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लोगों को खाना खिला कर दिव्यांग पति और दो बच्चों का पेट पालती हैं, लोग कहते हैं ‘मोपेड वाली राजमा चावल दीदी’

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दोस्तों, हम सभी के जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। कभी छोटे और कभी बड़ी परेशानियाँ हमारे जीवन का हिस्सा बनकर रहती हैं। हाँ लेकिन, कई बार यह परेशानियाँ इंसान को इतना बेचैन कर देती है कि उसकी हिम्मत तोड़ देती हैं या फिर निराशा के अंतिम छोर पर लाकर खड़ा कर देती हैं, जहाँ से फिर उसे कुछ नहीं सोचता कि इस परेशानी से कैसे निपटा जाए, लेकिन इसके बावजूद बहुत से लोग सभी परेशानियों का डटकर मुकाबला करते हैं और अपने जीवन में बदलाव तो लाते हैं साथ ही दूसरों के लिए भी प्रेरणा और हिम्मत का ज़रिया बन जाते हैं।

ऐसे ही प्रेरणादायक कहानी है दिल्ली में रहने वाली 36 वर्षीय आशा गुप्ता (Asha Gupta) की, जिन्होंने जीवन में आने वाली हर चुनौती का हिम्मत से सामना किया और अत्यंत संघर्ष करके अपने परिवार का पालन पोषण किया।

Source: thebetterindia

परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाते हुए बन गईं ‘मोपेड वाली राजमा चावल दीदी’

दरअसल आशा दिल्ली के शास्त्री नगर में रोजाना एक मोपेड से राजमा चावल बेचती हैं। आशा के ऊपर एक दिव्यांग पति और उनके दो बच्चों की जिम्मेदारी है, उन्हीं का पालन पोषण करने के लिए वे यह काम करती हैं। घर में उनकी मदद करने वाला भी कोई नहीं है अतः में अकेले ही सारा काम संभालती हैं। कुछ महीनों पूर्व उनके आर्थिक हालत बहुत खराब थी और वह दो समय की रोटी भी नहीं जुटा पा रहे थे। फिर उन्होंने फूड स्टॉल लगाकर छोटा-सा व्यवसाय शुरू किया जिससे अब उनका परिवार का ख़र्च चलता है और वह लोगों के बीच ‘मोपेड वाली राजमा चावल दीदी’ नाम से प्रसिद्ध हो गई हैं।

लॉकडाउन के चलते काम बंद हो गया था

कुछ वर्षों पूर्व आशा के पति ने एक एक्सीडेंट में दोनों पैर गंवा दिए थे, तब से ना सिर्फ़ उनके दिव्यांग पति की बल्कि घर की और दोनों बच्चों की जिम्मेदारी भी आशा के ऊपर आ गई थी। आशा के पति दिव्यांग होने के कारण अपने कार्यों के लिए उन पर ही निर्भर थे और परिवार को भी उन्हें ही संभालना था। फिर घर-घर चलाने के लिए आशा एक स्थानीय थोक विक्रेता से अलग-अलग तरह की चीज़ें ख़रीदकर साप्ताहिक बाज़ार में बेचा करती थीं, जिससे जैसे तैसे कुछ कमाई हो जाती थी और घर ख़र्च निकल जाता था, परंतु कोरोना महामारी में लॉकडाउन लगने के बाद उनका यह काम भी बंद हो गया।

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पति की मोपेड से शुरू किया फ़ूड बिजनेस

इस प्रकार से काम बंद होने की वज़ह से उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं था और 5-6 महीने उन्होंने ऐसे ही गुजारे। आशा के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह कोई बड़ा व्यवसाय शुरू कर सकें और ना ही उनके पास इतना समय था क्योंकि उन्हें घर की जिम्मेदारी भी देखनी होती है तो अपने दिव्यांग पति को संभालते हुए वे बड़ा व्यवसाय या जॉब नहीं कर सकती थीं। फिर उन्होंने अपने घर के पास ही अपने पति की मोपेड का उपयोग करके एक फ़ूड स्टॉल लगाने का निश्चय किया।

फिर आशा ने दिनांक 2 सितंबर से, केवल 2, 500 रुपए का निवेश करके मोपेड से ही अपनी फ़ूड स्टॉल शुरू की। जिसमें वे शुरुआत में राजमा-चावल, कढ़ी-पकौड़ा, मटर-पनीर और चावल बेचा करती थीं। उन्होंने भरत नगर में यह स्टॉल लगाई, लेकिन ज़्यादा ग्राहक नहीं आ रहे थे, तो फिर शास्त्री नगर में अपना स्टॉल लगाने का फ़ैसला किया।

Source: thebetterindia

प्रसिद्ध YouTuber गोल्डी सिंह ने की मदद

दिल्ली के प्रसिद्ध YouTuber गोल्डी सिंह ने अपने एक मित्र के साथ आशा की मदद करने का निश्चय किया। गोल्डी सिंह बताते हैं कि जब उन्होंने आशा को इस फूड स्टॉल्स पर देखा तो उन्हें लगा कि वे इससे भी बेहतर काम कर सकती हैं। फिर उन्होंने आशा की मोपेड को एक फ़ूड स्टॉल में बदलने का सोंचा और 30 हज़ार रुपये का इन्वेस्टमेंट करके आशा की साधारण मोपेड को एक मिनी स्टॉल में परिवर्तित कर दिया। इतना ही नहीं, आशा को ‘मोपेड वाली राजमा चावल दीदी’ का नाम भी गोल्डी सिंह ने ही दिया।

ग्राहक बढ़े तो मेन्यू भी बदला

गोल्डी सिंह की मदद से अब आशा काफ़ी प्रसिद्ध हो गई हैं। वे 20 रुपए में स्मॉल प्लेट और 30 में मीडियम प्लेट देती हैं। लॉर्ज प्लेट के लिए वे 50 रुपए चार्ज करती हैं। जब उन्होंने इस बिजनेस की शुरुआत की थी तब उनके मेन्यू में रोटी को शामिल नहीं किया था, लेकिन बाद में जब ग्राहकों ने मांग की तो उन्होंने अपने मैन्यू में रोटी भी शामिल कर ली। अब वे 30 रुपये में सूखी सब्ज़ी के साथ चार रोटियाँ सर्व किया करती हैं और रायते के लिए अलग से 10 रुपये देने होते हैं।

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आशा न केवल अपने फूड स्टॉल चलाती हैं बल्कि घर की भी सारी ज़िम्मेदारी पूरी करती हैं। वे सुबह 5 बजे उठकर काम पर लग जाती हैं। फिर रोजाना सुबह 11 से शाम 4 बजे तक अपने फ़ूड स्टॉल पर काम करती हैं। हालांकि अभी उनकी बहुत ज़्यादा कमाई नहीं हो पाती है, जिससे की उनके सारी ज़रूरतें पूरी हो सकें, लेकिन आशा ने अपने नाम को सार्थक करते हुए आशा नहीं छोड़ी है और वे अपने इस काम से संतुष्ट हैं, उनका कहना है कि ‘मैंने शुरुआत कर दी है और मुझे विश्वास है कि मैं सफ़ल होंगी।’। आशा की हिम्मत और उनके इस जज्बे को हम सलाम करते हैं।

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News Desk
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तमाम नकारात्मकताओं से दूर, हम भारत की सकारात्मक तस्वीर दिखाते हैं।

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