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Pingali Venkayya: वह भारतीय क्रांतिकारी-किसान, जिनकी वजह से देश को मिला था अपना झंडा

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Pingali Venkayya: भारत के झंडे को देखकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, जबकि हर कोई झंडे के सम्मान में उसे सलाम करता है। लेकिन आज जिस भारतीय झंडे को आप और हम गर्व से देखते हैं, उसे डिजाइन करने में न जाने कितने ही लोगों ने अहम भूमिका निभाई है।

भारत के झंडे के डिजाइन को न सिर्फ कई बार बदला गया था, बल्कि उसके रंग और प्रतीक चिह्न को लेकर भी विभिन्न प्रकार के बदलाव किए गए थे। ऐसे में आज हम आपको भारत के झंडे तैयार में अहम भूमिका निभाने वाले पिंगली वेंकैया के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसान, सैनिक और टीचर होने के साथ-साथ एक क्रांतिकारी भी थे।

Pingali Venkayya 1

कौन हैं पिंगली वेंकैया? | Who is Pingali Venkayya?

पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya) का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के कृष्णा जिले (Krishna) में स्थित पेदाकल्लीपतल्ली गाँव में हुआ था, जिन्होंने एक सरकारी स्कूल से पढ़ाई की थी। पिंगली वेंकैया के पिता पेशे से किसान थे और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से कृषि पर आधारित थी, हालांकि उनके गाँव में टेक्सटाइल और मछली पालन का व्यवसाय भी बड़े पैमाने पर प्रसिद्ध था। इसे भी पढ़ें – भारत के सबसे धनवान व्यक्ति, जिनसे अंग्रेज और बादशाह भी लिया करते थे कर्जा

ऐसे में पिंगली ने अपने पिता और परिवार के साथ मिलकर कपास की खेती करना शुरू कर दिया था, लेकिन देश की सेवा करने के लिए कुछ करना चाहते थे। पिंगली वेंकैया ने अपने स्कूल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में पढ़ा और सुना था, लिहाजा पिंगली ने उन्हें अपने जीवन का आर्दश मान लिया।

19 साल में ज्वाइन की थी मिलिट्री

इसके बाद पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya) महज 19 साल की उम्र में अपना गाँव छोड़कर मुंबई चले गए, जहाँ उन्होंने मिलिट्री सर्विस ज्वाइन कर ली थी। मिलिट्री में शामिल होने के बाद पिंगली को कड़ी ट्रेनिंग से गुजराना पड़ा था, जिसके बाद उन्हें अन्य सैनिकों के शात अफ्रीका भेज दिया गया था। दरअसल उस दौरान अफ्रीका में बोअर युद्ध (किसान युद्ध) चल रहा था, जबकि इसी दौरान पिंगली की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी।

अफ्रीका में युद्ध खत्म होने के बाद पिंगली वेंकैया भारत लौट आए थे, जिसके बाद वह महात्मा गांधी से जुड़ गए और देश को ब्रिटेश शासकों से आजाद करवाने के लिए गुप्त क्रांतिकारी के रूप में काम करने लगे। पिंगली एक क्रांतिकारी थी, लेकिन वह अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए इलुरू गाँव में कपास की खेती भी करते थे।

कपास की खेती में किए थे नए प्रयोग

इस दौरान उन्होंने कपास की खेती में कई तरह के प्रयोग किए, ताकि किसानों को खेती का ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके। इसके लिए पिंगली अमेरिका से कंबोडियन वैराइटी वाले बीज मंगवाए थे, जिन्हें भारतीय बीजों के साथ मिलाकर एक नए तरह का कपास का बीज तैयार किया था।

इसके बाद उन बीजों को खेत में बो कर एक नए तरह की कपास तैयार की थी, जिसके बाद उस कपास को बेचने के लिए साल 1909 में राष्ट्रीय कृषि प्रदर्शनी लगाई गई थी। इस प्रदर्शनी में अंग्रेज अधिकारियों की नजर पिंगली द्वारा उगाए किए गए कपास पर पड़ी, जिसके बाद पिंगली को लंदन से बुलावा आया था।

