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इंजीनियर की नौकरी छोड़ जैविक तरीके से कर रहे जंबो अमरूद की खेती, ₹500 प्रति किलो तक बिकते हैं ये अमरुद

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आए दिन कृषि के क्षेत्र में युवाओं का रुझान बढ़ता जा रहा है। हमें रोज़ ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिलते हैं जहाँ युवा अच्छी खासी नौकरी छोड़ कृषि कार्य में लग जाते हैं। इसमें एक और नाम जुड़ गया है इंजीनियर से किसान बने ‘नीरज ढांडा’ का जो 2-3 दिन तक ताजी रहने वाली अमरूद की इस प्रकार से खेती कर रहे हैं कि यह 15 दिन तक ताजे रहते हैं और इसे वह ₹550 प्रति किलो के हिसाब से ऑनलाइन बेचकर काफ़ी मुनाफा कमा रहे हैं।

हरियाणा के रोहतक के ‘नीरज ढांडा‘ (Neeraj Dhanda) का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था तो विरासत के रूप में पूर्वजों से उन्हें खेती-बाड़ी मिल गई। नीरज पढ़ाई में भी काफ़ी अच्छे थे और प्रारंभिक पढ़ाई के बाद कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई के साथ-साथ वह तरह-तरह के प्रयोग भी करते रहते थें। इसी क्रम में जब वह सातवीं क्लास में थें तब शीशी पर बैटरी लगाकर टॉर्च भी बनाए थें। वह बचपन से ही काफ़ी दृढ़ संकल्पित रहे हैं और एक बार जो ठान लेते थे उसे करके ही रहते थें।

Neeraj Dhanda guava farming

पढ़ाई के दौरान जब वह घर आते थे तो परिवार वालों के साथ फ़सल को बेचने मंडी जाते थें और वहाँ बिचौलियों द्वारा अपने बड़ों का शोषण देखते थें। यह बात जब वह परिवार वालों को बताते थे तो वह बोलते थें कि इन्हीं बिचौलियों के वज़ह से तो हमारी फसलें बिकती हैं। यह सब बातें उन्हें काफ़ी निराश कर देती थी।

पढ़ाई पूरी होने के बाद वह नौकरी करने लगे परंतु उनके अंदर कहीं ना कहीं की खेती करने की भावना घर कर चुकी थी। इसके लिए वह पैसे बचाने लगे और जब कुछ पैसे इकट्ठे हो गए तो जींद से 7 किलोमीटर आगे संगतपुरा में 7 एकड़ ज़मीन में चेरी की खेती की। परंतु उनका यह प्रयास असफल हो गया तो घर वालों ने उन्हें सलाह दी कि पुनः नौकरी कर लें।

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परंतु नीरज अब अमरूद की खेती करने का मन बना चुके थे और इलाहाबाद से अमरूद के पौधों को लाकर अपने खेतों में लगाएँ। यह फ़सल काफ़ी अच्छी हुई परंतु जब वह इन्हें लेकर मंडी गये तो सारे बिचौलिए एक हो गए और इनके फल ₹7 प्रति किलो के हिसाब से बिकें। इसके जवाब में नीरज ने गाँव और शहर से सटे 6 काउंटर लगाए और यहाँ अमरुद दोगुने दाम पर बिक गए। काउंटरों के जरिए थोक विक्रेता भी सीधे उनके खेतों तक पहुँचने लगे थें।

Neeraj Dhanda guava farming

अब इस फ़सल में उन्हें बस इस बात की चिंता थी कि यहाँ बहुत जल्दी खराब हो जाती थी और इसके लिए उन्होंने एक प्रयोग करने का सोंचा जिसके लिए वह छत्तीसगढ़ गए और वहाँ नर्सरी से थाईलैंड के ‘जम्म्बो ग्वावा’ के पौधे खरीदें और अपने खेत में लगा दिया। इसमें उन्होंने बहुत मेहनत किया और पोषण के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल किया जिसका परिणाम यह हुआ कि उनके खेत के अमरुद वज़न में एक से डेढ़ किलो तक के और स्वाद और मीठापन में इलाहाबादी अमरूद के हुए। इनका काफ़ी डिमांड रहने लगा।

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आगे वह अपनी कंपनी बनाकर हाईवे बेल्ट पर इन अमरूदों को ऑनलाइन बेचने लगें, जिसकी क़ीमत ₹550 प्रति किलो रखी थी। यह अमरुद 10 से 15 दिनों तक ताजी रहती थी जो ग्राहकों को काफ़ी आकर्षित करने लगी थी। ग्राहक इस पर अपने ऑर्डर को ट्रैक भी कर सकते हैं और इनके यहाँ आर्डर के 36 घंटे के बाद डिलीवरी की भी व्यवस्था है।

आज नीरज के अमरूद की खेती को देखने के लिए दूर-दूर से भी लोग आ रहे हैं और इनमें से कुछ लोग यह तरीक़ा भी सीखना चाहते हैं। लोगों को तरीक़ा सिखाने के लिए नीरज मूल्य सारणी बनाए हैं और निर्धारित मूल्य पर प्रशिक्षण दे रहे हैं। भविष्य में नीरज ग्रीन टी, ऑर्गेनिक गुड्स और शक्कर को भी ऑनलाइन बेचने के प्रयास में है।

Neeraj Dhanda guava farming

नीरज के बड़े बुजुर्गों इन्हें ‘सफेद हाथी’ कहते हैं जो इन्हें ख़ुशी से भर देता है। खुश होकर वह कहते हैं कि उनकी आने वाली पीढ़ी अब नौकरी के बजाय खेती में अपना भविष्य देखेगी। नीरज का यह प्रयास निश्चय ही देश में एक बड़ा बदलाव लाने वाला है और हमारी नई पीढ़ी इनसे प्रेरणा ले रही है। इन सब के लिए हम नीरज को बहुत सारी बधाइयाँ देते हैं।

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