1990 के दशक में भारत में अन्य सोप कंपनियों ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे, लेकिन सैंडल सोप ने अपनी खुशबू के दम पर ग्राहकों के बीच अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाबी हासिल की थी। ये भी पढ़ें – कभी मामूली किराने की दुकान से की थी शुरुआत, आज है सालाना 100 करोड़ का टर्नओवर

साल 2003 तक कंपनी ने अपने ऊपर मौजूद सारे कर्ज का निपटारा करते हुए सैंडल सोप का निर्माण जारी रखा था, इस दौरान कंपनी ने साबुन की क्वालिटी या उसकी खुशबू के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की थी। यही वजह है कि मैसूर सैंडल सोप दुनिया का एकमात्र ऐसा साबुन है, जिसे बनाने के लिए शुद्ध चंदन के तेल का इस्तेमाल किया जाता है।

इस साबुन को बनाने के लिए चंदन के तेल के अलावा पैचौली, वीटिवर, नारंगी, जीरियम और पाम गुलाब जैसे अन्य प्राकृतिक तेलों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे सैंडल सोप की खुशबू लंबे समय तक बरकरार रहती है। भारत में अप्रवासी और ग्रामीण लोगों के बीच सैंडल सोप काफी ज्यादा लोकप्रिय है, क्योंकि इस साबुन की खुशबू बिल्कुल प्राकृतिक होती है।

ग्रो मोर सैंडलवुड कार्यक्रम

सैंडल सोप की लोकप्रियता की वजह से ही कर्नाटक के फिल्म उद्योग को सैंडलवुड के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस राज्य में चंदन की खेती के साथ साथ उससे तैयार होने वाले साबुन और अन्य उत्पादनों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जाता है। इतना ही नहीं राज्य में किसानों को चंदन की खेती करने के लिए ग्रो मोर सैंडलवुड नामक कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है।

इस कार्यक्रम के तहत राज्य के किसानों को सस्ते दामों में चंदन के पौधे मुहैया करवाने की मुहिम शुरू की गई है, जिसके साथ उन्हें चंदन की खरीददारी की भी गारंटी दी गई है। ऐसा करने से कर्नाटक के किसान चंदन की खेती करने में दिलचस्पी दिखाएंगे और राज्य में चंदन और उससे बने उत्पादों की खुशबू को बरकरार रखने में आसानी होगी। ये भी पढ़ें – हल्दीराम : एक छोटी-सी नाश्ते की दुकान से भारत का सबसे लोकप्रिय ब्रांड बनने तक का सफर

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Shivani Bhandari
Shivani Bhandari
शिवानी भंडारी एक कंटेंट राइटर है, जो मीडिया और कहानी से जुड़ा लेखन करती हैं। शिवानी ने पत्रकारिता में M.A की डिग्री ली है और फिलहाल AWESOME GYAN के लिए फ्रीलांसर कार्य कर रही हैं।

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