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दिव्यांग होने के कारण लोगों के खूब ताने सहे, फिर कड़ी मेहनत की और अफसर बनकर कायम की मिसाल

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हमारा देश और समाज भले ही आज प्रगति की नई राहों पर चल पड़ा है, पर कहीं न कहीं लोगों की सोच आज भी पुरानी और दकियानूसी है। जब बात दिव्यांग लोगों की होती है तो आज भी उन्हें समाज में कमजोर समझा जाता है और उन्हें एक अलग नजरिए से देखा जाता है। किसी दिव्यांग व्यक्ति के विषय में लोगों की यही मानसिकता होती है कि यह दिव्यांग होने की वजह से अपने जीवन में कुछ नहीं कर सकता और सारी उम्र दूसरों पर निर्भर रह कर उसे जीना पड़ेगा, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है, दिव्यांग व्यक्ति भी अपनी मेहनत से हमारे देश में कामयाबी का वह ओहदा हासिल कर रहे हैं जो साधारण व्यक्ति को भी नहीं मिल पाता है।

आज हम यूपी के रहने वाले ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने दिव्यांग होने की वजह से लोगों के बहुत ताने सहे, फिर दिव्यांगता को ही अपना जूनून बनाया और सबके लिए मिसाल कायम करते हुए UPPCS-2018 की परीक्षा में कामयाबी प्राप्त की। लखनऊ के आलमनगर थाना क्षेत्र के भपतामऊ के निवासी आदर्श कुमार (Adarsh Kumar) शारीरिक रूप से अक्षम हैं, पर इन्होंने UPPCS-2018 का की परीक्षा पास करके आलोचकों को एक सबक दिया और अपने गांव और परिवार का नाम भी रोशन किया। इतना ही नहीं, आदर्श यूपी के कुछ सलेक्टेड श्रवण बाधित अधिकारियों में से एक ऑफिसर बने हैं।

5 वर्ष की आयु में हो गया था पोलियो

आदर्श कुमार जब 5 वर्ष के थे , तभी पोलियो की बीमारी होने की वजह से दिव्यांग हो गए थे और तभी से उनके एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था। जब वे छठी कक्षा में आये तो उनकी श्रवण शक्ति भी समाप्त हो गई। इन सभी समस्याओं के बावजूद भी आदर्श ने पढ़ना लिखना नहीं छोड़ा और किताबों को अपना परम् मित्र बन लिया।

आदर्श ने बताया कि उनकी इन शारीरिक दिव्यांगताओं की वजह से उन्हें जीवन में बहुत सी परेशानियां आयीं। कई लोग तो उनके विकलांग होने के कारण उन्हें ताने मारा करते थे। जब वे स्कूल जाते तो वहां भी अन्य विद्यार्थी उनका अपमान करते और उन्हें चिढ़ाया करते थे। परन्तु उन्होंने लोगों की इन सब बातों को नजरअंदाज किया और केवल अपनी पढ़ाई पर ही सारा ध्यान लगाया।

भाई-बहनों ने दिया साथ

आदर्श तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। वे पढ़ लिख कर अपने जीवन में कुछ बनना चाहते थे। उनके पिताजी शिवमंगल गवर्नमेंट जॉब से रिटायर्ड हो चुके हैं व उनकी मां रामकुमारी जी एक गृहणी हैं। आदर्श के भाई राहुल कुमार और अमित कुमार ने उनका बहुत साथ दिया और हर प्रकार से उनकी सहायता की। उनकी बहन अनुराधा से भी उन्हें बहुत सहयोग मिला।

बीएड करके अध्यापन कार्य किया

आदर्श ने तमाम मुश्किलों का बाद भी अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और पढ़ाई में बहुत होशियार भी थे, वे हमेशा क्लास में फर्स्ट आते थे। साल 2007 में आदर्श ने मे कॉमर्स से ग्रेजुएशन पूरा किया, फिर वर्ष 2009 में कॉमर्स से ही पोस्टग्रेजुएशन किया। इसके पश्चात उन्होंने वर्ष 2010 में डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय से स्पेशल एजुकेशन से बीएड पूरा किया और वर्ष 2011 में स्पेशल एजुकेशन से ही M.ed किया। फिर उन्होंने बालागंज के एक प्राइवेट स्कूल में 3 वर्षों तक विशेष शिक्षक के तौर पर अध्यापन कार्य भी किया।

