Bamboo Rice: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां गेहूं, धान और मक्का समेत कई प्रकार की दालों, सब्जियों और फलों की खेती की जाती है। ऐसे में गेहूं से हमें आटा प्राप्त होता है, जिससे रोटियां या फुल्के बनाए जाते हैं। ठीक इसी प्रकार धान से चावल मिलता है, जिसका सेवन पूरे भारत में किया जाता है।
चावल के साथ आमतौर दाल, सब्जी, सांबर, राजमा और छोले इत्यादि खाए जाते हैं, जो अपने आप में एक संपूर्ण आहार है। ऐसे में भारत में पूरे साल चावल की बहुत ज्यादा मांग रहती है, लेकिन क्या आपने कभी जंगल में उगने वाला हरे रंग का चावल खाया है, जो अपने आप में बहुत ही खास और पोषक तत्वों से भरपूर है।
हरे रंग का अनोखा चावल (Bamboo Rice)
भारतीय बाजारों में चावल की 6 हजार से ज्यादा अलग अलग वैराइटी यानि किस्में मौजूद हैं, जिनमें कच्चा चावल, पक्का चावल, बासमती और टुकड़ों वाला चावल का सेवन सबसे ज्यादा किया जाता है। इन्हीं 6 हजार चावल की किस्मों में से एक है बैम्बू राइस (Bamboo Rice), जिसे आमतौर पर हरा चावल या मूलयारी (Mulayari) के नाम से जाना जाता है। ये भी पढ़ें – बिना पकाए भी खा सकते हैं आप ये चावल, स्वाद में भी हैं लाजबाब
यह चावल किसी खेत में नहीं उगता है और न ही इसे धान का बालियों को तोड़कर प्राप्त किया जाता है, बल्कि चावल की यह खास किस्म जंगलों में उगती है। बैम्बू राइस को उगाने के लिए किसानों को ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती है, बल्कि इस चावल खत्म हो रहे बांस के पेड़ या झाड़ से प्राप्त किया जाता है।
दरअसल जब बांस का पेड़ या झाड़ अपने जीवन चक्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच जाता है, तो उस दौरान उसमें छोटे छोटे फूल आने लगते हैं। यह फूल बांस के पेड़ के मरने की निशानी होते हैं, जिनके झड़ने पर हरे रंग का बैम्बू राइस (Bamboo Rice) मिलता है।
आदिवासी समुदाय इकट्ठा करते हैं Bamboo Rice
बैम्बू राइस (Bamboo Rice) को भारत के कुछ गिने चुने इलाकों से ही प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें केरल में स्थित वायानाड सेंचुरी का नाम सबसे पहले आता है। इस जंगल में बांस के पेड़ और झाड़ बड़ी मात्रा में मौजूद हैं, जिनके खत्म होने की स्थिति में बांस के फूल से बैम्बू राइस प्राप्त किया जाता है।
वायानाड सेंचुरी से बैम्बू राइस (Bamboo Rice) इकट्ठा करने के लिए आदिवासी समुदाय के लोगों को सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है, जो उनके आहार का मुख्य हिस्सा है। इसके साथ वह लोग स्थानीय बाजारों में बैम्बू राइस को बेचकर थोड़ी बहुत आमदनी भी कमा लेते हैं, जिससे वह अपने परिवार और बच्चों का भरण पोषण करते हैं।
जंगल से बैम्बू राइस को इकट्ठा करने का काम आदिवासी महिलाएं और बच्चे करते हैं, जिसके लिए उन्हें सबसे पहले मरने वाले बांस के पेड़ों और झाड़ियों की तलाश करनी पड़ती है। इसके बाद वह लोग बांस के पेड़ के नीच मौजूद जमीनी हिस्से को अच्छी तरह से साफ कर लेते हैं और फिर उस जगह की मिट्टी से लिपाई कर देते हैं, जिसके बाद उस मिट्टी को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।
ऐसे में जब बांस के फूल पककर झड़ने लगते हैं, तो वह जमीन में गंदगी की जगह मिट्टी से लिपाई किए गए साफ स्थान पर गिरने लगते हैं। इसके बाद आदिवासी महिलाएं और बच्चे उन फूलों को इकट्ठा कर लेते हैं, जिसके बाद उनके अंदर से दुर्लभ किस्म का हरा चावल निकाल कर स्टोर कर लिया जाता है।
100 साल में प्राप्त होता है बैम्बू राइस
आमतौर पर चावल की सभी किस्में जल्दी तैयार हो जाती है, जिन्हें बाजार तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगता है। लेकिन बैम्बू राइस को प्राप्त करने में कम से कम 100 साल का लंबा वक्त लगता है, इस दौरान बांस के पेड़ से सिर्फ 1 बार हरा चावल प्राप्त किया जा सकता है।