लंदन की रॉयल एग्रीकल्चर सोसाइटी ने पिंगली को अपनी कमेटी का सदस्य बनाने की इच्छा जाहिर की थी, पिंगली ने कमेटी के सदस्यों से मुलाकात की जिके बाद उन्हें पट्टी (कॉटन) वेंकैया के नाम से जाना जाने लगा था।

प्लेग से बचाई थी लोगों की जान

लंदन से वापस आने के बाद पिंगली (Pingali Venkayya) ने भारतीय रेलवे में गार्ड की नौकरी के लिए आवेदन दिया था और किस्मत से उनकी नौकरी भी लग गई, जिसके बाद वह रेलवे में बतौर गार्ड नौकरी करने लगे थे। लेकिन इसी दौरान मद्रास में प्लेग नामक महामारी तेजी से फैलने लगी थी, जिसकी चपेट में आकर कई लोगों की जान चली गई थी।

ऐसे में प्लेग को विश्व स्तर पर महामारी घोषित कर दिया गया था, जिससे बचने के लिए किसी के पास कोई उपाय नहीं था। पिंगली भी प्लेग का इलाज नहीं जानते थे, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपनी रेलवे की नौकरी छोड़ दी और प्लेग के खिलाफ लड़ने में लोगों की मदद करने लगे। उन्होंने प्लेग पीड़ितों के लिए राहत बचाव का काम किया और दवाई समेत अन्य प्रकार की जरूरी चीजें मुहैया करवाई थी।

कांग्रेस कमेंटी के सदस्य बन गए थे पिंगली

देश के लिए गुप्त क्रांतिकारी के रूप में काम करते हुए पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya) लाहौर चले गए थे, जहाँ उन्होंने एंग्लो वैदिक स्कूल में संस्कृत, उर्दू और जापानी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था। इसके बाद साल 1913 में पिंगली ने नई तकनीकी और नए प्रयोग पर एक स्पीच भी दी थी, जिसके बाद लोग उन्हें जापान वेंकैया के नाम से जानने लगे थे।

इसी दौरान देश की राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में पिंगली की चर्चा होने लगी, जिसके बाद उन्हें कांग्रेस पार्टी में एग्जीक्यूटिव कमेटी का सदस्य बना दिया गया था। इस बीच पिंगली विभिन्न मींटिग में हिस्सा लेते थे, जहाँ उनकी नजर यूनियन जैक (झंडे) पर पड़ी थी। इसे भी पढ़ें – वो भारतीय उद्योगपति जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी को महज 20 मिनट में खरीद लिया

पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya) अपने देश में यूनियन झंडे के फहराए जाने से थोड़ा दुखी होते थे, लिहाजा उन्होंने झंडे के साथ प्रयोग करने का फैसला किया। इसके बात साल 1916 में पिंगली ने अपने घर लौटकर नेशनल फ्लैग ऑफ इंडिया नामक एक किताब लिखी थी, जिसमें उन्होंने 13 अलग-अलग तरह के झंडों की तस्वीर भी बनाई थी।

कांग्रेस पार्टी से जुड़े होने की वजह से पिंगली हर तरह की मीटिंग और सम्मेलन का हिस्सा होता थे, जिसमें वह भारतीय झंडे को लेकर अपना मत सबके सामने रखते थे। इसी बीच उन्होंने आंध्र नेशनल कॉलेज में लेक्चरर के पद पर काम किया था, जहाँ वह छात्रों को राष्ट्रीय झंडे का महत्त्व समझाने से बिल्कुल पीछे नहीं हटते थे।

