Homeप्रेरणाआत्मनिर्भर किन्नर- लॉकडाउन में काम बंद हुआ तो सिर पर चढ़ा कर्ज,...

आत्मनिर्भर किन्नर- लॉकडाउन में काम बंद हुआ तो सिर पर चढ़ा कर्ज, अब नमकीन बेचकर कमाती हैं प्रतिमाह 45 हजार रुपए

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

हमारे समाज में किन्नरों को एक अलग ही दृष्टि से देखा जाता है। कई स्थानों पर तो उनके साथ बहुत भेदभाव किया जाता है। हालांकि अब परिस्थितियाँ बदली है और लोग समझने लगे हैं कि किन्नरों को भी अपने मुताबिक जीवन जीने का अधिकार है और वे भी समाज में उतने ही सम्मान के हकदार हैं जितने की हम, इसलिए अब किन्नर भी इसी समाज में रहकर, बेझिझक आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल पड़े हैं।

सूरत की निवासी राजवी (Rajvi Kinnar) भी एक किन्नर हैं, जो गत 3 माह से नमकीन की दुकान चलाया करती हैं। पहले वे पेट्स शॉप चलाती थीं, लेकिन लॉकडाउन में यह दुकान बंद करनी पड़ी थी। राजवी ने इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई की है और वे पढ़ने के साथ ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम भी किया करती थीं।

राजवी जान (Rajvi Kinnar) की कहानी

राजवी जान (Rajvi Kinnar) ने भी एक किन्नर होने की वज़ह से बहुत ही मुश्किलों को झेला था, पर उनके परिवार ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा और हमेशा जीवन में कुछ करने को प्रोत्साहित किया। शायद इसी वज़ह से राजवी भी अपनी एक पहचान बना पाईं। वे अपनी एक नमकीन की दुकान चलाती हैं, जिससे उन्हें हर रोज़ 1500 से 2000 हज़ार रुपए तक की कमाई हो जाती है।

बेटे की तरह पली बढ़ी

​​​​​​राजवी अपने बारे में बताती हुई कहती हैं कि ‘सूरत के एक ठाकुर परिवार में मेरा जन्म हुआ था और माता-पिता ने मेरा नाम चितेयु ठाकोर रखा। मैं किन्नर के रूप में ही जन्मी थी, परन्तु मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती हैं और तब से आज तक भी मेरा सहारा बनी हैं। वैसे तो मुझ जैसे बच्चों के पैदा होने पर लोग किन्नर समुदाय को सौंप दिया करते हैं, पर मेरी माँ ने ऐसा बिल्कुल नहीं किया। उन्होंने मेरा पालन पोषण किया।’ फिर वे बताती हैं, ‘मुझे बचपन से ही एक बेटे की तरह पाला गया था। मैं लड़कों के जैसे ही कपड़े भी पहनती थी। दूसरे माता-पिता भी चाहें तो वे भी मुझ जैसे बच्चों का अच्छी प्रकार से पालन पोषण कर सकते हैं, ताकि वह भी आत्मनिर्भर बनकर सामान्य जीवन व्यतीत कर पाएँ।’

पहले चलाती थीं पेट्स शॉप और बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया

5 वर्ष पूर्व राजवी (Rajvi Kinnar) ने एक पेट्स शॉप खोली थी, जिसमें उनकी अच्छी कमाई हो जाती थी, परन्तु कोरोना महामारी की वज़ह से जब लॉकडाउन लगा तो उनका बिजनेस बर्बाद हो गया। उनके पेट्स को खाने-पीने की चीजों की भी परेशानी आने लगी थी, फिर उन्होंने यह शॉप बंद कर दी। उनकी परिस्थितियाँ काफ़ी बिगड़ गई थी और उन्हें बहुत कर्ज़ भी लेना पड़ गया था। राजवी कहती हैं कि ‘उस कठिन समय में मेरे मन में बहुत बार मर जाने का विचार भी आया था, पर फिर मैंने हिम्मत की और पिछले वर्ष अक्टूबर माह में एक नमकीन की दुकान खोली।’ अब वे प्रतिदिन करीब 1500 रुपए का व्यापार कर लेती हैं। ​

राजवी जब 18 वर्ष की उम्र की थीं, तभी से बच्चों को इंग्लिश की ट्यूशन पढ़ाना स्टार्ट कर दिया था। उन्होंने लगभग 11 वर्षों तक ट्यूशन पढ़ाने का काम किया था। राजवी कहती हैं कि ‘मेरे पास बहुत बच्चे पढ़ने आते थे। उन्होंने या उनके पेरेंट्स ने कभी भी मेरे साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया था।’

12 वर्ष की आयु से ही जुड़ गयीं किन्नर मंडल से

वे बताती हैं, ‘किन्नर समाज के लोग गुजरात में बहुत ज़्यादा संख्या में रहा करते हैं, इसलिए मैं अपने घर में रहती थी पर फिर भी 12 वर्ष की आयु में ही सूरत के किन्नर मंडल से जुड़ गई थी। इस मंडल में भी मुझे किन्नर साथियों ने बहुत प्यार दिया। वर्तमान में गुजरात के लगभग 95 % किन्नर मुझे जानते हैं और उन्होंने मेरा सपोर्ट भी किया है।’

जब 32 वर्ष की हुईं, तो छोड़ी पुरुषों की पोशाक

राजवी का पालन पोषण एक लड़के की तरह ही किया गया था परंतु उनकी शारीरिक संरचना और विचार कुछ भिन्न थे। फिर उन्होंने 32 वर्ष की आयु में पुरुषों के जैसे कपड़े पहनना छोड़ दिया और एक किन्नर के रूप में जीवन जीना शुरु कर दिया। वे बताती हैं कि बाद में उन्होंने अपना नाम भी ‘चितेयू ठाकोर’ से बदलकर ‘राजवी’ कर लिया।

दुकान खोलकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया क़दम

राजवी ने बताया कि अभी भी हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मेरे किन्नर होने की वज़ह से दुकान में आने से हिचकते हैं, परंतु मुझे ऐसी आशा है कि जैसे-जैसे समय बदलेगा, लोगों की सोच भी बदलेगी। तब लोग किन्नरों के साथ भेदभाव करना बंद कर देंगे और मेरे ग्राहक भी बढ़ जाएंगे। वह आशा करती हैं कि एक दिन उनकी दुकान का नाम रोशन होगा।

राजवी (Rajvi Kinnar) यह सब सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं कहती हैं बल्कि, वे ऐसा इसलिए कहती है ताकि उनकी जीत से सारे किन्नर समुदाय की जीत हो और भविष्य में किन्नरों के साथ होने वाला भेदभाव पूरी तरह से समाप्त हो जाए।

यह भी पढ़ें
News Desk
News Desk
तमाम नकारात्मकताओं से दूर, हम भारत की सकारात्मक तस्वीर दिखाते हैं।

Most Popular