दरअसल बांस के पेड़ या झाड़ियों की औसत उम्र 50 से 60 साल तक होती है, जिसके बाद पेड़ बूढ़ा होने लगता है और उसमें फूल निकलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। बांस के पेड़ पर फूल लगने से लेकर उनके पकने और फिर झड़कर नीचे गिरने तक ही प्रक्रिया में 100 साल का वक्त लग जाता है, जिसके बाद इस दुर्लभ चावल को इकट्ठा किया जाता है।
पोषक तत्वों से भरपूर होता है हरा चावल (Bamboo rice benefits)
बैम्बू राइस चावल (Bamboo Rice) की अन्य किस्मों के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है, जिसका सेवन करने से स्वास्थ्य को काफी फायदा मिलता है। इस चावल का स्वाद काफी हद तक गेहूं की तरह होता है, जिसमें ग्लाइकेमिक इंडेक्स की मात्रा काफी कम होती है। यही वजह है कि बैम्बू राइस का सेवन मधुमेह के रोगियों के लिए फायदेमंद साबित होता है। ये भी पढ़ें – प्लास्टिक की जगह बांस से बनी बोतल और टिफिन का करें इस्तेमाल, सेहत के साथ साथ पर्यावरण को भी होगा फायदा
इतना ही नहीं इस चावल में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है, जबकि फैट न के बराबर होता है। ऐसे में बैम्बू राइस का सेवन करने से मोटापा बढ़ने की समस्या नहीं होती है, जबकि प्रोटीन शरीर को एनर्जी देने का काम करता है। बैम्बू राइस का सेवन करने से नवजात बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार होता है।
इस चावल का सेवन करने से लंबे वक्त तक भूख नहीं लगती है, जबकि यह शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा देता है। बैम्बू राइस को लंबे समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है, जो पकने पर बहुत ही खिला खिला हरे रंग का खुशबूदार चावल दिखाई देता है।
चूहे चांव से खाते हैं बांस का चावल
बांस के फूलों से प्राप्त होने वाला हरा चावल सिर्फ इंसानों के लिए ही पोषक तत्वों से भरपूर नहीं होता है, बल्कि इसका स्वाद चूहों को भी बहुत ज्यादा पसंद होता है। यही वजह है कि जब जंगल में बांस के चावल उगने लगते हैं, तो वहां चूहों की आवाजाही तेजी से बढ़ने लगती है। इस चावल में प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जिसका सेवन करना चूहों को बेहद पसंद होता है।
यही वजह है कि जब ओडिशा के कटक में स्थित Chandaka Dampara Wildlife Sanctuary में बांस के चावल उगने लगते हैं, तो उन्हें इकट्ठा करने लिए आदिवासी लोगों को अनुमित दे दी जाती है। क्योंकि अगर बांस के चावल समय पर इकट्ठा न किए गए, तो चूहों की फौज सारे चावल खा जाती है और फिर जंगल में उनकी आबादी तेजी से बढ़ने लगती है।
यह चूहे बांस के चावल के साथ साथ सेंचुरी में मौजूद अन्य पेड़ पौधों को भी नुकसान पहुंचाने लगते हैं, जिसकी वजह से बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। इसके अलावा चूहों बहुत जल्दी प्रजनन करते हैं, जिसकी वजह से उनकी आबादी तेजी से बढ़ती है और उन्हें कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि चूहों को बांस के चावल (Bamboo Rice) इतने ज्यादा अच्छे लगते हैं कि वह महज कुछ ही दिनों में सारे चावल खा जाते हैं। साल 1959 में ओडिशा में भयानक अकाल पकड़ गया था, क्योंकि वहां के जंगलों में मौजूद बांस के चावलों को इकट्ठा करने में थोड़ी सी देरी हो गई थी और इस दौरान चूहे सारे चावल चट कर गए थे।
फिलहाल यह बांस का चावल (Bamboo Rice) ओडिशा और केरल जैसे राज्यों में ही देखने को मिलता है, जहां आदिवासी समुदाय और स्थानीय लोग इनका सेवन करते हैं। लेकिन भविष्य में बांस के चावल की मांग बढ़ सकती है, क्योंकि अब इस चावल के बारे में लोगों को जानकारी होने लगी है। ये भी पढ़ें – बांस की खेती करके जिंदगी भर कमा सकते हैं मोटा पैसा, वन टाइम इंवेस्टमेंट वाली खेती, सरकार भी करेगी मदद