पिंगली वेंकैया ने बनाया भारतीय झंडे का डिजाइन

इस तरह पिंगली (Pingali Venkayya) अपना काम करते रहे, जिसके बाद साल 1921 में विजयवाड़ा में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। इस दौरान पिंगली वेंकैया की मुलाकात एक बार फिर महात्मा गांधी से हुई थी, जिसके बाद पिंगली ने गांधी जी को अपने द्वारा तैयार किए गए झंडे की तस्वीरें दिखाई थी।

महात्मा गांधी को राष्ट्रीय झंडे का आइडिया काफी अच्छा लगा था, ऐसे में उन्होंने पिंगली से कहा कि वह झंडे का एक ऐसा डिजाइन तैयार करें तो देश के हर व्यक्ति को प्रेरित कर सके। इसके बाद पिंगली ने दिन रात मेहनत करके झंडे का एक नया डिजाइन तैयार किया था, जिसे महात्मा गांधी ने भी अप्रूव कर दिया था।

गांधी जी ने अधिवेशन से वापस लौटने के बाद यंग इंडिया नामक न्यूजपेपर में Our National Flag टाइटल से एक आर्टिकल प्रकाशित किया था, जिसमें पिंगली वेकैंया द्वारा बनाए गए झंडे के डिजाइन का जिक्र किया गया था। इस तरह पिंगली द्वारा बनाए गए झंडे का डिजाइन पूरे देश भर में प्रसिद्ध हो गया था, जिसे झंडा वेकैंया के नाम से जाना जाने लगा था।

डायमंड वेकैंया के नाम से हैं प्रसिद्ध

देश को झंडे का बेहतरीन डिजाइन देने के बाद पिंगली (Pingali Venkayya) समेत दूसरे क्रांतिकारियों ने मिलकर भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसकी बदौलत साल 1947 में भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिल गई थी। देश के आजाद होने के बाद पिंगली आंध्र प्रदेश के नेल्लोर शहर में शिफ्ट हो गए थे, जहाँ उन्होंने रत्न विज्ञान पर शोध कार्य किया था।

पिंगली ने भौगोलिक क्षेत्र में कीमती पत्थरों की पहचान करके उनकी जानकारी आम लोगों तक पहुँचाई थी, जिसकी वजह से उन्हें डायमंड वेकैंया के नाम से जाना जाने लगा था। इतना ही नहीं उन्होंने कीमती पत्थरों की खोज के लिए तत्कालीन सरकार में बतौर सलाहकार का पद भी संभाला था।

तिरंगे में लिपटा हो मेरा शव

पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya) ने रुकमिनम्मा नामक लड़की से शादी की थी, जिनसे उनकी एक बेटी है। पिंगली ने 4 जुलाई 1963 को अंतिम सांस ली थी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत भी चर्चा का विषय बन गई थी। दरअसल पिंगली में अपनी वसीयत में लिखा था कि मेरे शव को तिरंगे में लपेटा जाए और चिता जलाने से पहले झंडे को शरीर से हटाकर पेड़ की शाखा से लटका दिया जाए।

कहा जाता है कि पिंगली (Pingali Venkayya) के जीवन के आखिरी दिन बहुत दुखद और संघर्ष भरे थे, जबकि उस दौरान उन्होंने गरीबी का भी सामना किया था। लेकिन इसके बावजूद भी पिंगली ने किसी के सामने मदद के लिए हाथ नहीं फैलाए और अपने ही डिजाइन किए हुए तिरंगे में लिपट कर देश को अलविदा कह गए। इसे भी पढ़ें – भारत का वह प्रसिद्ध रसायनशास्त्री, जो मामूली धातु को बना देता था सोना

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Shivani Bhandari
Shivani Bhandari
शिवानी भंडारी एक कंटेंट राइटर है, जो मीडिया और कहानी से जुड़ा लेखन करती हैं। शिवानी ने पत्रकारिता में M.A की डिग्री ली है और फिलहाल AWESOME GYAN के लिए फ्रीलांसर कार्य कर रही हैं।

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