कहते हैं डिग्री को देखकर कभी किसी को जज नहीं करना चाहिए। डिग्री (Degree) कई बार काबिलियत के आगे छोटी साबित हो जाती है। जो काम देश के बड़ी-बड़ी IIT (Indian institute of technology) में पढ़ने वाले नहीं कर पाए। वह इस छोटे से किसान ने करके दिखा दिया है। जो कि महज़ दूसरी कक्षा तक पढ़ा है।
इस किसान के किए काम को देख आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आख़िर कैसे बिना तकनीक के और बिना किसी वैज्ञानिक की मदद के इसने इतना बड़ा काम कर दिया है। आइए जानते हैं अपने देसी दिमाग़ की मदद से आख़िर इस किसान ने क्या बनाया है और क्यों बटोर रहा है ख़ूब चर्चा।
कौन है ये किसान
ये किसान हैं मयूरभंज (Mayour Bhanj) ज़िले के सुशील अग्रवाल (Sushil Agarwal) , सुशील ने कोई ज़्यादा पढ़ाई नहीं कर रखी। ज़्यादा पढ़े लिखे ना होने के चलते वह गाँव में ही खेती किसानी का काम करके गुज़ारा करते हैं। लेकिन लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान वह इस काम से भी फुर्सत लेकर घर बैठ गए थे। ऐसे में उन्होंने एक इलेक्ट्रिक कार बनाने की सोची। जो कि सौर उर्जा (Solar Energy) से चार्ज होकर सड़कों पर चले।
क्यों बनाई इलेक्ट्रिक कार
सुशील (Sushil) बताते हैं कि वह लगातार देख रहे थे कि तेल की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। साथ ही तेल की गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण की वज़ह से पर्यावरण भी खराब हो रहा है। ऐसे में क्यों ना इसका कोई उपाय निकाला जाए। उपाय के तौर पर उन्होंने सोलर पैनल से चार्ज होकर चलने वाली छोटी-सी कार बनाने का निर्णय किया और पूरा लॉकडाउन इस पर काम किया।
ऐसे चलती है कार
सुशील ने इस कार को बनाने के लिए 850 Watt की मोटर खरीदी और इस मोटर को बिजली सप्लाई के लिए 100Ah/54 volts की बैटरी का जुगाड़ किया। साथ ही इस बैटरी को चार्ज करने के लिए कार की छत पर सोलर पैनल (solar panel) लगाए। जिससे ये बैटरी लगातार चार्ज भी होती रहे। सुशील के काम में यूट्यूब (YouTube) , दो मैकेनिक और इनके दोस्तों ने इनका भरपूर साथ दिया। आज यदि इसकी बैटरी को फुल चार्ज कर दिया जाए तो इससे लगातार 300 किलोमीटर की यात्रा की जा सकती है। साथ ही इसमें बेहतरीन सीटिंग (Sitting) के साथ लाइट (Light) की सुविधा भी है। ऐसे में आप इस काम को कम नहीं कह सकते।
गांव में हो चुका है और भी आविष्कार
सुशील अकेले नहीं हैं जिन्होंने कुछ अलग हटकर करने की कोशिश की है। उनके ही गाँव के एक और युवक ने ऐसा ही देसी जुगाड़ बनाया है जिसके माध्यम से खेतों में आसानी से पानी दिया जा सकता है। उस लड़के का नाम माहुर टिपिरिया (Mahur Tipiriya) है। ये भी मयूरभंज जिले का ही रहने वाले है। इसने गाँव में ही पड़े खराब बांस-बल्ली से एक देसी ट्यूबवेल बनाया है। जो कि खेतों में आसानी से सिंचाई का काम कर सकता है।
कैसा है ट्यूबवेल
माहुर टिपिरिया ने देखा कि गाँव में बहुत से बांस और बोतल खराब हो जाने के बाद फैंक दी जाती है। जो कि गाँव में ही गंदगी बढ़ाने का काम करती हैं। इस तरह से उन्हें विचार आया कि क्यों ना इन सभी को जोड़कर पानी निकालने का जुगाड़ बना दिया जाए। उनका दावा है कि आज इस जुगाड़ पर भरोसा किया जा सकता है और दूसरे ट्यूबवेल की तरह पानी भी दिया जा सकता है।
सलाम है इन युवाओं को
भारत में कभी भी प्रतिभाओं की कमी नहीं रही। कुछ लोग अपनी प्रतिभा को शिक्षण संस्थानों में जाकर साबित करते हैं। कुछ लोग इसे घर बैठकर भी साबित करके दिखा देते हैं। ये दोनों युवा भी इसी तरह के हैं। भले ही ये मैट्रिक (Metric) पास भी नहीं हैं, पर आज इनके काम से लगता है कि अगर ये देश के शिक्षण संस्थानों में पहुँचे होते तो आज पता नहीं क्या बना चुके होते। ‘Awesome Gyan‘ इन दोनों युवाओं को सलाम करता है।