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देश का ये ज़िला कहलाता है ‘शहद का कटोरा’, मधुमक्खी पालन से यहां के किसान कमाते हैं लाखों

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आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में लोगों को प्रकृति का महत्त्व बखूबी समझ आ गया है। लोग अब ये जानने लगे हैं कि प्रकृति को बचाना कितना ज़रूरी है। यही वज़ह है कि लोग अब अपने घरों में भी गमले रखने लगे हैं। घर में ही साग-सब्जी उगाने लगे हैं। घर पर ही छोटा-सा पार्क बनवाने लगे हैं। इससे किसी को रोजगार तो मिलता ही है, साथ ही वह अपने हिस्से का प्रकृति में योगदान भी बखूबी दे रहे हैं।

आज हम आपको देश के कुछ ऐसे किसानों की कहानी बताने जा रहे हैं जो आपको प्रेरणा से भर देगी। ये किसान खेती के साथ मधुमक्खी पालन का भी काम करते हैं। कभी मधुमक्खी से डरने वाले किसान आज मधुमक्खी के साथ मानो दोस्ती कर बैठे हैं। ये वह किसान हैं जो अच्छी आमदनी के साथ प्रकृति को भी बचाने का काम कर रहे हैं। आइए जानते हैं क्या है इन किसानों की कहानी और कैसे उतर आए मधुमक्खी पालन के काम में।

ये हैं भरतपुर के किसान

पहली कहानी राजस्थान (Rajasthan) के भरतपुर (Bharatpur) जिले की है। यहाँ एक किसान पहले मधुमक्खी से बहुत डरता था। उसे हमेशा लगता था कि मधुमक्खी से दूर रहना ही बेहतर है। आज वही किसान मधुमक्खी पालन से हर साल 12 से 15 लाख रुपए कमा रहा है। आज इस किसान की शहद देश के कई राज्यों में सप्लाई की जा रही है।

मिलिए हरदयाल सिंह से

44 वर्ष के भरतपुर (Bharatpur) के रहने वाले हरदयाल सिंह नगला कल्याण गाँव में रहते हैं। हरदयाल सिंह (Hardayal singh) ने हिन्दी विषय से बीएड (B. ed) और एमए (MA) किया हुआ है। उच्च शिक्षित हरदयाल के घर पर किसी चीज की कमी नहीं है। इनके घर पर चार पहिया गाड़ी के साथ मोटरसाइकिल भी मौजूद है। साथ ही घर में सभी सुख-सुविधाएँ भी मौजूद हैं।

हरदयाल सिंह बताते हैं कि वह पहले प्राइमरी स्कूल में टीचर थे। 17 साल पहले उनके मन में विचार आया कि क्यों ना मधुमक्खी पालन करें। साथ ही इससे कमाई करूं। इसी विचार के साथ हरदयाल ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और हिमाचल प्रदेश (Himachal pradesh) से मधुमक्खी पालन के लिए 8 डिब्बे खरीद लाए। उनका शुरूआती मकसद पूरा हुआ। थीरे धीरे करके उन्हें इसका लाभ मिलने लगा। 8 डिब्बों से शुरुआत करने वाले हरदयाल सिंह कब 550 डिब्बों पर पहुँच गए इसका पता भी नहीं लगा। आज वह लगभग 121 क्विंटल शहद हर साल प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने अपने साथ 40 मधुमक्खी पालक भी जोड़े हुए हैं। अब वह मुनाफा बढ़ाने के लिए मिनी प्रोसेसिंग प्लांट भी शुरू करने वाले हैं।

दूसरे किसान भी आए आगे

इनके ही गाँव के जगदीश प्रसाद (Jagdish prasad) भी इस काम से जुड़े। जगदीश ने शुरुआत में खाली पार्ट टाइम के तौर पर इस काम को शुरू किया था। लेकिन अब वह सारा समय इसी में गुजारते हैं। जगदीश की आमदनी का मुख्य ज़रिया अब यही काम बन गया है। जगदीश का मानना है कि यदि वह खेती करते तो इतना मुनाफा नहीं कमा सकते थे, जितना आज वह मधुमक्खी पालन से कमा रहे हैं।