फिर 2015 में उनके जीवन में एक नया मोड़ आया, जब उनको प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया गया। आदर्श शुरुआत से ही प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी शुरू कर दी और अपना यह सपना पूरा करने के लिए खूब मेहनत किया करते थे।

बहुत सी नौकरियों में बाधा बनी दिव्यांगता

आदर्श कहते हैं कि कई नौकरियां उन्हें दिव्यांगता की वजह से नहीं मिल पाती थीं। वे बताते हैं कि वर्ष 2009 में मैंने एसएससी (SSC) मैट्रिक लेवल की उत्तीर्ण की, परंतु श्रवण बाधित होने की वजह से मुझे यह नौकरी नहीं मिली। जिसकी वजह से मुझे बहुत दुख हुआ लेकिन मैंने अपनी कोशिश नहीं छोड़ी और अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रयासरत रहा।

इसके बाद उन्होंने यूपीपीसीएस 2016 और 2017 की परीक्षा दी और प्री परीक्षा पास करके मेंस तक पहुंच गए। फिर साल 2017 में उन्होंने UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में भी मेंस एग्जाम दिया, पर श्रवण बाधितों के लिए भाषा में छूट नहीं थी जिसके कारण वे अंग्रेजी विषय में पास नहीं हो पाए। इस तरह की बहुत सी दिक्कत है आदर्श के जीवन में आए लेकिन वह उनसे हारे नहीं। उन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी, फिर पीसीएस 2018 (UPPCS-2018) का की परीक्षा पास कर ली और श्रम प्रवर्तन अधिकारी के पद पर नियुक्त हुए। आपको बता दें कि आदर्श को साल 2014 में बेहतर कर्मचारी के लिए राज्य कर्मचारी विकलांग पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

कुछ अध्यापकों और दोस्तों ने की मदद और प्रोत्साहित किया

आदर्श (Adarsh Kumar) ने अपनी सफलता का श्रेय एक कोचिंग संचालक और केंद्र व राज्य सेवा में प्रशासिनक अफसर रह चुके टीएन कौशल और डॉ. शकुंतला मिश्रा, जो राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और डॉ. मृत्युंजय मिश्रा (Dr. Mrityunjaya Mishra) को दिया। आदर्श ने कहा कि अगर यह अध्यापक मेरा साथ ना देते तो मैं यह मुकाम प्राप्त नहीं कर सकता था। उन्होंने हमेशा मेरा प्रोत्साहन बढ़ाया और मेरी दिव्यांगता के बावजूद मुझे साधारण व्यक्ति की तरह ही समझते हुए कभी अनुभव नहीं करने दिया कि मुझ में कुछ कमी है। मृत्युंजय सर कॉलेज में मुझे एक कोर्स खत्म होने के बाद दूसरा कोर्स करने को प्रेरित करते थे और टीएन कौशल (TN Kaushal) सर तैयारी में मेरा मार्गदर्शन करते थे।

डॉ. शकुंतला मिश्रा ने भी हमेशा मेरा उत्साहवर्धन किया और मेरी सहायता की। आदर्श कहते हैं कि ये शिक्षक मुझे विशेष प्रकार से लिख लिख कर समझाते थे, जिससे मैं सही प्रकार से समझ सकूं। इनके अलावा, कुछ दोस्तों जैसे सतीश गुप्ता और बृजेश गुप्ता ने भी तैयारी में मेरी बहुत सहायता की ताकि मेरा परिणाम अच्छा आ सके।

अब आदर्श (Adarsh Kumar) अन्य दिव्यांग व्यक्तियों की मदद करना चाहते हैं, ताकि उन्हें जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा वह दूसरे दिव्यांग लोगों को ना सहन करनी पड़े। आदर्श का कहना है कि अभी भी उन्होंने कोशिश थोड़ी नहीं है अब वह IAS बनकर सभी दिव्यांग लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनना चाहते हैं।

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News Desk
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