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बड़ी उपयोगी है यह दुनिया की सबसे छोटी गाय, इसके दूध से बनती है औषधि, गिनीज़ बुक में बनाया रिकार्ड

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दोस्तों, हमारे देश में गायों का विशेष महत्त्व रहा है, फिर चाहे वह आर्थिक महत्त्व हो या पौराणिक और धार्मिक महत्त्व, हर प्रकार से गायों को लाभकारी माना जाता है। भारत में इनकी कई नस्लें पाई जाती हैं पर आज हम आपको गाय की जिस नस्ल के बारे में बताने जा रहे हैं वह बहुत ख़ास है और उसने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज कराया है।

इस गाय का नाम है ‘मनिकयम’ (Manikyam Cow), जो केरल में पाई जाने वाली वेचूर प्रजाति (Vechur Cattle) की एक गाय है। आपको बता दें कि यह दुनिया की सबसे छोटी गाय है और इसकी उम्र 6 वर्ष है।

एक बकरे से भी छोटी होती है मनिकयम गाय (Manikyam Cow)

मनिकयम गाय (Manikyam Cow) की लंबाई एक बकरे से भी कम होती है। सामान्यतया गायों की लम्बाई 4.7 से 5 फिट तक होती है, लेकिन इस गाय की लंबाई सिर्फ़ 1.75 फीट है और वज़न भी केवल 40 किलो है। 2 सालों में भी इसमें कोई विशेष शारीरिक परिवर्तन नहीं आया है और उसकी लंबाई भी नहीं बढ़ी है। वैसे तो मनिकयम अपनी प्रजाति में भी सबसे छोटी गाय है परन्तु वेचूर प्रजाति की दूसरी गायें भी आम गायों से बहुत छोटी होती हैं। मनिकयम को पालने में बकरी से भी कम खर्च आता है। यह गाय लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है और इसे दूर-दूर से लोग देखने भी आते हैं।

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे छोटे कद की गाय है वेचूर (Vechur Cattle)

वेचुर गायों (Vechur Cow) की शारीरिक बनावट सामान्य गायों से कुछ अलग होती है। इस प्रजाति की कुछ गायों में सींग काफ़ी छोटे-छोटे होते हैं। इनकी लंबाई 124 सेमी और ऊंचाई 85 सेमी होती है तथा इनका वज़न 130 किलोग्राम होता है, इसलिए इन्हीं विशेषताओं के कारण वेचूर गाय को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में सबसे छोटे कद की गाय का रिकॉर्ड दर्ज किया गया है। इस प्रजाति की गायें केरल के कोट्टायम जिले के Viakkom क्षेत्र में विकसित हुई हैं। इनके प्रजनन क्षेत्र केरल के अलप्पुझा / कन्नूर, कोट्टायम और कासरगोड जिले हैं।

वेचूर (Vechur Cattle) गाय की खासियत

इस नस्ल की गायों पर जहाँ रोग बहुत कम असर डालते हैं और इन गायों के दूध में सबसे ज़्यादा औषधीय गुण भी होते हैं। इतनी विशेषताओं के बावजूद इससे पालना मुश्किल नहीं होता है क्योंकि इससे बहुत कम ख़र्च में पाला जा सकता है, जितना कि एक बकरी को पालने के लिए ख़र्च आता है, उतने ही ख़र्च में आप भी वेचुर गाय भी पाल सकते हैं। ये हल्के लाल, काले और सफेद रंगों की मिलावट से आकर्षित लगती हैं। इन गायों का सिर लंबा और संकरा होता है और पूंछ लंबी व कान सामान्य पर खूबसूरत होते हैं। इन गायों के सींग पतले, छोटे और नीचे की ओर मुड़े हुए होते हैं।

वेचुर प्रजाति की गायें (Vechur Cattle) गर्म और आर्द्र दोनों ही प्रकार की जलवायु के लिए अनुकूलता रखती हैं। इस प्रजाति की गायों को दूध और खाद के लिए पाला जाता है। इन गायों की रोग प्रतिरोध क्षमता और अलग-अलग प्रकार के मौसम को सहन करने की क्षमता भी बहुत अच्छी होती है। इतना ही नहीं, इनकी त्वचा से जो द्रव निकलता है उसे कीट दूर रहते हैं। इतने गुणों के बावजूद अब केवल 100 ही शुद्ध नस्लें वेचुर प्रजाति की बची हैं, इसलिए केरल कृषि विश्वविधालय ने इस नस्ल को संरक्षित किया है। हालांकि वेचुर गाय दूध ज़्यादा नहीं देती है पर दूध देने वाली अन्य छोटी नस्लों से ज़्यादा दूध मिल जाता है।

औषधियों में होता है वेचूर गाय (Vechur Cattle) के दूध का उपयोग

वेचुर गायों (Vechur Cattle) के दूध का उपयोग केरल में परंपरागत रूप से औषधियाँ बनाने में किया जाता है, क्योंकि इन गायों के दूध में औषधीय गुण पाए जाते हैं। ये गायें रोज़ाना 2 से 3 लीटर तक दूध प्रदान करती हैं। अन्य प्रजातियों (Cross Breed) नस्लों की अपेक्षा वेचूर प्रजाति की गायें बहुत कम ख़र्च में पाली जा सकती हैं, क्योंकि यह काफ़ी कम चारे में पल जाती हैं। इन गायों के दूध में वसा 4.7-5.8 प्रतिशत होती है, वसा कम होने की वज़ह से इनका दूध सुपाच्य होता है। पहले ब्यांत के समय इन गायों की आयु तीन वर्ष और inter-calving अवधि 14 माह की होती है। ये गायें छोटे कद की और कम खर्चे में पाली जा सकने की वज़ह से इसे आसानी से पाली जाती हैं लेकिन, क्योंकि यह दूध कम देती हैं अतः दूध व्यवसाय के लिए लोग इसे कम ही पालते हैं।

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News Desk
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