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केरल के इस दम्पत्ति ने बनवाया इको फ्रेंडली हाउस, मिट्टी से बने इसी घर में रहते हैं, 17 सालों से बीमार नहीं पड़े

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‘पहला सुख निरोगी काया’ यह कथन तो आप सभी ने सुना ही होगा, पर आजकल के आधुनिक युग में या कहें प्रदूषित युग में, निरोगी काया पाना बहुत मुश्किल है। आए दिन सभी को कोई ना कोई बीमारी तो लगी ही रहती है, कभी छोटी बीमारी और कभी बड़ी बीमारियाँ। कोई ऐसा इंसान आपको नहीं मिलेगा जो कहे की उसे 1 साल से कोई भी बीमारी नहीं हुई।

परंतु आज हम आपको एक ऐसे कपल की अनोखी कहानी बताने वाले हैं, जिनको 17 सालों से बीमार नहीं हुए और उन्हें कभी भी दवाई लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी है और इसका राज़ है उनका Eco Friendly House और उनकी Healthy Lifestyle.

नेचर लवर हैं हरी और उनकी पत्नी आशा

हम जिन दम्पत्ति के बारे में आपको बता रहे हैं उनका नाम है-हरी (Hari) और आशा (Aasha) । हरी कन्नूर के स्थानीय जल प्राधिकरण में काम करते हैं और उनकी पत्नी आशा किसानों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाले एक ग्रुप से जुड़ी हुईं हैं। यह दम्पत्ति प्रकृति (Nature) से बहुत प्यार करते हैं। यह प्रकृति प्रेम हम उनकी लाइफस्टाइल में साफ़ तौर पर देख सकते हैं। जब इनकी शादी हुई थी, तो विवाह समारोह में इन्होंने कई प्रकृति प्रेमियों को आमंत्रित किया था। साथ ही इनकी शादी में फ्रूट्स और केरल की पारंपरिक मिठाई ‘पायसम’ से सारे मेहमानों का स्वागत किया गया था।

आर्किटेक्ट फ्रेंड की मदद से बनवाया मिट्टी का घर (Eco Friendly House)

फिर जब इन्हें अपना घर बनवाना था, तो उन दोनों ने मिलकर फ़ैसला किया कि वे ऐसा घर बनवाएंगे जो ऊर्जा से भरपूर तो होगा ही, साथ ही प्रकृति के समीप भी होना चाहिए। फिर उन्होंने अपना यह भी विचार एक आर्किटेक्ट फ्रेंड को बताया, जिसने उनकी मदद की और फलस्वरूप हरी और आशा का ड्रीम हाउस बन गया। उनका यह घर 960 sq. ft. है, जो कि केरल (Kerala) राज्य के कन्नूर (Kannur) जिले में बनाया गया। इसकी खासियत यह है कि आजकल के ज़माने में भी ये Eco Friendly House मिट्टी से बनाया गया है। उन्हें यह घर बनाने की प्रेरणा आदिवासियों से मिली, जो इसी तरह के मकानों में रहा करते हैं।

जानिए क्या खासियत है इस घर की…

इस घर में दिन के समय सूर्य की किरणों किरणें घर के अंदर आती हैं, पर घर के अंदर की हवा के कारण घर दिन में गर्म नहीं होता और रात होते-होते तापमान बढ़ जाता है रात को 11 बजे तक टेम्प्रेचर ज़्यादा रहता है, पर ठंडी हवा चलने लगती है जिसकी वज़ह से इस घर में पंखे की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। इस मकान की छत कॉनक्रीट और नालीदार टाइल से बनी हुई है, क्योंकि केरल में बारिश ज़्यादा होती है, तो बारिश से बचने के लिए इन्होंने मकान में कंक्रीट का इस्तेमाल किया है।

आपको बता दें कि उनके इस मकान में बिजली का उपयोग बहुत ही कम किया जाता है। जब उन्होंने यह मकान बनवाया था तब प्रकाश की व्यवस्था कुछ इस तरह से की थी कि हर एक लैंप को ऐसे लगाया जिससे ज़्यादा दूरी तक प्रकाश हो जाए। उनका यह मकान प्राकृतिक रोशनी से भरपूर है।