मिलिए मुकेश चंद्र से

ये हैं 46 वर्षीय मुकेश चंद्र। जो कि नगरिया कसोट गाँव में रहते हैं। ये शहद उत्पादन के साथ मोम का भी उत्पादन करते हैं। मुकेश की आज इस काम से सालाना 77 लाख की आमदनी होती है। उनके यहाँ हर साल 770 क्विंटल शहद का उत्पादन और 15 क्विंटल मोम का उत्पादन होता है। साल 2003 में उन्होंने मात्र 12 बॉक्स के साथ मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया था। लगातार काम बढ़ता गया और आज 4 हज़ार बाॅक्स तक पहुँच गया है। इनकी कमाई इतनी ज़्यादा हुई कि आज इनका एक बेटा आज MBBS की पढ़ाई कर रहा है। साथ ही दो बेटियाँ प्राइवेट स्कूल में पढ़ रही है।

बंजर ज़मीन पर आ गई ‘शहद क्रांति’

पीके राय जो कि सरसों अनुसंधान निदेशालय से जुड़े हुए हैं। बताते हैं कि जिस तरह से यहाँ के किसानों ने मधुमक्खी पालन शुरू किया। उससे ये इलाक़ा ‘शहद का कटोरा’ कहलाने लगा। पीके राय बताते हैं कि हमारे यहाँ एक खड़े पानी का इलाक़ा है। इसलिए हमारे यहाँ सबसे ज़्यादा सरसों की खेती की जाती है। इनकी मानें तो इनके यहाँ पांच लाख हेक्टेयर ज़मीन है। पर मजबूरी के चलते ढाई लाख हेक्टेयर पर सरसों की खेती ही की जाती है। पीके राय बताते हैं कि मजबूरी की ये खेती मधुमक्खी पालन के लिए बेहद लाभदायक हुई। आज इसी खेती से मधुमक्खी पालकों का काम चल रहा है। पीके दास लोगों को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग देते हैं। साथ ही खेती कैसे की जाए इसके लिए नई-नई तकनीक बताते हैं।

सबको पहले लगा डर

पीके राय बताते हैं कि हमारे यहाँ शुरूआत में सभी को इस काम से डर लगा। लोग सोचते थे कि मधुमक्खी हमें या हमारे बच्चों को काट लेगी तो क्या होगा। लेकिन पीके राय ने लोगों को समझाया कि कैसे मधुमक्खी से बचना है और इसी काम से मुनाफा भी कमाना है। एक किसान के घर तो ऐसा भी हुआ कि जब एक बार उसके लड़के का रिश्ता देखने वाले लोग आए थे तो भाग गए। उन्हें लगा इस घर में तो मधुमक्खियों का वास है। भला यहाँ हमारी बेटी कैसे सुरक्षित रहेगी।

पीके दास बताते हैं कि शुरुआत में लोगों को लगा कि मधुमक्खी हमारे सरसों के रस को चूस लेंगी तो सरसों खराब हो जाएगी। लेकिन पीके राय ने भी इस पर काम किया ताकि कोई इस भय में ना रहे। आज पीके राय की मेहनत रंग लाई है और उनके यहाँ के लोग खेती के साथ मधुमक्खी पालन कर लाखों की कमाई कर रहे हैं।

मिलिए रमेश गुप्ता से

भरतपुर के ही रमेश गुप्ता ने शहद का कारोबार कनाडा, अमेरिका, लीबिया, सऊदी अरब तक फैला दिया है। रमेश गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने भरतपुर में शहद उत्पादन के लिए तीन प्रसंस्करण स्थापित किए। जिसका नाम “हेल्थ केयर एन्ड बृज हनी प्राइवेट लिमिटेड” है। इसकी स्थापना 2006 में हुई। हर साल ये 12 हज़ार मीट्रिक टन शहद का उत्पादन कर लेते हैं। सबसे ज़्यादा शहद इन्हीं के यहाँ होता है।

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News Desk
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