फ्रिज नहीं रखते, पर एक अनोखी तकनीक से रखते हैं भोजन को तरोताजा

इन्होंने अपने घर में फ्रिज नहीं रखा हुआ है, क्योंकि वे अपने उगाए हुए फल सब्जियों को बहुत समय तक तरोताजा ही खाया करते हैं। जब इन्हें किसी चीज को ज़्यादा वक़्त तक अच्छा और ताज़ा रखना हो तो उसके लिए उन्होंने एक अलग टेक्निक का यूज किया है। उन्होंने अपने किचन के एक कोने में ईंटो की एक दीवार बनाई उस दीवार के अंदर एक चौकोर स्थान बनवाया, जिसमें अंदर की तरफ़ एक मिट्टी का घड़ा रख दिया। इस घड़े में जब खाना रखा जाता है तो वह करीब 1 हफ्ते तक खराब नहीं होता, क्योंकि इसके चारों और रेत ढंकी जाती है। यह टेक्निक खाना अच्छा रखने में बहुत कारगर है।

बिजली की खपत बहुत कम होती है इनके घर में

हरि और आशा ने इस मकान में सोलर पैनल भी लगवा दिया है। उनके किचन में तो बायो गैस का उपयोग होता है। घर से जो भी कचरा और माल निकलता है उससे बायोगैस बना ली जाती है। फिर उसी का उपयोग वे अपने घर में भी करते हैं। साधारणतया किसी घर में बिजली की करीब 50 यूनिट तक खपत होती है, परंतु इनके घर में 1 महीने में केवल 4 यूनिट बिजली ही इस्तेमाल की जाती है। इन्होंने अपने घर में कई इलेक्ट्रिक उपकरण जैसे टीवी, कम्प्यूटर, मिक्सर इत्यादि भी रखे हुए हैं, लेकिन यह ऊर्जा का ठीक प्रकार से उपयोग करते हैं।

जंगल के बीचों बीच बसा है उनका यह ड्रीम हाउस

उनका यह ड्रीम हाउस उन्हीं के द्वारा उगाए हुए एक छोटे से जंगल के बीचों-बीच बसा हुआ है। इस जंगल में अब बहुत-सी तितलियाँ, चिड़ियाएँ, पशु पक्षी रहते हैं। हरि और आशा अपनी ज़मीन में बहुत प्रकार के फल और सब्जियाँ को प्राकृतिक तरीकों से उगाते हैं। केवल बीज बोते वक़्त ही खुरपी का उपयोग करते हैं, फिर उसके पश्चात वे भूमि को नहीं जोतते हैं। वे प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल भी बहुत सावधानी से करते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता ख़त्म ना हो। आशा का कहना है कि क्या आप सब ने सोंचा है जंगलों में उगे हुए फल और खेतों में पर उगाए हुये फलों के स्वाद में अंतर कैसे होता है? ” इस पर वे ख़ुद ही मुस्कुराकर कहती हैं, मिट्टी से आप कुछ भी छुपा नहीं सकते हैं।

17 सालों से नहीं ली कोई दवाई, रहते हैं फिट एंड फाइन

हरि और आशा का कहना है कि उनकी इस नेचर फ्रेंडली लाइफस्टाइल से उन्हें बहुत फायदा मिला है। प्रकृति के बीच रहने से उन्हें स्वच्छ वातावरण और हवा-पानी मिला, जिससे वे कभी बीमार नहीं पड़े इसलिये, 17 सालों से उन्होंने किसी तरह की दवाई भी नहीं खाई। उन्होंने केवल प्राकृतिक रूप से उगाया गया भोजन खाया। इन्हीं सभी कारणों से इस कपल को अब तक कोई गंभीर बीमारी नहीं हुई है।

हरि ने कहा कि अगर कभी उन्हें थोड़ा सर्दी-जुकाम हो जाए तो ज़्यादा पेय पदार्थों का सेवन, रेस्ट करना और व्रत, उपवास करने से ही उनका शरीर फिर से ठीक हो जाता है। हालांकि हरि और आशा की तरह हर व्यक्ति जंगल बनाकर नहीं रह सकता है, लेकिन हम उनकी लाइफस्टाइल से कुछ बातें तो अपना ही सकते हैं, जैसे प्रकृति के साथ सामंजस्य करके रहना और सादा, व्यवस्थित जीवन गुजारना।

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